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पूरम त्‍यौहार

पूरम त्‍यौहार भारत में केरल का एक लोकप्रिय त्यौहार है, विशेषकर उत्तर केरल का।

स्‍थानीय मंदिर में पूरम त्‍यौहार मनाया जाता है। सबसे बड़ा और रंगारंग उत्‍सव त्रिशूर के वडकुमनाथन मंदिर में आयोजित किया जाता है जिसे त्रिशूरपुरम कहते हैं। यह त्‍यौहार मलयाली महीने मेडम (अप्रैल/मई) में मनाया जाता है। इसके कुछ ही समय बाद त्रिशूर में अरट्टूपुझा पूरम मनाया जाता है, इस अवसर पर लगभग 60 सजे-धजे हाँ‍थियों का जुलूस निकाला जाता है। इस वर्ष अरट्टूपुझा पूरम 11 अप्रैल को मनाया जा रहा है।

दक्षिण भारत में त्रिशूर शहर से लगभग 12 किलोमीटर दूर स्थित अरट्टूपुझा एक गांव है जो केरल के त्रिशूर जिले में पुट्टुकाड के पास पड़ता है। अरट्टूपुझा को केरल की सांस्‍कृतिक राजधानी माना जाता है। यह करूवनूर नदी के तट पर स्थित है। अरट्टूपुझा मंदिर इस वार्षिक त्‍यौहार का केंद्रबिंदु होता है। इस मौके पर पारम्‍परिक वाद्यवृंदों और चमकते-दमकते हौदों से सजे हुए हाथियों की शोभायात्रा निकाली जाती है।

कई वर्ष पूर्व कोच्चि रियासत के धुरंधर शासक सक्‍थन थाम्‍पूरन के शासनकाल में त्रिशूर पूरम की शुरूआत हुई थी। तब से यह राज्‍य का शानदार त्‍यौहार बन गया है। कहा जाता है कि इस शक्तिशाली शासक ने दुर्घटनावश एक हाथी का सिर कलम कर दिया था और इसी का प्रायश्चित करने के लिए उसने शानदार पूरम त्‍यौहार मनाने की शुरूआत की। दुर्घटनावश मारे गए हाथी को स्‍थानीय लोग वेलीचपाडु कहते थे, जिसका मतलब एक ऐसा जीव जो स्‍थानीय देवताओं के प्रवक्‍ता के रूप में काम करता है।

Page last modified on Monday June 23, 2014 10:38:24 GMT-0000