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यज्ञ का मर्म परोपकार है, अर्थात् जो भी कार्य स्वार्थ वश नहीं, बल्कि अन्य के कल्याण के उद्देश्य से किया जाता है उसे यज्ञ कहते हैं।

श्रीमद् भगवदगीता में एक स्थान पर लिखा है कि यज्ञ का मर्म जानकर ही ज्ञानी यज्ञ करने का फल प्राप्त कर लेते हैं।

यही कारण है कि धार्मिक यज्ञों या अनुष्ठानों में इस बात पर जोर दिया जाता है कि यज्ञकर्ता दान करें और लोगों को भोजन करायें। यदि दान नहीं किया गया और लोगों को भोजन नहीं कराया गया तो, श्रीमद् भगवदगीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि यज्ञ का फल नहीं मिलता।

Page last modified on Tuesday October 4, 2011 05:11:33 GMT-0000