इन 40 वर्षों में नदियों का पानी इतना बह चुका है कि अतीत के झरोखे या भावनाओं से द्विपक्षीय संबंधों का मूल्यांकन संभव नहीं। संबंधों के रास्ते इतनी बाधायें और चुनौतियां बढ़ गईं हैं जिनके समाधान के लिए इतिहास की भावनाएं थोड़ा मनोवैज्ञानिक माहौल तो निर्मित कर सकतीं हैं, पर रास्ता तो वर्तमान के सख्त यथार्थ से ही निकलेगा। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की दो दिवसीय यात्रा का लक्ष्य वास्तव में संबंधों को प्रगाढ़ और शत-प्रतिशत विश्वास के धरातल पर खड़ा करने के मार्ग में उत्पन्न बाधाओं और चुनौतियों का समाधान निकालना ही था। हालांकि दोनों देशों के बीच इंदिरा गांधी के शासनकाल में ही व्यापक संधि हुई थी, जिसमें आगे कुछ संशोधन होते रहे, पर मनमोहन की यात्रा के समान महाविस्तृत एजेंडा वाली यात्रा कभी नहीं हुई थी। इसीलिए इसे ऐतिहासिक यात्रा माना गया। तो क्या इस यात्रा के फलितार्थ भी उतने ही ऐतिहासिक और युगान्तकारी माने जा सकते हैं?

प्रधानमंत्री का पूर्वोत्तर के चार राज्यों असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम के मुख्यमंत्रियों के साथ जाना ही यह साबित कर रहा था कि इस बार वे सारी लटकी समस्याओं और मुद्दों का निपटारा कर लेना चाहते हैं। अगर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार गईं होतीं तो नजारा वाकई विलक्षण होता। इन सभी राज्यों की सीमायें बंगलादेश के साथ जुड़तीं हैं। लेकिन स्थानीय राजनीति और मनोविज्ञान 40 वर्ष पूर्व की गाथाओं और आमार बांग्ला विचार पर भारी पड़ी। सच कहें तो ममता के बंाग्लादेश नहीं जाने के निर्णय सेयात्रा के पूर्व निर्मित संवेग कमजोर हो गया था। प्रश्न था कि जिस यात्रा के साथ भारत बंगलादेश संबंधों को ऐतिहासिक मुकाम मिलने की आधारभूमि खड़ी होने की संभावना देखी जा रही थी उसे कैसे बचाया जाए? तीस्ता पर समझौता न होने की सूचना से बंाग्लादेश मंे निराशा फैल चुकी थी। तीस्ता नदी सिक्किम से निकलती है और बंाग्लादेश तक जाती है। इसके प्रस्तावित जल बंटवारे को लेकर प. बंगाल में मतैक्य नहीं है।एक वर्ग का मानना है कि इसमें बंाग्लादेश को अधिक जल मिल जाएगा। माकपा ने इसे मुद्दा बना दिया है। भारत बांग्लादेश के बीच नदी जल बंटवारा सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है, क्योकि छोटी-बड़ी 54 साझा नदियां हैं। तीस्ता इनमें विशेष महत्व रखती है। तिस्ता समझौता न होने के कारण बंाग्लादेश ने फेनी नदी पर समझौते को भी टाल दिया। फेनी नदी त्रिपुरा से निकलती है और इसका दूसरा किनारा बांग्लादेश में है। भारत ने फेनी नदी पर समझौता करने की पूरी कोशिश की, पर यह संभव न हो सका।

प्रधानमंत्री ने अपने वक्तव्य में ममता के नहीं जाने को निराशाजनक माना, पर एक झटके पर तो यात्रा के संवेग एवं संभावनाओं को नष्ट नहीं होेने दिया जा सकता था। दोनों प्रधानमंत्रियों की परिपक्वता से यात्रा परिणामविहीन होने से ही नहीं बची, ऐतिहासिक भी बनी। वस्तुतः ममता के तीस्ता जल प्रवाह से पूरी यात्रा बह जाने की आशंका को दोनों प्रधानमंत्रियों की बुद्धिमता ने बचा लिया एवं व्यापार तथा सीमा क्षेत्र समझौते की दिशा में ऐतिहासिक प्रगति हुई। सीमा समझौता प्रधानमंत्री की यात्रा का कूटनीतिक केन्द्रक माना जा सकता है जिसमें 162 प्रतिकूल इलाकों के हजारों निवासियों को नागरिकता का अधिकार मिला। नागरिकता नहीं मिलने से वे लोग तकनीकी तौर पर राज्यविहीन थे एवं उन्हें व्यवहार में कोई नागरिक अधिकार उपलब्ध नहीं था। शिक्षा और स्वास्थ्य की मूलभूत सुविधाओं से वंचित तथा हमेशा पुलिस, व सुरक्षा बलांे की आशंकाओं का शिकार होने वाले उन लोगों के लिए प्रधानमंत्री की यह यात्रा मुक्ति का आधार कायम करने वाली साबित होगी। ये इलाके भौगोलिक संरचना के कारण एक दूसरे का भाग होते हुए भी अपने देश से कटे हुए हैं। असम के सांसदों ने कुछ क्षेत्र सौंपने पर आपत्ति उठाई है, इससे लगता है कि अभी निपटारा में थोड़ा समय लगेगा, लेकिन बंगलादेश की मुक्ति के बाद पहली बार दोनों देशों की भू सीमा का स्पष्ट रूप से रेखांकन कर दिया गया है और समस्यामूलक इलाकों का मामला बहुत हद तक हल हो गया है। पड़ोसियों में एकमात्र बंाग्लादेश ही होगा जिसके साथ हमारी भू सीमा रेखा स्पष्ट खींची होगी। बंाग्लादेशी घुसपैठियों या अप्रवासियों की समस्या भी अत्यंत गंभीर है जिनका संबंध पूर्वोत्तर के राज्यों से बहुत ज्यादा है। उम्मीद करनी चाहिए कि आनेवाले समय में इसका भी कोई निदान अवश्य निकलेगा।

सीमा के बाद मूल बाधा और चुनौतियां व्यापार क्षेत्र में थीं। भारत नें काफी रियायतें दी हैं। बंाग्लादेश की हमेशा से शिकायत रही है कि उनका आपसी व्यापार एकपक्षीय भारत की ओर झुका हुआ है। भारत बंाग्लादेश को 300 करोड़ डॉलर का निर्यात करता है, जबकि बांग्लादेश का भारत को निर्यात 40 करोड़ डॉलर है। प्रधानमंत्री ने 46 वस्त्र उत्पादों एवं 15 अन्य यानी 61 वस्तुओं को कोटा व शुल्क मुक्त प्रवेश की घोषणा करके इस शिकायत को दूर करने की चेष्टा की है। बांग्लादेश पिछले एक वर्ष से दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार समझौते के तहत सभी 61 वस्तुओं को संरक्षित वस्तुओं की श्रेणी में शामिल करने की मांग कर रहा था। समझौते से उसकी यह मांग पूरी हो गई है। वर्तमान वैश्विक आर्थिक संकट के समय यह साधारण रियायत नहीं है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत आपसी व्यापार बढ़ाने के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों मंे बुनियादी ढांचा मजबूत कर रहा है जिससे बांग्लादेश को भारत में सामान भेजने में सुविधा होगी। बांग्लादेश द्वारा उठाए गए गैर शुल्क बाधाओं से जुड़े मुद्दों का भी समाधान निकाला जा रहा है। बांग्लादेश के उद्योग संगठनों की शिकायत है कि उन्हें निर्यातों की अनिवार्य जांच, सीमावर्ती क्षेत्र में खराब बुनियादी ढांचा, सीमित परिवहन मार्ग और भारतीय कारोबारी वीजा प्राप्त करने में कठिनाइयां आतीं हैं। प्रधानमंत्री सिंह की घोश्णा के बाद बांग्लादेश के वाणिज्य मंत्री फारुक खान ने कहा है कि कारोबार की गैर शुल्क बाधाएं समाप्त होने से बांग्लादेश को लाभ होगा।

इस प्रकार यात्रा ममता की तीस्ता प्रवाह में नही बही और यह युगांतकारी एवं ऐतिहासिक महत्व का साबित हो सकाा। तटस्थ मूल्यांकन करें तो इस यात्रा से शेख हसीना एवं मनमोहन सिंह दोनों की प्रतिष्ठा बची तथा वाकई बांग्लादेश के पूर्व शासन में अविश्वास की जो परतें जमीं थी सीमा तथा व्यापार समझौते से हटना आरंभ हुआं हैं। लेकिन इस सहयोग को आगे ले जाने के लिए पारगमन एवं जल बंटवारा की दिशा में आगे बढ़ना होगा। भारत को भूमि से घिरे अपने पूर्वोत्तर राज्यों के लिए बंाग्लादेश होकर मार्ग चाहिए, जिस पर अभी काम करना होगा। बांग्लादेश ने नेपाल से ढाका पारगमन का रास्ता दे दिया है, पर व्यापारिक मार्ग के लिए पत्रों का आदान-प्रदान रुक गया है। पारगमन एवं जल बंटवारा दोनों अपरिहार्य होते हुए भी अभी तक अपूर्ण सख्त एजेंडे के रुप में खड़े हैं। इन्हें नरम कर परस्पर हितों की दृष्टि से स्वीकार्य व्यावहारिक समझौता जितनी जल्दी हो दोनों देशों के लिए उतना ही अच्छा होगा।

संयुक्त वक्तव्य एवं प्रधानमंत्री सिंह के बयानों से ऐसा होने की उम्मीद बंधी है। वक्तव्य में कहा गया है कि न्यायसंगत एवं समानता के आधार पर तिस्ता एवं फेनी जल बंटवारे की शीघ्र समझौते के लिए अंतरिम समझौते के सिद्धांतों एवं प्रारूप पर प्रगति हुई। बेशक, हुई और प्रधानमंत्री की बात मानी जाए तो वे स्वयं एवं राष्ट्रीय सुरक्षा सलहाकार शिवशंकर मेनन लगातार ममता बनर्जी के संपर्क में थे। संयुक्त नदी आयोग, सचिव एवं तकनीक स्तरीय बैठकों में मनु, मुहुरी, खोवाई, गुमती,धरला, दूधकुमार आदि नदियों के जल बंटवारे के विभिन्न पहलुओं पर बातचीत कर रहे हैं और इनके परिणाम जल्द आने वाले हैं। वास्तव मंे प्रधानमंत्री का यह कहना सही है कि यदि जल बंटवारा समझौता हो जाता तो स्थिति काफी बेहतर हो जाती। बंाग्लादेश के लिए इसका महत्व बहुत ज्यादा था। लेकिन जैसा उन्होेंने कहा साझा नदियां हमारे लिए मतभेद का कारण नहीं बल्कि विकास का अग्रदूत बनना चाहिए। उन्होंने तीस्ता एवं फेनी दोनों नदियों पर परस्पर स्वीकार्य समझौता शीघ्र समझौता का जो वचन दिया वह जल्द साकार हो यही हम सबकी कामना होगी। इसके बगैर भारत बांग्लादेष संबंध बाधाओं ओर चुनौतियों से मुक्त नहीं हो सकता। (संवाद)