निरति
निरति लिप्त होने या लीन हो जाने के भाव को कहते हैं। संत साहित्य में इसका बड़ा उल्लेख है। इसे सुरति की तरह ही बड़ा महत्व दिया गया है।कबीर कहते हैं -
सुरति समानी निरति मै निरति रही निरधार
सुरति निरति परचा भया तब खुले स्यम्भु दुआर।
निकटवर्ती पृष्ठ
निरर्थक, निराशावाद, निरुक्त, निर्णयात्मक आलोचना, नूतन