ओजोन परत क्या है
ओजोन परत, ऑक्सीजन के तीन अणुओं से बनी ओजोन की सतह है जो भूतल से 10-15 किमी की ऊंचाई पर विद्यमान है और सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों से हमारी रक्षा करता है। 1970 ईसवी में, वैज्ञानिकों ने पाया कि क्लोरोफलोरो कार्बन (सीएफसी) के उत्सर्जन की वजह से ओजोन परत की सतह का क्षय हो रहा था, नतीजतन ओजोन छिद्र अस्तित्व में आया। सन 1985 में सभी राष्ट्रों ने वियना सम्मेलन में ओजोन परत की सुरक्षा के लिए पारस्परिक सहयोग हेतु ढांचा विकसित किया। यह हस्ताक्षरित समझौता, ओजोन परत की सुरक्षा हेतु वियना संधि के नाम से जाना गया।
सीएफसी समेत ओजोन परत के क्षय के कारकों की समाप्ति हेतु सभी अन्तर्राष्ट्रीय संधियों की अगुवाई यूएनईपी कर रहा है। सीएफसी का उपयोग औद्योगिक शीतकरण, एयरोसोल और कीटनाशक मिथाईल ब्रोमाईट में किया जाता है।
विकासशील राष्ट्रों को कीटनाशक के तौर पर मिथाईल ब्रोमाईट के उपयोग को रोकने हेतु विशेष प्रयास की जरूरत है, साथ ही सीएफसी के अवैध व्यापार को रोकने की भी जरूरत है। प्रतिवर्ष विश्व भर में 1,30,000 से ज्यादा मामले सामने आते हैं जबकि भारत में 66,000 लोगों की मौत त्वचा के कैंसर से होती है।
मॉंट्रियल संधि
सऩ 1987 ईसवी में, 24 देशों के प्रतिनिधियों ने मॉंट्रियल में बैठक कर, संसार को आगाह किया कि ओजोन परत का ह्रास रोकना नितांत आवश्यक है। ओजोन परत क्षयन के कारकों पर मॉंट्रियल संधि को इतिहास में सबसे सफल अतंर्राष्ट्रीय पर्यावरण संधि के रूप में चिन्हित किया गया है। मॉंट्रियल संधि की अन्य महत्वपूर्ण उपलब्धि, वैश्विक जागृति है। विश्व के सभी राष्ट्रों ने इस महत्वपूर्ण संधि को लागू करने का निश्चय किया है। यह पूरे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को ओजोन परत से सुरक्षा हेतू एक मंच पर लाता है।
यह संधि दशकों के अनुसंधान के परिणामस्वरूप सामने आया था जिसने ये बताया कि क्लोरीन और ब्रोमीन युक्त रसायनों का वातावरण में उत्सर्जन, ओजोन परत को क्षतिग्रस्त कर सकता है। स्टार्टोस्फेयर में क्षतिग्रस्त ओजोन परत से होकर, सूर्य की अल्ट्रावॉयलेट किरणें प़थ्वी तक पहुंचती हैं और मनुष्य को नुकसान पहुंचाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 12 से 15 मिलियन लोग मोतियाबिन्द से अंधे होते हैं, प्रतिवर्ष संसारभर में जिसका लगभग 20 प्रतिशत, सूर्य की किरणों के प्रभाव से होता है।
अतिसीमित जानकारी के आधार पर संधि ने सदस्य देशों की ओजोन परत़ क्षय करने वाले कारकों जैसे क्लोरो फ्लोरो कार्बऩ, हेलोन्स़, कार्बन टेट्राक्लोराइड आदि के पूर्ण प्रतिबंध पर बल दिया। बाद में अनुसंधान के परिणामस्वरुप अन्य कारकों जैसे हाईड्रो क्लोरो-फ्लोरो कार्बन और मिथाईल ब्रोमाईड आदि को तय समय पर क्षय कम करने हेतु संधि के अंतर्गत सम्मलित किया गया।
प्रारंभ में, मॉंट्रियल संधि, बीस सालों से ज्यादा समय से प्रभाव में है। यह अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का एक अनूठा उदाहरण है और ओजोन परत विनाशकारी कई कारकों के उत्पादन और उपयोग को पूर्णतया नियंत्रित कर चुका है। 1 जनवरी, 2010 को ओजोन परत के मुख्य विनाशकारी कारकों जैसे कि सीएफसी, सीटीसी और हेलॉस के उत्पादन और उपयोग पर पूर्णतया नियंत्रण कर लिया गया है। इससे केवल स्टैटोस्फेरिक ओजोन की ही सुरक्षा नहीं हुई है। इसका वातावरण पर भी अनुकूल प्रभाव पडा है।
भारतीय सहभागिता
भारत़ ओजोन परत को क्षय करने वाले कारकों के मॉंट्रियल समझौते और ओजोन परत की सुरक्षा हेतु वियना संधि का सदस्य होने के नाते ओजोन परत की सुरक्षा हेतु और ओजोन परत के विनाशकारी कारकों जैसे सीएफसी, हैलॉन्स, सीटीसी, मिथाईल क्लोरोफॉर्म, मिथाईस ब्रोमाईज और एन सी एफ सी पर नियंत्रण हेतु वैश्विक मसलों पर अपनी सहभागिता देता आया है। ये रसायन औद्योगिक और औषधियों एयरोसोल में, शीत करण में वातानुकूलित यत्रों में फोम उत्पादन अग्निशामक यंत्रों में घातक स्वच्छता और वस्त्र सफाई आदि में उपयोग किये जाते हैं।
वर्ष 1993 से मॉट्रियल संधि को लागू करने के लिए उत्तरदायी राष्ट्रों के संयुक्त प्रयास से भारत ने अस्थमा, पुराने फेफड़े रोगों (सीओपीडी) और अन्य सांस की बीमारियों आवश्यक के उपचार के लिए तथा आवश्यक उपयोग नामांकन के तहत दर्ज अन्य औषधीय आवश्यकताओं के उपयोगों को छोड़कर सीएफसी, सीडीसी और हेलॉन्स के उत्पादन और उपयोग पर सफलता पूर्वक नियंत्रण कर लिया है।
लक्ष्य से आगे भारत
भारत ने मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को लागू करने की निर्धारित समयसीमा 1 अगस्त, 2008 से 17 महीने पहले ही सीएफसी के उत्पादन और खपत पर रोक लगा ली है। हालांकि, औषधीय श्रेणी की सीएफसी की आपूर्ति इस महत्वपूर्ण क्षेत्र को सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त कदम उठाये गये हैं और कई एमडीआई अब भी प्रोटोकॉल के आवश्यक उपयोग प्रावधानों के तहत खासकर, गंभीर हालात में देश में लाखों अस्थमा और सीओपीडी रोगियों की सेवा में लगे हुए हैं। भारत ने प्रोटोकॉल के आवश्यक उपयोग प्रावधानों के तहत 2010 में देश में औषधिनिर्माण के लिए औषधीय श्रेणी की 343.6 मीट्रिक टन सीएफसी को मंजूरी दे दी। भारतीय एमडीआइ उत्पादकों ने अधिकांश एमडीआइ के लिए सीएफसी मुक्त व्यवस्था बनाने की दिशा में उत्कृष्ट प्रगति की है और बाजार में सीएफसी मुक्त एमडीआइ की उपस्थिति सुलनिश्चित की। इसके परिणामस्वरूप 2011 में भारत को सीएफसी की कोई जरूरत नहीं रही।
सीएफसी, सीडीसी और हेलॉन्स के उत्पादन के उन्मूलन में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की सफलता को रेखांकित करने के लिए संबद्ध पक्षों की 19वीं बैठक सितंबर, 2007 में आयोजित की गयी और आगामी 10 साल में एचसीएफसी के चरणबद्ध उन्मूलन का निर्णय लिया गया। इसकी खपत और उत्पादन के लिए क्रमश: 2010 और 2009 आधारभूत वर्ष तय किये गये हैं। यह कमी 2013 से शुरु हो जाएगी और चरण-1 त्वरित उन्मूलन कार्यक्रम के अनुसार 2015 से इसमें आधारभूत वर्ष के मुकाबले से 10% की कमी की जाएगी।
उद्योगों, संबंधित उद्योग संघों, अनुसंधान संस्थानों, संस्थागत उपयोगकर्ता संगठनों, गैर सरकारी संगठनों आदि के सहयोग से एचसीएफसी उन्मूलन प्रबंधन योजना (एचपीएमपी) तैयार की जा रही है। इस क्षेत्र में कार्यरत समूहों की बैठक सितंबर, 2009 में आयोजित की गयी थी जिसके परिणामों के आधर पर भारत में एचसीएफसी उन्मूलन का रोडमैप अक्टूबर, 2009 में जारी किया गया था। चरण-1 के लिए एचपीएमपी को अंतिम रूप देने का काम उद्योग जगत और अन्य हितधारकों से परामर्श के जरिए जारी है।
नई प्रौद्योगिकियों का शीघ्र प्रयोग
सरकार ने मौजूदा और नए उद्यमों द्वारा नई प्रौद्योगिकियों के शीघ्र प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय और विनियामक दोनों स्तरों पर कई नीतिगत उपाय किये हैं। एमएलएफ द्वारा वित्त पोषित परियोजनाओं में ओडीएस उन्मूलन के विस्तार के लिए आवश्यक पूंजी माल पर सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क छूट दी जाती है और ये भौतिक प्रोत्साहन नए औद्योगिक प्रतिष्ठानों तथा मौजूदा प्रतिष्ठानरों के क्षमता विस्तार में गैर-ओडीएस प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के लिए भी दिये जाते हैं। ओजोन क्षयकारी पदार्थों के उत्पादन, उपभोग और व्यापार पर रोकथाम के लिए ओजोन क्षयकारी पदार्थ (विनियमन और नियंत्रण) नियमावली, 2000 लागू कर दी गयी है। यह नियमावली पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत 19 जुलाई, 2000 से प्रभावी है। प्रोटोकॉल में निर्दिष्ट लक्ष्यों पूरा करने के लिए राष्ट्रीय उन्मूलन अभियान निष्पादन के लिए इस नियमावली में समय समय पर संशोधन किये गये हैं।
ओजोन दिवस: लक्ष्य से आगे भारत
कल्पना पालखीवाला - 2011-09-16 14:08
ओजोन दिवस प्रतिवर्ष 16 सितम्बर को ओजोन परत के अन्तर्राष्ट्रीय संरक्षा दिवस के तौर मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 1995 में ओजोन परत की रक्षा संबंधित मॉट्रियल संधि पारित होने की याद में इस दिवस को उत्सव के तौर पर चिह्नित किया गया है। यह संधि विश्व भर में वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर ओजोन परत के सुरक्षा हेतु ध्यानाकर्षण और क्रियान्वयन हेतु अवसर प्रदान करती है। इस वर्ष का उत्सव का विषय है एचसीएफसी उन्मूलन का अनूठा अवसर।