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बुद्धि

ज्ञान के आधार पर निर्णय या विचारण करने की क्षमता को बुद्धि कहते हैं।
बुद्धि अन्तःकरण की वह अवस्था है जिसमें सत्व गुण प्रधान होता है परन्तु रजोगुण तथा तमोगुण भी मिश्रित रहता है। इस अवस्था में सत् ही प्रधान होता है। जब सत् की प्रधानता समाप्त होकर रज या तम की प्रधानता हो जाती है तो उसे बुद्धि भ्रष्ट होना कहते हैं।
बुद्धि की अवस्था में अन्तःकरण में मात्र होने का भाव रहता है जो सत् है। इसमें विशुद्ध भाव की अनुभूति होती है, अर्थात् 'हूं' के भाव का।
बुद्धि जब इस अवस्था में रहती है तब इन्द्रियों, जिनमें मन भी शामिल है, की संवेदनाओं से मुक्त रहती है।
यही बुद्धि महत्-तत्व है। यही निर्वैयक्तिक जीवन-चेतना है।
सिद्ध सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि के धर्म हैं - विवेक, वैराग्य, परा, प्रशान्ति तथा क्षमा।

Page last modified on Monday March 17, 2014 04:52:54 GMT-0000