पहर
एक दिन-रात में आठ पहर होते है। चार पहर दिन के होते हैं तथा चार रात के। पहर को याम के नाम से भी जाना जाता है।प्रथम पहर का प्रारम्भ सूर्योदय के साथ ही हो जाता है तथा चौथा पहर सूर्यास्त के साथ समाप्त हो जाता है। पांचवां पहर सूर्यास्त से प्रारम्भ होता है तथा आठवां पहर सूर्योदय के साथ ही समाप्त हो जाता है।
पहर का समय सूर्योदय और सूर्यास्त पर निर्भर रहने के कारण यह बदलता रहता है। यदि 12 घंटे का दिन तथा 12 घंटे की रात होने पर ही दिन और रात के पहर तीन-तीन घंटे के होते हैं। अन्यथा सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच के समय को चार से भाग देने पर जो समय आता है उसे ही उस दिन का एक पहर, तथा सूर्यास्त से सूर्योदय के बीच के समय को चार से भाग देकर जो समय निकला उसे रात्रि का एक पहर माना जाता है।
यदि मुहूर्त के सापेक्ष लें तो एक पहर या एक याम में छह या सात मुहूर्त होंगे जो उस दिन के सूर्योदय तथा सूर्यास्त पर निर्भर करेगा।
दिन के प्रथम दो पहर पूर्वाह्न कहे जाते हैं, तथा बाद के दो पहर अपराह्न।
दिन के मध्य भाग को मध्याह्न कहा जाता है तथा रात के मध्य भाग को मध्यरात्रि।
सूर्यास्त से दो घंटे पूर्व और दो घंटे बाद के समय को आजकर सायंकाल कहकर अभिहित किया जाता है। उसके बाद के समय को रात्रि कहा जाता है जैसे रात्रि साढे आठ बजे। रात्रि के अन्तिम पहर को उषा काल कहते हैं।
सूर्योदय के प्रथम तीन घंटे को अर्थात् लगभग नौ बजे के पूर्व के समय को प्रातःकाल कहा जाता है।
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पाल वंश, पावापुरी, पाश, पिंगलशास्त्र, पुरी, पुष्टिमार्ग