मुख्यमंत्री के साथ काम कर रहे एक मंत्री का तो यही कहना है। वे कहते हैं कि ममता के साथ काम करना भी एक बड़ा अनुभव है। एक अन्य मंत्री अपना अनुभव सुनाते हुए कहते हैं कि जुलाई के तीसरे महीने में उन्होंने मुख्यमंत्री के सामने राज्य की आर्थिक दुरावस्था को समाप्त करने का एक प्रस्ताव रखा। वह प्रस्ताव लिखकर दिया गया था और मंत्रीजी उसका बयान कर रहे थे, पर ममता को कुछ बात बुरी लगी। मंत्रीजी को यह पता नहीं कि प्रस्ताव का मजमून उनका खराब लगा या उसे बयान करने का लहजा खराब लगा या जिा कागज पर वह लिखा गया था, वह कागज खराब लगा। नाराज होकर ममता ने प्रस्ताव का वह पेपर अपने सामने की मेज पर फंेक उड़ा दिया।
ममता के उस रवैये से दुखी उस मंत्री ने अदब के साथ कहा कि यदि उनका प्रस्ताव उन्हें पसंद नहीं आता है, तो राज्य की आर्थिक हालत सुधारने के लिए प्रस्ताव बनाने का जिम्मा किसी और को दे दिया जाय और उन्हें अपने विधानसभा क्षेत्र के कार्यालय में ही समय बिताने की अनुमति दे दी जाय। कहानी यहीं समाप्त नहीं होती है। मंत्रियों के कार्यालयों को खूबसूरत करने का काम जोरों से चल रहा है और उस पर करोड़ों रुपए भी खर्च किए जा रहे हैं। उस मंत्री के चैंबर में सबसे ज्यादा पैसे ममता बनर्जी के आदेश से खर्च किए जा रहे हैं।
किसी मंत्री का यह कोई अकेला अनुभव नहीं है। एक और बुजुर्ग मंत्री की यही कहानी है। वे तृणमूल कांग्रेस के गठन के समय से ही ममता के साथ रहे हैं। एक बार पार्टी के दफ्तर में ही मुख्यमंत्री केन्द्र सरकार के एक अधिकारी से मुलाकात कर रही थीं। उस अधिकारी के आने के बाद ममता बनर्जी ने उन्हें अपने सामने वाली सीट पर बैठने को कहा। मौसम गर्म था। उनके सीट पर बैठते ही ममता ने अपने उस मंत्री को कहा कि वे उस अधिकारी के लिए एक ग्लास पानी लाएं। मंत्रीजी सदमे मंे आ गए। किसी तरह अपने को संभालते हुए उन्होंने उस अधिकारी के सामने एक ग्लास पानी रखा। फिर मंत्रीजी वहां से हटकर बगल वाले कमरे मंे चले गए। मंत्री के ड्राइवर ने उस घटना को देखा और बात सार्वजनिक हो गई।
एक अखबार के अनुसार अपने 68 दिनों के कार्यकाल में ममता बनर्जी ने 40 कमिटियो का गठन किया है। वे अलग अलग विषयों पर हैं। उनके विषयों मंे कुछ गंभीर मसले भी हैं, तो कुछ हास्यास्पद मामले भी है। केबल आपरेटर को हैल्प करने के लिए भी समिति बना दी गई है। ये समितियों उन समितियों से हटकर हैं, जो उन्होंने रेल मंत्रालय के अंदर बनाई थी।
कोलकाता नगर निगम के काम को बेहतर बनाने के लिए ममता ने 84 सदस्यों की एक समिति बना दी थी। यह काम उन्होंने उसी समय किया था, जब उनकी पार्टी का कोलकाता नगर निगम पर कब्जा हो गया था। उस समिति की बैठक सिर्फ एक बार हुई है। उस समिति में कोलकाता के अनेक प्रसिद्ध व्यक्ति शामिल हैं। उनमें फिल्म निर्माता से लेकर बड़े अर्थशास्त्री तक शामिल हैं। उन्हें यह पता नहीं कि समिति की दूसरी बैठक कब होगी। उन्हें यह भी नहीं पता कि पहली बैठक में क्या हुआ था।
एक बार पत्रकारों ने मुख्यमंत्री से उन समितियों के बारे में पूछा कि उनकी उपयोगिता क्या है, तो उन्होंने कहा कि वे एक्सपर्ट राय जानना चाहती हैं और इसलिए वे उस तरह की समितियां बनाती हैं, जिनमें एक्सपर्ट लोग होते हैं। पिछले महीने उन्होंने 4 और आयोगों के गठन की घोषणा कर दी। एक आयोग का काम तो 1970 के दशक में नक्सलवादियों के संहार की जांच करना है। अब तक 6 जांच आयोगों का गठन किया गया है।
1970 के दशक मे सेन हाउस में हुए नरसंहार की जांच के लिए बने आयोग ने अभी तक अपना काम शुरू नहीं किया है। उनके पास न तो दफ्तर है और न ही कोई अन्य संशाधन। उन्हें पता नहीं चल रहा है कि वे अपना काम कैसे शुरू करें।
फिर भी अभी निराश होने का समय नहीं है, क्योंकि केन्द्र सरकार ने राज्य के लिए एक बड़ा पैकेज दिया है और चीजें शायद जल्द ही बेहतर होने लगे। ऐसा एक अधिकारी का मानना है। (संवाद)
ममता ने अनेक आयोग और समितियों का गठन किया
काम तो शायद ही किसी ने शुरू किया है
आशीष बिश्वास - 2011-08-11 13:00
कोलकाताः क्या ममता बनर्जी अपने सलाहकारों की सुनती भी है? सच तो यह है कि उनके अधिकांश सलाहकारों का काम ममता की बातो को सुनने का काम करते हैं। मुख्यमंत्री से नजदीकी बनाने के लिए वे उनकी हां में हां मिलते हैं और अपनी तरफ से किसी प्रकार की सलाह देने में भय खाते हैं।