कांग्रेस के प्रवक्ता के पास कहने के लिए इसके सिवा और क्या हो सकता था? राहुल को बोलने के लिए वे मजबूर तो कर नहीं सकते और राहुल बोलें या न बोलें यह निर्णय उनका होगा। पर कया वास्तव में सार्वजनिक जीवन से सबंधित इस बड़े राजनैतिक सवाल पर बोलना या न बोलना राहुल का अपना निजी मामला है? क्या राहुल गांधी इस मसले पर चुप रहने का अधिकार रखते हैं?
इसका जवाब सीधा नहीं है। थोड़ा टेढ़ा है। वह यह है कि किसी राजनैतिक मसले पर अपनी राय व्यक्त करना किसी बड़े राष्ट्रीय नेता का अधिकार ही नहीं, बल्कि कर्तव्य भी है। किसी भी नेता को यह स्पष्ट करना ही होगा कि भ्रष्टाचार जैसे मसले पर उसकी राय क्या है। राहुल गांधी अपने बोलने के अधिकार को तो स्थगित रख सकते हैं, लेकिन देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे एक बड़े राष्ट्रीय आंदोलन पर अपनी राय रखने के कर्तव्य से छुटकारा नहीं पा सकते। यदि वे चुप रहते हैं, तो इसका मतलब है कि राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य को निभा नहीं रहे हैं और अपने राष्ट्रीय दायित्चों को ताक पर रखकर राजनीति करने वाला कोई व्यक्ति अपने सुरक्षित राजनीतिक भविष्य के प्रति आश्वस्त नहीं रह सकता।
जाहिर है भ्रष्टाचार और उसके हल के लिए प्रस्तावित लोकपाल और जनलाकपाल के मसौदे पर चुप्पी साधकर राहुल अपनी राजनीति का ही नुकसान कर रहे हैं। वे कांग्रेस के साथ युवाओं को जोड़ने में लगे हुए हैं। वैसे वे सोनिया गांधी के बाद कांग्रेस के दूसरे सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण नेता हैं, लेकिन फिर भी उन्होंने महासचिव के रूप में युवा कांग्रेस और कांग्रेस की छात्र शाखा एनएसयूआई का प्रभार ले रखा है। पिछले कुछ समय से वे कांग्रेस के साथ युवाओं और छात्रों को जोड़ने के लिए काफी मेहनत भी की है। उसमें वे बहुत हद तक सफल भी रहे हैं। युवाओं को कांग्रेस के साथ जोड़कर पार्टी को अपनी पहले वाली चमक दिलाना उनकी रणनीति का हिस्सा है।
पर आज वही युवक और छात्र अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की रीढ़ हैं। युवाओं के सामने एक भ्रष्टाचार मुक्त भारत का खाका रखने में अन्ना की टीम के लोग सफल हुए हैं। उन्हें यह समझाने में यह टीम सफल हुई है कि यदि जनलोकपाल कानून बनता है तो भ्रष्टाचार को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इंठरनेट व अन्य जन संचार माध्यमों के इस्तेमाल से पहली बार देश में एक कानून बनाने के लिए इतना बड़ा आंदोलन खड़ा किया जा सका है।
यानी राहुल जिस युवाओं को कांग्रेस के साथ जोड़ना चाहते हैं, वे ही युवा आज अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी राष्ट्रीय आंदोलन की रीढ़ बने हुए हैं। उन युवाओं ने देश भर में एक ऐसा माहौल बना दिया है, जिसका शायद देश के इतिहास में दूसरा कोई उदाहरण ही नहीं है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक और कच्छ से कटक तक भ्रष्टाचार के खिलाफ एक जबर्दस्त राष्ट्रीय आंदोलन चल रहा है, जो युवाओं द्वारा संचालित है। अब यदि उन युवाओं से भ्रष्टाचार और लोकपाल को लेकर अपने विचार राहुल छिपाकर रखना चाहते हैं, तो फिर वे किस तरह उन्हें अपनी ओर खींच पाएंगे।
पिछले साल जब यूपीए सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के बड़े बड़े मामले आने लगे थे, तो युवाओं ने राहुल गांधी से उसके बारे में पूछना शुरू कर दिया था। तब राहुल ने कहा था कि उन्हें 10 साल चाहिए और इस 10 साल में वे देश से भ्रष्टाचार का खात्मा कर देंगे। तब युवाओं ने उनकी बात पर तालियां बजाई थीं और शायद राहुल की इस बात को मान भी गए थें कि भ्रष्टाचार व्यवस्था में इस तर घुली मिली हुई है कि इससे आसानी से छुटकारा नहीं पाया जा सकता। पर अब तो अन्ना की टीम ने जनलोकपाल कानून का एक ऐसा मसौदा तैयार कर रखा है, जिसे देख समझकर किसी को भी लगने लगता है कि भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए 10 साल का इंतजार करने की जरूरत नहीं है। यदि भ्रष्टाचार के खिलाफ सही कानून बने और लोकपाल का एक तंत्र खड़ा हो जाए, तो 60 से 65 फीसदी भ्रष्टाचार तो वैसे ही खत्म हो जाएगा।
सवाल उठता है कि राहुल गांधी जनलोकपाल कानून के इस मसौदे पर क्या रुख रखते हैं? आज केन्द्र में उनकी पार्टी की सरकार है। उस सरकार ने अपनी तरफ से एक विधेयक संसद में पेश कर रखा है। यदि राहुल कुछ नहीं बोलते हैं, तो यही माना जाएगा कि वे सरकारी लोकपाल बिल का समर्थन करते हैं, क्योंकि सरकार उन्ही की पार्टी की है। वे यह नहीं कह सकते कि वे सरकार में शामिल नहीं हैं। जिस किसी भी पार्टी की सरकार होती है, उस पार्टी की नीति के अनुसार ही सरकार चलती है। यह एक लोकतांत्रिक सत्य है। कोई भी सत्तारूढ़ दल सरकार की नीतियों से अपने आपको अलग नहीं बता सकता। हां, यदि गठबंधन की सरकार हो तो अपनी मजबूरी का इजहार कर सकता है कि गठबंधन के अन्य दलों के कारण वह अपनी नीति के अनुसार सरकार चला नहीं पा रहा है। पर यहां तो कांग्रेस मुख्य दल है और वह लोकपाल के मसले पर यह कह भी नहीं सकती कि गठबंधन के अन्य दलों के दबाव में वह जनलोकपाल बिल को नहीं ला पा रही है। यानी राहुल गांधी चुप रहकर यही साबित कर रहे हैं कि सरकारी लोकपाल को उनका समर्थन है।
क्या इस तरह संदेश देकर राहुल गांधी भविष्य की राजनीति को अपने अनुसार ढाल पाएंगे? भ्रष्टाचार के खिलाफ राष्ट्रीय आंदोलन को जो तीव्रता प्राप्त है, उसे देखकर कोई भी कह सकते है कि इसके पक्ष में नहीं खड़े होकर राहुल अपनी राजनीति को ही खराब कर रहे हैं। पिछले तीन महीनों के दौरान कांग्रेस ने भ्रष्टाचार के मसले पर अपना भारी नुकसान कर लिया है। मनमोहन सिंह की सरकार को आजाद भारत का सबसे भ्रष्ट सरकार कहा जा रहा है और यह सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ ढंग का कानून भी नहीं बना रही है। सरकारी पार्टी होने के कारण इससे नुकसान तो कांग्रेस का ही हुआ है। इस पर चुप रहकर राहुल गांधी अपनी छवि भी खराब कर रहे हैं। अभी भी वे नुकसान को कम कर सकते हैं और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सार्थक कानून और तंत्र. बनाने की दिशा में पहल लेकर युवाओं को आश्वस्त कर सकते हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उनके दर्द से वे भी सहानुभूति रखते हैं। (संवाद)
लोकपाल विधेयक पर राहुल की चुप्पी
चुप रहकर अपना ही नुकसान कर रहे हैं कांग्रेस महासचिव
उपेन्द्र प्रसाद - 2011-08-24 11:21
भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान राहुल गांधी केी चुप्पी किसी को भी अखर सकती है। आज देश में इतना हंगामा हो रहा है। भ्रष्टाचार पर राष्ट्रीय बहस चल रही है और अन्ना की टीम भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए एक व्यवहारिक कानून के मसौदे से देश के लोगों को अवगत कराने मे सफल हुई है। उस कानून के मसौदे को लेकर देश की आजादी के बाद का सबसे बड़ा आंदोलन चल रहा है, लेकिन राहुल गांधी उस पर चुप हैं। कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी से जब किसी पत्रकार ने पूछा कि राहुल गांधी इस मसले पर चुप क्यों हैं, तो कांग्रेस प्रवक्ता का कहना था कि राहुल कोई तोता नहीं हैं कि वह हमेशा बोलते रहें।