जब यूडीएफ की चांडी सरकार ने सत्ता हासिल की थी, तो उसने भ्रष्टाचार समाप्त करने को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता बताई थी। लेकिन सरकार में ऐसे लोगों को भर दिया गया, जिनकी छवि खराब है और जिनपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हुए हैं। चांडी के शुभचिंतको ने उन्हें समझाया था कि वे भ्रष्ट लोगों को अपनी सरकार मे शामिल नहीं करें, लेकिन उन्होंने भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे 6 विधायकों को मंत्री बना डाला।

श्री चांडी उससे ही संतुष्ट नहीं हुए। उन मंत्रियों के भ्रष्टाचार के मामलों की जांच कर रहे अधिकारियों का तबादला किया जाने लगा और लगभग सभी वैसे अधिकारियों का तबादला कर दिया गया। यह साफ साफ दिखाई पड़ रहा था कि मुख्यमंत्री अपने भ्रष्ट छवि वाले मंत्रियों को बचाने की कोशिश कर रहे थे।

सरकार ने एक ऐस पुलिस अधिकारी को फिर से बहाल कर लिया, जिसके ऊपर आतंकवादियों से सांठगांठ होने का आरोप था। उस पुलिस अधिकारी को उस आरोप के कारण ही निलंबित कर दिया गया था। उस अधिकारी की फिर से बहाली का निर्णय करते हुए कहा गया कि उसका निलंबन इसलिए समाप्त किया जाता है, क्योंकि केन्द्र सरकार का गृहमंत्रालय यही चाहता है। पर बाद में केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि उसने राज्य सरकार को उस पुलिस अधिकारी के निलंबन समाप्त करने को नहीं कहा था, बल्कि राज्य की चांडी सरकार का वह अपना फैसला था। उसके बाद तो राज्य सरकार के पास कहने के लिए कुछ था ही नहीं।

राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से भ्रष्टाचार के मामले में सजा पाए केरल कांग्रेस(बी) के नेता पूर्व मंत्री पी बालकृष्ण पिल्लै को बचाने में भी अपनी हदें पार कर दी। उन्हें जरुरत से ज्यादा पेरोल पर छोड़ा गया और बिमारी का बहाना बनाकर उन्हें जेल के बदले एक 5 स्टार अस्पताल में रखा गया।

राज्य सरकार अपने मंत्रियों और अधिकारियों को तो भ्रष्टाचार के मामले में बचाती रही, लेकिन उसने दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री वी एस अच्युतानंदन और उनके बेटे के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले तैयार करने लगी।

शिक्षा के क्षेत्र में भी राज्य सरकार ने विवादास्पद निर्णय लिए। उसने शिक्षा को कार्पोरेट घरानों के लिए खोल दिया। ग्रेड सिस्टम को समाप्त कर परीक्षा की पुरानी प्रणाली को उसने फिर से बहाल कर दिया। इसका राज्य के छात्रों और उनके अभिभावको ने भारी विरोध किया।

कसारगढ़ हिंसा की जांच कर रहे एमए निजार आयोग को भंग कर राज्य सरकार ने एक और विवादास्पद निर्णय लिया। इसका कारण यह है कि आयोग ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में हिंसा के लिए इंडियन यूनियम मुस्लिम लीग को जिम्मेदार बताया था और उसके नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने की सिफारिश की थी।

राज्य सरकार ने राज्य के निजी मेडिकल कॉलेज को भी फायदा पहुंचाने की कोशिश की। उनके निर्णयों को उसने समय पर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी और उन्हें सरकारी कोटा की सीटों को प्रबंधन कोटा में तब्दील करने से नहीं रोका।

और अनेक विवादास्पद निर्णय सरकार ने किए। यह राज्य सरकार की 100 दिनों की उपलब्धियां है। (संवाद)