खेल संगठनों पर सरकारी नकेल होनी चाहिए या नहीं, यह तो मूल प्रश्न है, जिसपर विवाद की गुजायश हो सकती है, लेकिन संसदीय कार्य राज्य मंत्री राजीव शुक्ला ने इस विवाद से संबंधित जो सार्वजनिक बयानबाजी की है, वह बेहद ही आपत्तिजनक है। वे खुद उसी मंत्रिपरिषद के सदस्य हैं, जिसमें खेल मंत्री अजय माकन भी हैं।
कहा जाता है कि सरकार की एक बोली होनी चाहिए। यानी सरकार के सभी मंत्री एक दूसरे से मिलता जुलता बयान देते नजर आने चाहिएं, लेकिन यहां तो एक मंत्री के विचार के साथ दूसरा मंत्री अपनी असहमति को सार्वजनिक किए जा रहे हैं। दो मंत्रियों में किसी मसले पर दो राय हो सकती है, लेकिन उस असहमति को इस तरह से सार्वजनिक करना केन्द्र सरकार की प्रतिष्ठा के प्रतिकूल है।
मनमोहन सिंह की सरकार अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार तो रही ही है, जिस तरह से राजीव शुक्ला अपने सहयोगी अजय माकन के एक नीतिगत फैसले का खुले आम विरोध कर रहे हैं, उससे इस सरकार की छवि परस्पर विरोधी बात करने वाली सरकार की भी बनती जा रही है। श्री शुक्ला को मंत्रिपरिषद की मर्यादा की भी चिंता नहीं है। यदि उनका खेल मंत्री से उनकी नीति पर मतभेद है, तो वे उनसे मिलकर या मंत्रिपरिषद की बैठक में अपनी असहमति जता सकते हैं। वे प्रधानमंत्री से मिलकर या पत्र लिखकर खेल मंत्रालय के प्रस्ताव के खिलाफ बोल सकते हैं, लेकिन यह सब खुलेआम करके वे एक ऐसा आचरण कर रहे हैं, जिसका शायद कोई पुराना उदाहरण न मिले।
दरअसल श्री शुक्ला केन्द्र सरकार में मंत्री होने के साथ साथ भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के उपाध्यक्ष भी हैं। वे जिस तरह से बयानबाजी कर रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि वे अपने को मनमोहन सिंह सरकार का मंत्री कम, बीसीसीआई का उपाध्यक्ष ज्यादा मानते हैं। इसलिए वे मंत्रिपरिषद की गरिमा को धूमिल कर रहे हैं।
यदि एक ही मंत्रिपरिषद के मंत्री एक दूसरे के खिलाफ ऐसी बयानबाजी करने लगें और यह अपवाद नहीं, बल्कि नियम बन जाए, तो उस सरकार का क्या होगा? जाहिर है, प्रधानमंत्री को एक मंत्री के बयान के खिलाफ दूसरे मंत्री द्वारा की जा रही बयानबाजी को रोकना चाहिए। यदि प्रधानमंत्री ऐसा करने में समर्थ नहीं होते हैं, तो उनकी भी छवि खराब होगी और लोग समझेंगे कि वे इतने कमजोर हैं कि अपने मंत्रियों को अपनी सीमा में रहने की सीख भी नहीं दे सकते। भ्रष्टाचार के मामले को लेकर मनमोहन सिंह की छवि वैसे भी बहुत खराब हो चुकी है। अपने मातहत मंत्रियों के मर्यादित आचरण को सुनिश्चित नहीं करवाने के कारण उनही छवि एक बेहद कमजोर प्रधानमंत्री की बन रही है।
खेल मंत्री अजय माकन खेल संगठनों के कामकाज को यदि पारदर्शी बनाना चाहते हैं, तो इसमें क्या बुरा है? हम जानते है कि दुनिया का दूसरी सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के बावजूद भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलों में फिसड्डी हैं। ऐसी बात नहीं कि भारत के युवको मे दमखम नहीं है, लेकिन हमारे देश का खेल जगत ऐसे खेल माफियाओं के कब्जे में है, जो खेल और ,खिलाड़ियों को आगे बढ़ने नहीं देते। हॉकी में भारत विश्व चैंपियन हुआ करता था और इसके कारण इसे हमने अपना राष्ट्रीय खेल बनाया। हॉकी की उत्पत्ति भी भारत में ही हुई है, लेकिन आज अपने इस राष्ट्रीय खेल में अंततराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेने तक के लाले पड़ रहे हैं। अन्य अनेक खेलों का भी यही हाल है।
खेलों पर भारत सरकार सालाना अरबों रुपए खर्च करती हैं, लेकिन उसका एक बहुत ही छोटा सा हिस्सा खिलाड़ि़यों पर खर्च होता है। बड़ा भाग खेल के प्रशासन तंत्र द्वारा ही सोख लिया जाता है और इस प्रशासन तंत्र पर कुंडली मारकर ऐसे लोग दशकों से बैठे हुए हैं, जो खिलाड़ी के रूप में उन खेलों से कभी संबद्ध ही नहीं रहे हैं। इसलिए यदि अजय माकन चाहते हैं कि खेल के प्रशासन मे ंउसी खेल के पूर्व खिलाड़ी शामिल रहें, तो उसमें क्या बुरा है?
आज हम भारत को एक महाशक्ति के रूप में देखने का सपना देख रहे हैं। भारत की विकासदर तेज है। यह हमारी खासियत है और इसके कारण विश्व समुदाय में हमारी प्रतिष्ठा बढ़ रही है। भारत दुनिया का एक बड़़ा आध्ुनिक बाजार है। 25 करोड़ की आबादी वाला यह बाजार दुनिया के नजरों मंे हमारी इज्जत बढ़ा देता है, लेकिन जब हमारे खिलाड़ी ओलंपिक व अन्य विश्वस्तरीय खेलों ेमें भाग लेते हैं और पदक तालिका में हमारा स्थान बहुत ही नीचे रहता है, तो एक भारतीय को कैसा महसूस होता है? हम उस अहसास के साथ यदि खेल मंत्री अजय माकन के प्रस्तावों को देखें, तो महसूस करेंगे कि खेल संगठनो का सरकारी नियंत्रण में लाना जरूरी है अन्यथा हमारा वहीं हाल होगा, जो अबतक होता रहा है।
खेल मंत्री के प्रस्ताव को कैबिनेट की मंजूरी नहीं मिली। कैबिनेट का यह एक दुर्भाग्यपूर्ण फैसला था। लोग कह रहे हैं कि शरद पवार ने खेल मंत्री की चलने नहीं दी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह शायद शरद पवार के सामने अपने आपको लाचार पा रहे हों, क्योंकि वे उनकी पार्टी के नहीं हैं और उनकी पार्टी को नाराज करना राजनैतिक रूप से न तो प्रधानमंत्री के और न ही उनकी कांग्रेस पार्टी के हित में है, लेकिन राजीव शुक्ला तो कांग्रेस पार्टी के ही हैं। वे जब सार्वजनिक रूप से खेल मंत्री के बयानों के खिलाफ बयानबाजी करते हैं, तो इससे सरकार के बारे में लोगों की खराब राय बनती है। शरद पवार कम से कम सार्वजनिक रूप से तो खेल मंत्री के साथ जुबान नहंी लड़ रहे हैं।
प्रधानमंत्री यदि चाहते हैं कि देश में खेल का अच्छा भविष्य बने और हमारा देश अंतरराष्ट्रीय खेल स्पर्धाओं में धाक जमाए और हम वास्तव में एक महाशक्ति कहलाने के काबिल बनें, तो खेल संगठनों के नापाक खेलों को बंद करना ही होगा। उसके लिए खेल मंत्री के प्रस्तावों को अपनी तार्किक परिणति तक पहुंचाना ही होगा। (संवाद)
खेल संगठनों पर सरकारी नियमन का मामला
अजय माकन का प्रस्ताव उचित है
उपेन्द्र प्रसाद - 2011-09-01 13:45
खेलमंत्री अजय माकन के एक विधेयक को मंत्रिमंडल में मंजूरी नहीं मिली और इसके साथ ही एक नया विवाद खड़ा हो गया है। वह विवाद तो वैसे लगभग सभी खेल संगठनों से संबंधित है, लेकिन भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और खेल मंत्रालय में इसको लेकर तनाव बना हुआ है और यह तनाव बहुत ही आपत्तिजनक रूप ले रहा है।