और जब राहुल ने अन्ना और भ्रष्टाचार के मसले पर अपना मुह खोला, तो सुनकर लगा कि वे चुप ही अच्छे थे। इसका कारण यह है कि उनकी भाषण में न तो 11 दिनों से भूखे अन्ना हजारे के प्रति कोई मानवीय संवेदना थी, न ही भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई आक्रोश था और न ही कोई देश में चल रहे एक बहुत बड़े राष्ट्रीय ओदालन की कोई फिक्र थी। उनकी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार को आंदोलन का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन उनकी भाषण में इस बात का कोई संदेश जारी होता नहीं दिखाई पड़ा कि उस सरकार को इन परिस्थितियों में क्या करना चाहिए।
पहली बात तो यह है कि अपनी चुप्पी तोड़ने के लिए उन्होंने गलत जगह का चुनाव कर रखा था। सोनिया गांधी ने अपनी अनुपस्थिति में पार्टी का कामकाज देखने और नीतिगत निर्णय लेने के लिए 4 सदस्यों की एक समिति बना रखी है, जिसके एक सदस्य राहुल गांधी भी हैं। उन्हें अपनी बात करने के लिए उस समिति की बैठक अथवा उस बैठक के बाद किसी प्रेस कान्फ्रंेस में अन्ना के मसले पर अपनी चुप्पी तोड़नी चाहिए थी। अपनी पार्टी के नेता के रूप में उन्हें देश और अपनी सरकार को संबोधित करना चाहिए था और भ्रष्टाचार व अन्ना के आंदोलन से जुड़े सवालो के जवाब देते हुए पत्रकारों का सामना करना चाहिए था। पर उन्होंने अपनी बात कहने के लिए लोकसभा के सदन का इस्तेमाल किया, जिसमें उनसे सवाल पूछने वाला कोई नहीं था।
राहुल गांधी ने अन्ना को भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में माहौल बनाने के लिए अपना आभार उस लहले में जाहिर किया, जिस लहजे में हारने वाला कोई खिलाड़ी जीतने वाले खिलाड़ी को मैच खत्म होते ही बधाई देता है। वे अन्ना के प्रति शुक्रिया व्यक्त कर रहे थे, क्योंकि अन्ना ने देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ माहौल बनाया है। क्या सचमुच अन्ना ने देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ माहौल बनाया? अन्ना तो राष्ट्रीय क्षितिज पर पिछले अप्रैल महीने से ही हैं, लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ माहौल तो करीब दो साल से बना हुआ है।
शायद राहुल यह भूल गए कि भ्रष्टाचार के खिलाफ माहौल केन्द्र सरकार के मंत्रियो व अन्य जगहों पर हो रहे भ्रष्टाचार के खुलासे के कारण हुआ है। आइपीएल की कोच्चि टीम के भ्रष्टाचार में केन्द्र के एक मंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला सामने आया था। माहौल उस समय से ही बनना शुरू हुआ था। उसमें मंत्री का इस्तीफा हुआ और उसके बाद तो भ्रष्टाचार व अनियमितता के एक के बाद एक अनेक मामले सामने आने लगे। एक मामले पर हंगामा समाप्त नहीं होता है कि दूसरा मामला सामने आ जाता है। भ्रष्टाचार के खिलाफ बने एक पद पर नियुक्ति का मामला भी विवाद का विषय बन गया, जिसमें देखा गया कि सरकार ने एक ऐसे व्यक्ति को मुख्य सतर्कता आयुक्त बना दिया था, जो खुद भ्रष्टाचार के मामले में एक मुकदमे का सामना कर रहा था। यानी भ्रष्टाचार ही नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार को लेकर सरकार की गंभीरता भी सवालों के घेरे में आ गई। सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार की निगरानी करने वाले उस पद से उस व्यक्ति को हटा दिया। तबतक इतना हल्ला हंगामा हुआ कि सरकार पूरी तरह बेपर्दा हो गई और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने की उसकी नीयत ही संदिग्ध हो गई। इस बीच भ्रष्टाचार के और भी मामले आते गए। मीडिया ने एक से एक भ्रष्टाचारों की कहानियां उजागर की। राष्ट्रमंडल खेल में भ्रष्टाचार का मामला अंतरराष्ट्रीय मामला बन गया और हमारे देश की छवि भी खराब हुई। यह सब उस समय हो रहा था, जब हमारे प्रधानमंत्री की ईमानदार छवि पर किसी को शंका नहीं थी। पर ईमानदार छवि वाला वह प्रधानमंत्री अपनी छवि के अनुसार भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई कर ही नहीं रहा था।
जाहिर है, देश की जनता के लिए यह भारी संकट का समय था। केन्द्र में सरकार का मुखिया बहुत ईमानदार पर उसकी सरकार अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार। वह प्रधानमंत्री भ्रष्ट लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने में लाचार भी दिख रहा था। इसके कारण देश के लोगों मे गुस्सा के साथ साथ भारी निराशा का भी भाव था। भ्रष्टाचार देश में शिष्टाचार बन गया था। लाखों करोड़ों रुपए के हो रहे घोटाले की खबरे देश में फेलने के साथ साथ सरकारी महकमों में ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार का साम्राज्य स्थापित होने लगा था। सरकारी दफ्तरों में काम करने वाले जो लोग कभी मेज के नीचे से रिश्वत लेते थे, अब आमने सामने होकर रिश्वत लेने लगे और किस काम का रिश्वत कितना है यह सार्वजनिक रूप से भी बताने लगे। यानी ऊंचे स्थानों पर होने वाले भ्रष्टाचार ने नीचे के दफ्तरों में होने वाले भ्रष्टाचार को वाजिब ठहराना शुरू कर दिया। पटना में तो एक रंगरूट महिला थानेदार ने एक जज की बीबी से से पासपोर्ट के वेरिफिकेशन के लिए 2000 रुपए की घूस मांग ली। सौ दो सौ रुपये देने पर लेने से इनकार कर दिया और कह दिया कि पासपोर्ट के पुलिस वेरिफिकेशन के लिए रिश्वत की रेट ही 2000 रुपए है। थानेदार यह बात हाई कोर्ट के जज के घर में जाकर ही बता रही थी। यानी भ्रष्ट लोग बेहद ही आक्रामक हो गए थे। ऐसे में भ्रष्टाचार के खिलाफ तो देश में माहौल बना हुआ ही था।
और तब अन्ना आया। अन्ना का महत्व इसलिए नहीं है कि उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में माहौल बनाया, बल्कि उनका महत्व इस बात को लेकर है कि उन्होंने लोगों में यह भरोसा दिलाया कि भ्रष्टाचार का इलाज हो सकता है। सरकार लोगों को बरगलाने के लिए लोकपाल कानून बनाने की बात कर रही थी। अन्ना से जुड़े कुछ लोगों ने जनलोकपाल बिल का मसौदा तैयार करके लोगों में विश्वास जगा दिया कि इसके द्वारा भ्रष्टाचार को बहुत हद तक मिटाया जा सकता है। इस तरह भ्रष्टाचार से हताश निराश लोगों को अन्ना ने आशा का दीप दिखाया कि यदि वे चाहें, तो भ्रष्टाचार मिट सकता है और खुद अन्ना ने इसके लिए अपनी जान को न्यौछाबर करने की घोषणा कर दी। इसके बाद तो देश में आजादी के बाद का सबसे बड़ा आंदोलन शुरू हो गया।
अब राहुल गांधी कह रहे हैं कि जनलोकपाल से भ्रष्टाचार पूरी तरह खत्म नहीं होगा। वह कौन सी नई बात कर रहे हैं? जनलोकपाल बिल बनाने वाले खुद कह रहे हैं कि इससे 60 से 65 फीसदी भ्रष्टाचार ही खत्म होगा। राहुल गांधी कह रहे हैं कि लोकपाल को निर्वाचन आयोग की तरह एक संवैधानिक संस्था होनी चाहिए। अन्ना भी तो यही चाहते हैं कि लोकपाल सरकार के नियंत्रण से मुक्त रहे। राहुल कहते हैं कि अन्ना का आंदोलन लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए खतरा है। पता नहीं राहुल गांधी का लोकतोत्रिक प्रक्रिया से क्या मतलब था, लेकिन जो अन्ना कर रहे हैं खुद भी एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है। संसद और सांसदों पर एक अहिंसक आंदोलन के द्वारा राष्ट्रहित में एक कानून बनाने के लिए दबाव डालना न तो अलोतांत्रिक है और न ही इससे संसद की गरिमा को ठेस पहुंचती है, बल्कि इससे देश की और लोकतंत्र की गरिमा थोड़ी बढ़ ही जाती है। (संवाद)
राहुल गांधी: चुप्पी और उसके बाद
यह क्या कह डाला राहुलजी?
उपेन्द्र प्रसाद - 2011-08-27 12:12
एक लंबे अरसे के बाद राहुल गांधी ने अन्ना के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन पर अपना मुह खोला। उनकी चुप्पी निश्चय ही अखरने वाली थी, क्योकि जो राजनीतिज्ञ राष्ट्रीय राजनीति कर रहा हो, वह राष्ट्रीय महत्व के मसले पर चुप कैसे रह सकता? लेकिन राहुल लंबे समय तक इस पर चुप रहे। एक बार भ्रष्टाचार के मसले पर पिछले साल बोलते हुए उन्होंने युवाओं से कहा था कि हमें 10 साल का समय दो, हम भ्रष्टाचार समाप्त कर देंगे। उसके बाद उन्होंने भ्रष्टाचार जैसे मसले पर कुछ बोलने की जरूरत नहीं समझी। अन्ना अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठे हैं और आजादी के बाद का सबसे बड़ा आंदोलन देश में चल रहा हो, उसके बाद भी राहुल चुप रहे।