Loading...
 
Skip to main content

वर्ष का काल विभाग

भारतीय परम्परा में वर्षभर का काल विभाग सामान्य रूप से इस प्रकार किया गया है, ताकि सामान्य जन इसे आसानी से याद रख सकें। यह सूक्ष्म और सटीक काल विभाग नहीं है क्योंकि वह गणितीय गणना केवल विशेषज्ञों के लिए होती है। आम लोगों के लिए कम से कम इतना ध्यान में रखने को कहा जाता है। यह लोक व्यवहार है, कोई शुद्ध गणितीय आकलन नहीं। शुद्ध गणितीय आकलन के लिए ज्योतिषीय गणनाएं देखी जाती हैं।

पन्द्रह निमेषों की एक काष्ठा
तीस काष्ठाओं की एक कला
पन्द्रह कलाओं की एक घटिका या एक घड़ी
दो घड़ियों का एक मुहूर्त
तीस मुहुर्तों का एक अहोरात्र अर्थात् दिन-रात
प्रत्येक अहोरात्र के दिन के तीन भाग – प्रातः, दोपहर तथा सायं, तथा रात के तीन भाग – संध्या, रात्रि तथा ज्योत्सना।

चैत्र और आश्विन मास में दिन और रात को बराबर मानना
चैत्र के बाद प्रतिमाह तीन महीने तक एक-एक मुहूर्त करके दिन बढ़ने लगता है तथा रात घटने लगती है। यह क्रम तीन महीने तक चलता है। उसके बाद दिन एक-एक मुहूर्त घटने लगता है तथा रात बढ़ने लगती है। यह क्रम भी तीन महीने तक चलता है।

आश्विन मास में दिन रात बराबर मान लिया जाता है तथा उसके बाद उपर्युक्त क्रम बदल जाता है।

पन्द्रह अहोरात्र का एक पक्ष
दो पक्षों, एक कृष्ण तथा एक शुक्ल पक्ष, का एक मास या महीना
दो-दो महीनों की एक ऋतु
श्रावण तथा भाद्रपद में वर्षा ऋतु
आश्विन तथा कार्तिक में शरद् ऋतु
मार्गशीर्ष तथा पौष में हेमन्त ऋतु
माघ तथा फाल्गुन में शिशिर ऋतु
चैत्र तथा वैशाख में वसन्त ऋतु
ज्येष्ठ तथा आषाढ़ में ग्रीष्म ऋतु

छह महीनों का एक अयन
वर्षा ऋतु से दक्षिणायन तथा शिशिर से उत्तरायण प्रारम्भ होता है।

वर्ष का प्रारम्भ दैवज्ञ चैत्र से परन्तु लोक व्यवहार में वर्षा से वर्ष का प्रारम्भ माना जाता है।

आसपास के पृष्ठ
वाद्य यंत्र, वाममार्ग, वायु द्रव्य, वाराणसी, वार्ली लोक चित्रकला, वाल्‍मीकि नेशनल पार्क

Page last modified on Tuesday June 27, 2023 18:41:09 GMT-0000