आखिर सरकार ने वैसा क्यों किया? राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के संयोजक शरद यादव का कहना सही है कि जब विपक्ष केन्द्र सरकार के खिलाफ महंगाई और भ्रष्टाचार के मसले पर आंदोलन चला रहा था, तो उसे छोटा साबित करने के लिए खुद केन्द्र सरकार ने अन्ना को ज्यादा महत्व देना शुरू कर दिया। प्रधानमंत्री उनसे बातें करने लगे। सोनिया गांधी उनके पक्ष में बयान जारी करने लगीं।

केन्द्र सरकार ने अप्रैल में की गई अन्ना की भूख हड़ताल को तोड़ने के लिए लोकपाल विधेयक के मसौदे के लिए बनी मंत्रियों की समिति में अन्ना और उनके 4 अन्य सहयोगियों को शामिल कर लिया। इससे उनका महत्व और बढ़ा। मसौदा समिति बनाने के बाद उसमें शामिल अन्ना के लोगों के खिलाफ चरित्र हनन का प्रयास शुरू हो गया और उसमें सरकार को करारी मात मिली। उसके बाद तो फिर देश भर में अन्ना छा गए।

केन्द्र सरकार ने मसौदा समिति में तो उन्हें शामिल कर लिया, लेकिन उनकी मांगों को लोकपाल बिल के मसौदे में शामिल ही नहीं किया। इस तरह जिन मुद्दो को लेकर अन्ना अप्रैल में अनशन पर बैठे थे, वे मुद्दे अपनी ज गह पर बने रह गए। सरकार ने अपनी तरफ से तैयार करके जो विधेयक संसद में पेश किया है, उसके खिलाफ जब अन्ना ने 16 अगस्त से अनशन करने की घोषणा की तो केन्द्र सरकार का रवैया फिर मूर्खतापूर्ण था। सरकार ने अब उसे राजनैतिक मुद्दा मानने से ही इनकार कर दिया और कह दिया कि उनका अनशन एक कानूनी मुद्दा है, जिससे दिल्ली पुलिस कानूनी तरीके से निबटेगी।

फिर दिल्ली पुलिस ने अन्ना केा ही गिरफ्तार कर लिया। पुलिस गिरफ्तारी के बाद अन्ना को जेल भेजने से पहले ही रिहा कर सकती थी, जैसा कि इस तरह के मसले पर आमतौर से किया जाता है, लेकिन पुलिस ने खुद न छोड़कर उन्हें जेल भेज दिया और अदालत जाकर जमानत पाने का जिम्मा उनके ऊपर ही छोड़ दिया। उसके बाद तो अदालत जाकर जमानत लेने से ही अन्ना ने इनकार कर दिया और उनकी गिर्फतारी का देश व्यापी विरोध होने लगा।

केन्द्र सरकार की समस्या संसद में विपक्षी दलों ने और भी बढ़ा दी। विपक्षी दलों के लिए लोकपाल अथवा लोकपाल उतना बड़ा मसला नहीं है, लेकिन उन्होंने अन्ना की गिरफ्तारी को एक नागरिक द्वारा विरोध प्रकट करने के अधिकार के हनन के रूप में देखा और उस गिरफ्तारी को आपात्काल की आहट बताते हुए सरकार पर टूट पड़े। सरकार विपक्ष को लोकपाल मसले पर अन्ना से दूर करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन विपक्ष ने अन्ना की गिरफ्तारी को एक नागरिक के विरोध करने के मौलिक अधिकार के हनन के रूप में देखा और उसने संसद में सरकार की जान सांसत में डाल दी।

जिस तरीके से केन्द्र सरकार अन्ना के अनशन का विरोध कर रही थी, उसने देश के लोगों को उसके खिलाफ कर दिया। आज देश में अन्ना की आंधी चल रही है और सरकार को पता नहीं लग रहा है कि वह क्या करे। अन्ना की आंधी के सामने वह लगातार झुकती जा रही है। पहले तो पूलिस ने अन्ना को रिहा करने की घोषणा कर दी। यहां भी सरकार को अन्ना के हाथों मात खानी पड़ी, क्योकि रिहाई के बाद भी अन्ना ने जेल से निकलने से इनकार कर दिया और वह पुलिस तथा सरकार पर अनशन करने की इजाजत देने का दबाव बनाने लगे। दबाव काम भी आया और अंत में मजबूर होकर केन्द्र सरकार और दिल्ली पुलिस को रामलीला मैदान में अन्ना को अनशन करने की अनुमति देनी ही पड़ी।

इस बीच पूरे देश में अन्ना हजारे की आंधी चल रही थी। देश भर में एक बड़ा और तेज आंदोलन हो रहा है, जिसकी कोई भी सरकार अनदेखी नहीं कर सकती। अन्ना आज भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़े पं्रतीक बन गए हैं और भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदेालित हो रहे लोगों के केन्द्र बिन्दु बन गए हैं।

अब केन्द्र सरकार को यह पता नहीं लग रहा है कि उसे आगे क्या करना चाहिए। वह कह रही है कि अन्ना द्वारा प्रस्तावित जनलोकपाल बिल को संसद में नहीं लाएगी। वह अपने ही लोकपाल बिल को मजबूत बताकर एक मजबूत लोकपाल के गठन का दंभ भर रही है, जबकि अन्ना के लोग उस सरकारी लोकपाल को जोकपाल बता रहे हैं। इंटरनेट की मदद से अन्ना के लोग अपनी बात लोगों तक पहुंचाने में सफल भी हो रहे हैं। सच कहा जाय, तो यह आंदोलन ही इंटरनेट के माध्यम से खड़ा हुआ है और अन्ना के लोग ट्विटर और फेसबुक जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट्स का इस्तेमाल अपने आंदोलन में बखूबी कर रहे हैं और अल्ट्रा मॉडर्न लोगों को भी इसके माध्यम से अपने साथ जोड़ लिया है।

केन्द्र सरकार के पास अब एक ही रास्ता बच गया है कि वह अपनी जिद का त्याग कर दे और अन्ना के लोगों के साथ मिल बैठकर कोई बीच का रास्ता अपनाए। अन्ना के लोगों के लिए भी यही उचित होगा कि वह बीच का रास्ता अपनाते हुए इस आंदोलन की सफलता को फलीभूत होने दे। (संवाद)