यही कारण है कि अनेक लोग यह सवाल उठाने लगे हैं कि अन्ना हजारे द्वारा प्रस्तावित लोकपाल कानून बन जाने से भ्रष्टाचार खत्म कैसे होगा, क्योकि लोग देख रहे हैं कि विरोधी सरकार द्वारा मुकदमा चलाने के बावजूद भ्रष्ट लोगों के खिलाफ कुछ नहीं हो पाता और वे दुबारा सत्ता में भी आ जाते हैं। जाहिर है खामी न्यायिक प्रक्रिया में भी है। इसलिए जबतक न्यायिक प्रक्रिया में सुधार नहीं होगा, तो फिर लोकपाल और लोकायुक्त बैठा देने मात्र से भ्रष्टाचार कैसे खत्म हो जाएगा? यह सवाल लोगों को मथ रहा है। इसके बावजूद लोग भारी संख्या में अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का समर्थन कर रहे हैं और चाहते हैं कि उनकी मांगे सरकार द्वारा मान ली जाए और भ्रष्टचार के खिलाफ कदम आगे बढ़ाया जाए।
दोनों राज्यों में भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे तक फैला हुआ है। सरकारी दफ्तरों मे छोटा काम करवाने के लिए भी घूस दिए बिना काम नहीं चलता। यही कारण है कि लोग इसके तरह के भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी न किसी प्रकार का कानूनी संरक्षण चाहते हैं और वे अन्ना हजारे के आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं।
जहां तक उ़़च्च स्तर पर भ्रष्टाचार का मामला है तो कांग्रेस की अमरिंदर सिंह ने सत्ता में आने के बाद 2002 में प्रकाश सिंह बादल और उनकी सरकार में शामिल कुछ लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाया था। गौरतलब है कि 2002 के पहले 1997 से राज्य में प्रकाश सिंह बादल की सरकार थी और उस सरकार में शामिल लोगों पर भ्रष्टाचार के बड़े बड़े आरोप लग रहे थे। उनकी सरकार जाने के बाद कांगेस की अमरिंदर सिंह की सरकार बनी और नई सरकार ने पुरानी सरकार में शामिल कुछ लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा चलाया। मुकदमा प्रकाश सिंह बादल के खिलाफ भी चला। प्रकाश सिंह बादल और उनके परिखर के लोगों के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति होने का मुकदमा चला था। मुकदमे की कार्रवाई चलती रही। कांग्रेस की सरकार का कार्यकाल पूरा होने को आया, लेकिन मुकदमा तबतक किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका था। फिर 2007 का विधानसभा चुनाव हुआ। उसमें कांग्रेस की पराजय हो गई। प्रकाश सिंह बादल फिर से मुख्यमंत्री हो गए।
अब प्रकाश सिंह बादल की सरकार खुद बादल के खिलाफ मुकदमे का वादी बन बैठी। फिर तो सरकारी गवाह ही बागी होने लगे। सरकार में आकर प्रकाश सिंह बादल ने गवाहों का पटा लिया और सबूतों को मिटा दिया। सरकारी वकीलो की दिलचस्पी सरकारी मुकदमे के हारने में हो गई। इस तरह प्रकाश सिंह बादल का बाल भी बांका नहीं हुआ।
सत्ता में आने के बाद प्रकाश सिंह बादल ने भी कैप्टन अमरिंदर सिंह पर मुकदमा ठोक दिया। वह मुकदमा अभी भी अदालत में चल रहा है और इस बीच प्रकाश सिंह बादल का कार्यकाल भी समाप्ति की ओर बढ़ रहा है। क्या पता फिर अमरिंदर सिंह राज्य के मुख्यमंत्री बन जाएं और उनके खिलाफ चल रहा मुकदमा भी उसी तरह रफा दफा हो जाए, जिस तरह प्रकाश सिंह बादल के खिलाफ चला मुकदमा रफा दफा हो गया।
हरियाणा में भी ओमप्रकाश चौटाला और उनके बेटों के खिलाफ मुकदमा चल रहा है। उसके भी समाप्त होने में समय लग रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव मे ंयदि चौटाला की पार्टी की जीत हो जाती, तो उनके खिलाफ चला मुकदमा भी बहंुत कमजोर हो जाता और उसका कोई सार्थक निष्कर्ष नहीं निकलता। गनीमत है कि दुबारा फिर कांगेस की ही सरकार आ गई। लेकिन अभी भी मुकदमा समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा है।
यानी हमारी न्यायिक प्रक्रिया बहुत ही सुस्त है। जल्दी फैसला ही नहीं हो पाता। भ्रष्टाचार का बहुत बड़ा कारण तो यही है। लोग उम्मीद भरी निगाहों से अन्ना के आंदोलन की ओर देख रहे हैं और सवाल कर रहे हैं कि क्या भ्रष्ट लोगो ंको सजा मिल भी पाएगी और सरकारी दफ्तरों में बिना घूस दिए काम होने लगेगा? (संवाद)
अन्ना का आंदोलन उत्तरी राज्यों में प्रासंगिक है
हरियाणा और पंजाब में भ्रष्ट नेताओं की भरमार
बी के चम - 2011-08-25 11:03
अन्ना हजारे के आंदोलन ने उत्तर भारत के हरियाणा और पंजाब राज्यों में भी लोगों को आंदोलित किया है। इन दोनों राज्यों मंे भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। सरकारें गठित होती हैं। उनमें शामिल लोग भ्रष्टाचार में लिप्त होते हैं और उनकी सरकार फिर चली जाती है। सत्ता खोने के बाद भी उनका कुछ नहीं बिगड़ता। नई सरकार यदि मुकदमा चलाती है, तो वह मुकदमा समाप्त होने का जल्दी नाम नहीं लेता। इस बीच मुकदमा चलाने वाली सरकार चली जाती है। जिनके खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था, वे फिर सरकार में आ जाते हैं। और फिर वे मुकदमे में बरी हो जाते हैं। यह पंजाब की कहानी है।