सामवेद
सामवेद चार वेदों में से तीसरा वेद है। इसमें मंत्रों का गान किस प्रकार से होना चाहिए यह बताया गया है। वैसे साम का अर्थ गायन भी है तथा पाठ भी। इस प्रकार दोनों के मिश्रण को भी साम कहा जाता है।सामगान में उच्च स्वर से प्रारम्भ कर धीरे-धीरे निम्न स्वर की ओर आलाप का अवरोह होता है। सामवेद का रस उद्गीथ है जो ओंकार का ही समानार्थक है। ऋक को जहां एक ओर वाणी कहा गया है वहीं साम को प्राण कहा गया है। सामगान अनेक रुपों में पाया जाता है जिनमें सुरों के आरोह अवरोह आदि में भी अन्तर मिलता है।
साम गान रुप है परन्तु इसके मंत्र आज पुस्तकों में संग्रहीत हैं, जिसे सामवेद कह दिया जाता है। इन पुस्तकों में केवल ऋचाओं का संग्रह मिलता है परन्तु इनमें से किसी को सामगान नहीं कहा जा सकता।
जिन मंत्रों के आधार पर गाये जाते हैं उन्हें योनिमंत्र कहा जाता है। इसका एक अर्थ यह भी हुआ कि सामवेद के ये मंत्र गाये नहीं जाते बल्कि इनके आधार पर बने गान ही गाये जाते हैं। ऋषियों ने इन योनिमंत्रों के आधार पर अनेक गान बनाये जिन्हें सामगान कह दिया जाता है।
सामवेद में 1875 मंत्र हैं जिनपर आधारित सामगानों की संख्या लगभग 4000 है।
सामवेद की तेरह शाखाएं हैं जिनमें कौथुमी शाखा के सामवेद में लगभग 4000 तथा रामायणी शाखा के सामवेद में अलग लगभग 4000 गान हैं। इस प्रकार सामवेद अनेक हैं। प्रत्येक शाखा का अपना सामवेद है।
जिन ऋषियों ने साम बनाये उन्हीं ऋषियों के नाम पर ये साम प्रसिद्ध हैं।
सामवेद के मंत्र ऋग्वेद से लिए गये हैं। इनमें से साठ मंत्र ऐसे हैं जो ऋग्वेद की आश्वलायन शाखा में नहीं हैं परन्तु शांख्यायन शाखा में हैं।
सामगान के अनेक भेद हैं। गोतम का सामगान अलग तथा कश्यप का सामगान अलग, आदि। अर्थात् सामगान की अनेक शाखाएं हैं।
साम-तर्पण-विधि में समावेद की 13 शाखाओं के नाम निम्न प्रकार हैं -
रामायण, शाट्यमुग्न्य, व्यास, भागुरि, औलुण्डी, गौल्गुलवी, भानुमान-औपमन्यव, काराटि, मशक गार्ग्य, वार्षगव्य, कुथुम, शालिहोत्र तथा जैमिनी।
इस समय भारत में रामायणी, कौथुमी तथा जैमिनीय शाखाएं ही मिलती हैं। वैसे हजारों शाखाओं की बात कही जाती है जो मान्य नहीं लगता।
पुराणों में कई अन्य शाखाओं के नाम की चर्चा है। उनमें से हाउ तथा हावु, राइ तथा रायि, वाजेषु नो तथा वाजेषु णो शाखाओं के गान में भी भारी अन्तर मिलता है। पाठभेद भी हैं।
ऋग्वेद में सामवेद का उल्लेख मिलता है जिसके कारण यह नहीं कहा जा सकता कि ऋग्वेद सबसे पुराना है। अथर्ववेद में भी साम गान के नाम मिलते हैं।
एक प्रकार से यज्ञों में ऋग्वेद के जो मंत्र गाये जाते हैं उनका संग्रह ही सामवेद है।
प्रचीन काल में सामगान से ही देवों की प्रार्थना की जाती थी। यज्ञ में सोम रस निकालकार, उसमें पानी मिलाकर, छानकर, व दूध के साथ मिलाकर उसे पीने लायक बनाने तक सामगान चलता था।
सामवेद की स्वर गणना जितनी सावधानी और उत्तमता से की गयी है उतनी अन्यत्र नहीं मिलती।
समवेद की भिन्न शाखाओं में मंत्रों तथा गानों की संख्या अलग-अलग है परन्तु उन्हें चार-चार भागों में ही बांटा गया है।
मंत्र ग्रंथों के नाम हैं - पूर्वार्चिक, आरण्यक, उत्तरार्चिक तथा महानाम्नि।
गान ग्रंथों के नाम हैं - ग्रामगेयगान, आरण्यकगेयगान, ऊहगान तथा उह्यगान।
कौथुमी शाखा में 1875 मंत्र तथा 2722 गान हैं।
जैमिनी शाखा में 1693 मंत्र तथा 3681 गान हैं।
इस प्रकार दोनों शाखाओं के साम अलग-अलग हैं।
सामवेद में अनेक ब्राह्मण ग्रंथ पाये जाते हैं। ब्राह्मण का अर्थ यहां एक प्रकार का ग्रंथ ही है। जैसे अद्भुत कथाओं वाले ग्रंथ का नाम है अद्भुतब्राह्मण।
सामवेद के चार सूत्रग्रंथ हैं - मशककल्पसूत्र, क्षुद्रसूत्र, लाट्यायन श्रौतसूत्र तथा गोभिलीय गृह्यसूत्र। वैसे रामायणीय शाखा में - द्राह्यायण श्रौतसूत्र, खादिरगृह्यसूत्र तथा पुष्पसूत्र पाये जाते हैं।
विद्वानों के बीच वेदमंत्रों के अर्थ को लेकर काफी मतभेद हैं। स्वाभाविक रुप से सामवेद के अर्थ को लेकर भी मतभेद बने हुए हैं।