भाव अलंकार अंगज अलंकार का एक भेद है।
जब निर्विकार शुद्ध चित्त में किसी भी आन्तरिक या बाह्य परिवर्तनों के कारण कोई विचार अंकुरित हो उठता है तो उसे भाव कहते हैं। जब इस भाव को भाषा में अभिव्यक्त किया जाता है तो वह भाव अलंकार बन जाता है। भाव के उत्पन्न होते ही चित्त अब शुद्ध नहीं रहा तथा उसमें अन्य भावों की मिलावट आ गयी है।
इस भाव को हाव से अलग माना गया है, इसलिए हाव अलंकार को भाव अलंकार से अलग माना गया है।
जब निर्विकार शुद्ध चित्त में किसी भी आन्तरिक या बाह्य परिवर्तनों के कारण कोई विचार अंकुरित हो उठता है तो उसे भाव कहते हैं। जब इस भाव को भाषा में अभिव्यक्त किया जाता है तो वह भाव अलंकार बन जाता है। भाव के उत्पन्न होते ही चित्त अब शुद्ध नहीं रहा तथा उसमें अन्य भावों की मिलावट आ गयी है।
इस भाव को हाव से अलग माना गया है, इसलिए हाव अलंकार को भाव अलंकार से अलग माना गया है।