आंदोलन का नेत्त्व कर रहे लोगों के खिलाफ इस तरह की कार्रवाई कर सरकार आखिर हासिल क्या करना चाहती है? क्या वह यह साबित करना चाहती है कि आंदोलन से जुड़े ये लोग भी पाक साफ नहीं हैं और उनके पास इस तरह के आंदोलन से जुड़ने अथवा भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने का कोई नैतिक हक ही नहीं है? यदि सरकार ऐसा सोचती है, तो वह भारी गलती कर रही है, क्योंकि लोग आंदोलन के साथ अरविंद केजरीवाल अथवा किरण बेदी की करिश्माई व्यक्तित्व अथवा उनकी ईमानदारी और स्वच्छ छवि के किसी किस्से के कारण नहीं जुड़े हैं, बल्कि वे आंदोलन के साथ इसलिए खड़े हैं कि वे भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहते हैं।

यह सच है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व कर रहे लोगों का आचरण भी सही होना चाहिए। देश के लोग अरविंद केजरीवाल अथवा प्रशांत भूषण के बारे मे बहुत ही कम जानते हैं। किरण बेदी के बारे में कुछ लोगों को इसलिए पता है कि वह देश की पहली कुछ महिला पुलिस अधिकारियों में शुमार की जाती हैं। इसके अलावा उनके बारे में भी लोगों को ज्यादा पता नहीं है। जो लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे इस राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हैं, वे उनके बारे मेे ज्यादा जानना भी नहीं चाहते हैं, क्योंकि उनका लक्ष्य भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े कानून बनाना है, जिनकी हिमायत आंदोलन के ये नेता कर रहे हैं।

लेकिन सरकार लोगों को यह बताना चाह रही है कि ये नेता भी वैसे ही हैं, जैसे सरकार में शामिल राजनीतिज्ञ हैं। उनका दूसरा उद्देश्य डरा घमका कर इन लोगों को आंदोलन से दूर करना है। पर सरकार अपने दोनों उद्देश्यों में विफल होने वाली है, क्योकि अबतक वे लोगों को बताने में सफल नहीं हो पाई है कि टीम अन्ना के ये लोग नैतिकता की बातें करने का हक नहीं रखते।

शांतिभूषण और उनके बेटे प्रशांत भूषण को बदनाम करने के लिए जारी की गई सीडी झूठी साबित हो चुकी है। दिल्ली पुलिस भले उसे सच माने, लेकिन लोग ऐसा मानने वाले नहीं हैं, क्योकि चंडीगढ़ की प्रयोगशाला ने उस सीडी के झूठा होने का प्रमाण दे दिया है। दिल्ली पुलिस की छवि उतनी अच्छी नहीं है कि वह जो कहे, उसे लोग सही मान लें।

खुद अन्ना हजारें के खिलाफ भी अनाप शनाप बातें की गईं। उन्हें ऊपर से नीचे तक भ्रष्ट बताया गया। बाद में आरोप लगाने वाले को अपनी बात वापस लेनी पड़ी और माफी मांगनी पड़ी। अन्ना के खिलाफ बहुत कुछ बोला गया, लेकिन सबकुछ गलत साबित हुई और उसके कारण उनका कद और भी बढ़ता गया। अन्ना सेना में ट्रक का ड्राइवर हुआ करते थे। सेना के कार्यकाल के दौरान उनकी फाइल खंगाली गई और कहा गया कि उन्होंने ट्रक के रखरखाव करने वाले किसी 50 रुपए का मशीन खो दिया था। पाया गया कि ट्रक से वह मशीन या तो कहीं गिर गया था अथवा किसी ने उसे चुरा लिया था और अन्ना ने उसकी कीमत अपनी तनख्वाह से कटवाकर अदा कर दी थी।

यानी सरकार ने अन्ना के चरित्रहनन की कोशिश की उनका कद और भी बढ़ता गया। अन्ना टीम के अन्य सदस्यों के साथ भी सरकार जो कर रही है, उससे उनका कद बढ़ेगा ही। किरण बेदी, अरविंद केजरीवाल और प्रशांत भूषण के खिलाफ संसद की अवमानना के नोटिस जारी कर दिए गए हैं। ओमपुरी के खिलाफ भी इस तरह का प्रस्ताव पेश किया गया है। ओमपुरी तो अभिेनेता हैं और उन्होंन अपनी गलती के लिए माफी भी मांग ली है। यदि संसद में उन्हें संसदीय समिति अथवा संसद में बुलाया गया, तो वे वहां भी माफी मांग लेंगे। वैसे भी वे आंदोलन का नेतृत्व नही ंकर रहे हैं, बल्कि उसके समर्थक की हैसियत से मंत्र से भाषण कर रहे थे।

पर अन्ना की टीम के कोर ग्रुप के तीन नेताओं के खिलाफ संसद की अवमानना का नोटिस भेजकर का निर्णय उनके कद को ही बढ़ाएगा। किरण बेदी ने कह दिया है कि वे माफी नहीं मांगेगी और कोई भी सजा पाने के लिए तैयार रहेंगी। प्रशांत भूषण ने भी कहा है कि वे अपनी बात को वापस नहीं लेगंे, हालांकि उन्हें अभीतक यह भी पता नहीं है कि उनकी किस बात पर संसद की अवमानना का केस बनाया गया है। अरविंद केजरीवाल भी माफी मांगेंगे, इसकी संभावना कम ही है।

संसद की गरिमा सर्वोपरि है और इसका उन सबको ख्याल रखना चाहिए, जिन्हें भारतीय लोकतंत्र की परवाह है। अन्ना के नंतृत्व में भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहा यह राष्ट्रीय आंदोलन पूरी तरह से एक लोकतांत्रिक आंदोलन है, जिसका लक्ष्य संसद और सांसदों पर दबाव बनाकर एक सक्षम, सशक्त और प्रभावी लोकपाल कानून बनवाना है। टीम अन्ना के कोर ग्रुप के सदस्यों ने संसद की अवमानना अथवा उसके विशेषाधिकार का हनन किया या नहीं, इस पर दो मत हो सकते हैं। संसद में अनेक अपराधी चुनाव जीतकर आ रहे हैं। यह कहना कि संसद में अनेक अपराधी हैं, संसद की अवमानना है या नहीं, इस पर सबकी एक राय नहीं हो सकती। कुछ लोग कह सकते हैं कि यह तो एक तथ्यात्मक बात है, क्योंकि अनेक सांसदों के खिलाफ अपराध के मामले चल रहे हैं और अनेक के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले भी चल रहे हैं।

तो इस तरह के मामले में यदि टीम अन्ना के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें जेल भेज दिया जाता है, तो इससे लोगों के बीच में उनका कद बढ़ेगा ही और उनकी गिनती उन लोगों मे की जाने लगेगी, जो सच बोलने की सजा पाते हैं। पर सवाल उठता है कि इससे सरकार को क्या मिलेगा?

सच कहा जाए, तो सरकार को आज भ्रष्टाचार के खिलाफ जितना जोर लगाना चाहिए, उतना वे भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों के खिलाफ जोर लगा रही है। इससे उसके खिलाफ लोगों का गुस्सा और भी बढ़ रहा है। सरकार आंदोलन का दमन इन तरीकों से करना चाह रही है, लेकिन इससे वह आंदोलन के और भी तेज होने का माहौल तैयार कर रही है। एक तरफ सरकार जन आंदोलन के दबाव में आंदोलनकारियों के आगे थोड़ा झुक जाती है, तो आंदोलन का दबाव थोड़ा हटते ही फिर पहले की तरह तन जाती है। निश्चय ही सरकार की सेहत के लिए यह अच्छा नहीं है। (संवाद)