पामोलिन के आयात में किया गया वह घोटाला 1992 में हुआ था। उस समय के करुणाकरण प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और ओमन चंडी राज्य के वित्तमंत्री। उस घोटाले मंे के करुणाकरण के खिलाफ तो मामला पहले ही चल रहा था, जो उनकी मौत के साथ समाप्त हो गया, लेकिन ओमन चांडी पर कोई मुकदमा नहीं चल रहा था। अब निगरानी अदालत ने उस धोटाले में उनकी भूमिका की जांच के भी आदेश दे दिए हैं और उसके कारण राज्य सरकार के भविष्य पर ही सवाल खड़े होने लगे हैं।

अदालत के इस आदेश से यूडीएफ पर एक बड़ा बज्रपात हुआ है। इसके कारण इसकी नींव हिलने लगी है। श्री चांडी यूडीएफ के सबसंे बड़े एैसेट माने जाते हैं और वे ही विवादों के घेरे में आ गए हैं।

अदालती आदेश के बाद कांग्रेस आलाकमान और कांग्रेस के सहयोगी दल मुख्यमंत्री को पद छोड़ने तक के विकल्प सुझा रहे हैं, लेकिन फिलहाल श्री चांडी ने निगरानी विभाग से खुद का किनारा कर लिया है। आदेश आने के समय यह विभाग श्री चांडी के पास ही था। आदेश के बाद उन्होंने यह विभाग अब अपने मातहत और विश्वासी राजस्व मंत्री थिरुवंचूर राधाकृष्णन को दे दिया है।

लेकिन विपक्ष इससे संतुष्ट नहीं है। उसका कहना है कि निगरानी अदालत के उस आदेश के बाद श्री चांडी के पास मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के अलावा कोई और चारा नहीं है। निगरानी विभाग किसी और को देने से काम नहीं चलने वाला, क्योकि सामान्य प्रशासन विभाग, जो निगरानी विभाग को नियंत्रित करता है, वह अब भी मुख्यमंत्री के पास ही है। इसके अलावा गृहमंत्रालय निगरानी विभाग के अधिकारियों की नियुक्ति को तय करता है और वह भी मुख्यमंत्री के पास ही है। इसके अलावा मुख्यमंत्री जब चाहे, तब किसी भी मंत्रालय अथवा विभाग के निर्णय को अपने हिसाब से बदल सकता है। किसी भी विभाग के किसी भी निर्णय मंे अंतिम निर्णयकर्त्ता की भूमिका में मुख्यमंत्री हमेशा रहता है। यही कारण है कि विपक्ष मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग कर रहा है।

दूसरी तरफ यूडीएफ का कहना है कि श्री चांडी को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने की जरूरत नहीं है। इसका कारण यह है कि वे इस मामले मंे अभियुक्त नहीं हैं और उनके खिलाफ कोई नया सबूत भी सामने नहीं आया है। लेकिन जज द्वारा मामले की फिर से जांच करने का आदेश अपने आपमें सत्तारूढ़ पक्ष की नींद उड़ाने के लिए काफी है।

उदाहरण के लिए अदालत ने निगरानी और भ्रष्टाचार विरोधी ब्यूरो की उस रिपोर्ट को मानने से इनकार कर दिया है, जिसमें श्री चांडी को उस घोटाले में पाकसाफ बताया गया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि वित्त विभाग पामोलिन आयात के मामले मं दोषी नहीं ठहराया जा सकता। पर जज ने कहा कि पिछले आदेश में उन्होंने इस घोटाले मंे वित्तमंत्री की हैसियत से ओमन चांडी की भूमिका की जांच करने के लिए कहा था, न कि वित्त विभाग की भूमिका की जांच के आदेश दिए थे। कोर्ट ने कहा कि वित्त विभाग और वित्त मंत्रालय दोनों अलग अलग सत्ता हैं, दोनों को एक नहीं समझा जाना चाहिए।

रिपोर्ट मंे कहा गया था कि कैबिनेट ने पामोलिन के आयात का निर्णय किया था। यह एक सरकारी नीति थी। इस पर कोर्ट ने कहा कि अपनी नीति के लिए सरकार अदालत के सामने जवाबदेह नहीं है, लेकिन नीति तैयार करते समय यदि किसी व्यक्ति विशेष के कारण अनियमितता हुई हो, तो वह व्यक्ति अपनी उस अनियमितता के लिए कोर्ट के सामने जिम्मेदार है।

चांडी द्वारा मुख्यमंत्री बने रहने के निर्णय के कारण इस सरकार का तात्कालिक संकट तो टल गया है, लेकिन निगरानी की जांच यदि उनके खिलाफ गई, तो फिर वे अपने पद पर बने नहीं रह सकते। उसके बाद ही यूडीएफ की असली समस्या शुरू होगी और सवाल उठेगा कि उनकी जबह किसे मुख्यमंत्री बनाया जाय। (संवाद)