स्वगत
नाटकों में पात्रों द्वारा कहे कये उन कथनों को स्वगत कहा जाता है जिस कहने वाले के अतिरिक्त और कोई पात्र नहीं सुनता है। यही कारण है कि ऐसे कथनों को अश्राव्य भी कहा जाता है।यद्यपि पूर्व में स्वगत का प्रयोग अनेक विख्यात नाटककारों के नाटकों में मिलता है, आधुनिक नाटककार इसे एक दोष मानते हुए ऐसे कथनों का निषेध करते हैं।