सुख जीवधारियों की वह अवस्था जिसमें वह दुःख की अनुभूति के विपरीत अनुभूति, या स्वाभाविक पीड़ाहीन अनुभूति, या सहज आनन्द भाव में रहता है। पुण्य कर्म ही सुख का मूल स्रोत है। विद्या आदि इसके अन्य सहयोगी स्रोत हैं।