इस इलाके में अजित सिंह की क्षमता पर किसी को संदेह नहीं है, लेकिन राजनीति के उनके तरीके से लोगों को परेशानी होती है। अजित सिंह हमेशा पाला बदलते रहते हैं। जिसके साथ मिलकर वे चुनाव लड़े हों, चुनाव के बाद उसके साथ ही वह रहें, इसका कोर्इ भरोसा नहीं। यही कारण है कि कांग्रेस पहले चाहती थी कि अजित सिंह अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दें और कांग्रेस के टिकट पर अपने लोगों को खड़ा करें।

लेकिन इसके लिए अजित सिंह तैयार नहीं हुए। वे अपने दल का अलग असितत्व बनाए रखना चाहते है। भटटा परसौल से अलीगढ़ के बीच राहुल गांधी की यात्रा को भारी सफलता मिली थी। यह क्षेत्र अजित सिंह का गढ़ है। उस सफलता को देखते हुए कांग्रेस यहां अकेले जाने की सोचने लगी थी। पर अन्ना हजारें के आंदोलन ने राहुल के किए कराए पर पानी फेर दिया और अब पार्टी को महसूस हो रहा है कि इस इलाके में अकेले चुनाव लडना उसके लिए घाटे का सौदा होगा। यही कारण है कि अजित सिंह की पार्टी के कांग्रेस में विलय की पुरानी मांग को छोड. कर कांग्रेस उनके साथ बातचीत कर रही है।

कांग्रेस अपनी पहली सूची जारी कर दी है और उसमें पशिचम उत्तर प्र्र्रदेश की कुछ सीटें भी शामिल हैं। इसके कारण दोनों के बीच सीटों पर तालमेल में दिक्कत आ रही है। अजित सिंह की पार्टी के साथ प्रदेश स्तर के नेता बातचीत कर चुके हैं। उस बातचीत में कांग्रेस 20 से 25 सीटें रालोद को छोड़ चुकी है। अब कांग्रेस के केन्द्रीय नेता अजित सिंह से बात कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश की स्क्रीनिंग समिति के अध्यक्ष प्रकाश मोहन और दिगिवजय सिंह अब अजित सिंह से बात कर रहे हैं।

बातचीत में पहले उन सीटों पर तालमेल की कोशिश होगी, जहां से कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों का एलाल नहीं किया है। उन पर समझौता होने के बाद उन सीटों पर बातचीत होगी, जहां कांग्रेस ने अपने उम्मीदवा घोषित कर रखे हैंं।

राजनैतिक विश्लेषक सुरेन्द्र राजपूत का कहना है कि कांग्रेस और रालोद के बीच हो रहा यह गठबंधन सुविधा का गठबंधन है और इसके पीछे कोर्इ सिदधांत नहीं है। उनका कहना है कि यहां के जाट परंपरागत रूप से कांग्रेस के खिलाफ मतदान करते रहे हैं और अब उसी कांग्रेस के साथ अजित सिंह गठबंधन कर रहे हैं और जाटों को कांग्रेस से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। (संवाद)