यही कारण है कि राज्य की तमाम पार्टियां मुसिलम मतों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए तरह तरह की राजनीति कर रहे हैं। मुख्यमंत्री मायावती ने इसी राजनीति के तहत प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक चिटठी लिखी है, जिसमें उन्होंंने मुसलमानों को उनकी आबादी के अनुपात में शैक्षिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने की माग की है।
मुख्यमंत्री ने अपनी चिटठी में लिखा है कि यदि इसके लिए संविधान में संशोधन करना पड़े तो वह भी किया जाना चाहिए। मायावती ने प्रधानमंत्री को भरोसा दिया है कि इस काम के लिए केन्द्र सरकार द्वारा किए गए किसी भी संविधान संशोधन की कोशिश का उनकी पार्टी संसद में समर्थन करेगी। पत्र में मुसलमानों के पिछड़ेपन की चिंता करते हुए कहा गया है कि उन्हें सत्ता में सही भागीदारी नहीं मिल पा रही है और वे लगातार पिछड़ते जा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री ने मुसलमानों के हित में सच्चर समिति और रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग करते हुए कहा है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस दिशा में केन्द्र सरकार ने कोर्इ गंभीर प्रयास नही किया।
राजनैतिक पंडित मायावती की इस चिटठी को मुसलमानों के मत पाने की राजनैतिक कोशिश कह रहे हैं। मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी ने मायावती के इस कदम पर कड़ी प्रतिकि्रया व्यकत करते हुए कहा है कि यह उनका दिखावा है और यदि वह वास्तव में मुसिलम हितों की चिंता करती हैं तो वह बताएं कि उनकी सरकार ने अपने कार्यकाल में मुसलमानों के लिए क्या किया।
समाजवादी नेता अहमद हसन ने अपनी प्रतिकि्रया जाहिर करते हुए कहा कि मायावती की सरकार राज्य में बहुमत में है। वह यह बताए कि अपने कार्यकाल में उन्होंने मुसलमानों के सामाजिकए आर्थिक और सांस्कृतिक उत्थान के लिए क्या किया। अहमद हसन का कहना है कि मुलायम सिंह की सरकार के समय पुलिस मं हुर्इ बहालियां मं 14 फीसदी मुसलमानों को बहाल किया गया था, जबकि माया सरकार के दौरान हुर्इ बहालियों में सिर्फ 2 फीसदी मुसलमानों को ही पुलिस बल में लिया गया है।
समाजवादी नेजा ने यह भी बताया कि 2011-12 वित्त वर्ष में मुसलमान छात्रों की छात्रवृतित के लिए केन्द्र सरकार ने 35 करोड़ रुपए जारी किए, लेकिन राज्य सरकार ने अभी तक उसे छात्रों के पास पहुंचने नहीं दिया है।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव आजम खान ने कहा कि मायावती एक तरफ तो मुसलमानों को आरक्षण देने की मांग कर रही है, जबकि दूसरी ओर वह अलीगढ़ सिथत मौलाना अली जौहर यूनिवर्सिटी में छात्राें के प्रवेश की इजाजत ही नहीं दे रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि मायावती के शासनकाल मे मुसलमानों पर अत्याचार और भी बढ़ गए हैं।
भाजपा के नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने भी इस चिटठी के लिए मायावती की आलोचना की। उन्होंने आरोप लगाया कि मुसलमानों का वोट लेने के लिए ही वह यह मुसिलम आरक्षण कार्ड खेल रही हैं। उन्होनें कहा कि मायावती को यह बताना चाहिए के पिछले साढ़े 4 सालों में उनकी सरकार ने मुसलमानों के लिए क्या किया।
दूसरी तरफ अनेक मुसिलम धार्मिक नेताओं ने प्रधानमंत्री को चिटटी लिखने के मायावती के इस कदम की प्र्रशंसा की है। र्इदगाह के नायब इमाम मौलाना खालिद रशीद ने मायावती को इसके लिए धन्यवाद दिया है। उन्होंने कहा कि सच्चर समिति और रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफारिशो से भी यही साबित होता है कि मुसलमानों को अपने आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक उत्थान के लिए आरक्षण चाहिए।
मुसिलम पर्सनल बोर्ड के कानूनी सलाहकार जफरयाब जिलानी ने कहा है कि उन्होंने चिटठी के मजमून को देखा है और बोर्ड की अगली बैठक में इस पर विचार किया जाएगा। वह बैठक 28 अक्टूबर को होगी।
शिया धार्मिक नेता मौलाना काल्बे जवाद ने मुख्यमंत्री मायावती को यह बताने के लिए कहा है कि उनके कार्यकाल में मुसलमानों को कितनी संख्या में सरकारी नौकरियां देी गर्इ। कांग्रेस प्रवक्ता सुबोध श्रीवास्तव ने कहा कि मुख्यमंत्री की वह चिट्ठी गंभीर होकर नहीं लिखी गर्इ है, बलिक मुसिलम मत पाने का वह मायावती का एक राजनैतिक हथकंडा है। (संवाद)
मुसिलम मतों पर नजर: माया की प्रधानमंत्री को लिखे पत्र पर तीखी प्रतिक्रिया
प्रदीप कपूर - 2011-09-21 10:54
लखनऊ: मुख्यमंत्री मायावती द्वारा मुसलमानों को आरक्षण देने की मांग करते हुए लिखी चिटठी के बाद मुसिलम मतों के लिए उत्तर प्रदेश में जंग तेज हो गर्इ है। मुसलमान उत्तर प्रदेश की आबादी के साढ़े 18 फीसदी हैं और राज्य की 100 विधानसभा सीटों पर उनकी भूमिका निर्णायक होती है। उनकी खासियत यह है कि किसी भी विधानसभा में वे एकतरफा मतदान करते हैं।