जैन की हवाला डायरी में जैन के हाथों लिखे चंदा लेने वाले नेताओं के कुछ नाम के आधार पर ही सीबीआर्इ ने कभी लालकृष्ण आडवाणी, शरद यादव व अन्य अनेक नेताओं के खिलाफ मुकदमा चला दिया था, पर एक मंत्री और एक दलाल के बीच हुर्इ बातचीत की टेप मौजूद होने के बाद भी सीबीआर्इ ने पी चिदंबरम की 2 जी घोटाले में पूछताछ करने की जरूरत नहीं समझी। शायद ए राजा से भी नहीं पूछा गया कि उस बातचीत की टेप मे उनकी ही आवाज है अथवा किसी और की। जाहिर है सीबीआर्इ पी चिंदबरम को बचाने की कोशिश कर रही है। उनके खिलाफ उतनी बड़ी सबूत होने के बाद भी वह अदालत से कहती है कि इस घोटाले में पी चिदंबरम के शामिल होने का कोर्इ सबूत उसके पास नहीं है।
लेकिन अब तो वित्त मंत्रालय भी मानता है कि पूर्व मंत्री ने घोटाले को रोकने का कोर्इ प्रयास नहीं किया और एक चिटठी लिखकर प्रधानमंत्री को कह दिया कि जो स्पेक्ट्रम आबंटित हुए हैं, उन्हें आबंटित मान लिया जाए। पहले पी चिदंबरम चीख चीख कर कह रहे थे कि वे स्पेक्ट्रम की नीलामी चाहते थे और 2001 की मूल्य दर पर स्पेक्ट्रम का आबंटन पहले वाली नीति के तहम उनकी मर्जी के खिलाफ हुआ है। जब किसी नीतिगत मसले पर दो मंत्रियों के बीच मतभेद होता है, तो उस मतभेद को सुलझाने का जिम्मा प्रधानमंत्री का होता है अथवा वह मामला मंत्रिमंडल में जाता है और पूरा मंत्रिमंडल ही उस पर फैसला लेता है। पी चिदंबरम अपनी बेगुनाही का ढोल पीटकर प्रधानमंत्री को गुनाहगार बनाने की कोशिश कर रहे थे। यानी उनके कहने का मतलब था कि उनके और ए राजा के बीच मतभेद के बाद प्रधानमंत्री ने ए राजा का साथ दिया और इस तरह उस घोटाले के लिए प्रधानमंत्री जिम्मेदार हैं।
ए राजा कह रहे थे कि पी चिदंबरम की सहमति के बाद ही पुरानी नीति के तहत पुरानी मूल्य दर पर 2 जी स्पेक्क्ट्रम की बिक्री हुई, लेकिन चिदंबरम अपने मंत्रालय के कुछ पत्रों का हवाला देकर अपने को पाकसाफ घोषित करते रहे थे। पी चिदंबरम एक पढ़े लिखे शातिर वकील हैं, इसलिए उन्होंने अपने खिलाफ यथासंभव कोर्इ लिखित सबूत नहीं छोड़ा। पर एक चिटटी मिल ही गर्इ, जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री को लिखकर नीलामी द्वारा स्पेक्ट्रम बेचने की जबर्दस्त सिफारिश की थी और उस सिफारिश के अंत में एक पंकित में लिख डाला था कि अबतक जो स्पेक्ट्रम बिका है, उसे बिका मान लिया जाय। यह चिटटी उन्होंने 2 जी स्पेक्ट्रम के महाघोटाले के बाद लिखी थी। वह चाहते तो पबिलक हित में उस बिक्री पर रोक लगा सकते थे। वित्त मंत्री के रूप में वैसा करने में वे सझम थे, क्योंकि सरकारी खजाने की रक्षा करना वित्त मंत्री का सांवैधानिक दायित्व है। प्रधानमंत्री को चिटठी लिखकर वह कह सकते थे कि 2001 की मूल्य दर पर स्पेक्ट्रम को बेचकर सरकारी खजाने को खरबों रुपयों का चूना लगाया गया है और उस बिक्री को निरस्त किया जाय, लेकिन उन्होंने वैसा कुछ नहीं किया। चिटठी में नीलामी की लंबी चौड़ी बातें करते रहे और जिस उददेश्य से उन्होंने वह चिटठी लिखी थी, उसे एक पंकित में यह कहकर निबटा दिया कि स्पेक्ट्रम की जो कुछ दिनों पहले बिक्री हुर्इ, उसे एक बंद अध्याय मान लिया जाय।
यानी पी चिदंबरम का यह दावा पूरी तरह गलत है कि 2 जी स्पेक्ट्रम की कीमत निर्धारण और पहले आओ और पहले पाओ की पुरानी नीति के इस्तेमाल में उनका हाथ नहीं था। वे ए राजा की तरह घोटाले के लिए पूरी तरह जिम्मेदार हैं। सच कहा जाय, तो वे ए राजा से भी इस घोटाले के लिए ज्यादा जिम्मेदार हैं, क्योकि वित्त मंत्री की हैसियत से सरकारी खजाने की रक्षा करना उनकी जिम्मेदारी थी। 2 जी की बिक्री 2001 की मूल्य दर पर होने से आखिर नुकसान तो उसी सरकार खजाने का हुआ, जिसके संरक्षक उस समय पी चिदंबरम थे।
अब यह मामला पूरी तरह से साफ हो गया है और इसके बाद पी चिदंबरम के खिलाफ जांच करके मुकदमा चलाने का पूरा आधार सीबीआर्इ के पास आ गया है, लेकिन कांग्रेस और प्रधानमंत्री की ओर से पी चिदंबरम को जो संरक्षण मिल रहा है, उसके कारण सीबीआर्इ के हाथ बंधे हुए हैं। सबसे पहले तो पी चिदंबरम का गृहमंत्री के रूप में इस्तीफा होना चाहिए। उनके इस्तीफा नहीं देने की सिथति में प्रधानमंत्री द्वारा उन्हें बर्खास्त किया जाना चाहिए, पर प्रधानमंत्री खुद कह रहे हैं कि चिदंबरम को इस्तीफा देने की जरूरत नहीं और उन्हें उन पर पूरा भरोसा है। सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री कबतक भ्रष्टाचार को संरक्षण देता रहेंगे और कब तक भ्रष्ट लोगों पर भरोसा करता रहेंगे? उधर सोनिया गांधी की ओर से भी चिदंबरम को समर्थन मिल रहा है। सोनिया गांधी के लिए कांग्रेस की भावी राजनीति किसी अन्य कांग्रेसी नेता से ज्यादा मायने रखती है, क्योंकि उन्हें राहुल गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनाना है और यह तभी संभव है जब कांग्रेसी की चुनावी सेहत अच्छी हो। चिदंबरम जैसे नेता को संरक्षण देकर सोनिया गांधी अपनी पार्टी की चुनावी सेहत तो हरगिज अच्छी नहीं कर सकती। जाहिर है उन्हें पी चिदंबरम को सरकार से हटाने और उनके खिलाफ जांच कराने में कुछ और डर सता रहा है। वह डर क्या हो सकता है, इसके बारे में अनुमान लगाना कठिन नहीं है।
पर सवाल उठता है कि क्या सोनिया गांधी पी चिदंबरम को बचा पाएगी? सुप्रीम कोर्ट पहले से ही 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले की सीबीआर्इ जांच की निगरानी कर रहा है। नए तथ्य लोगो के सामने आने के बाद यदि सुप्रीम कोर्ट सीबीआर्इ को पी चिदंबरम के खिलाफ जांच करने का आदेश देता है, तो फिर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी चिदंबरम को कैसे बचा पाएंगे? (संवाद)
चिदंबरम को बचाना आसान नहीं होगा
2जी स्पेक्ट्रम के भंवर में कांग्रेस
उपेन्द्र प्रसाद - 2011-09-24 11:21
अनेक घोटालों और भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रही कांगेस के लिए वित्त मंत्रालय की प्रधानमंत्री को लिखी वह चिटठी बहुत भारी पड़ रही है, जिसमें पी विदंबरम को घोटाले के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। इस घोटाले में जेल में बंद ए राजा पहले ही पी चिदंबरम को स्पेक्ट्रम की मूल्य नीति और उसकी बिक्री में बराबर का हिस्सेदार बता चुके हैं। उनके इस दावे को एक मुजरिम का दावा बताकर हवा में उड़ाने की कोशिश की गर्इ। कुख्यात राडिया टेप में भी ए राजा राडिया से बात करते हुए सुने गए है कि 2 जी स्पेक्ट्रम मामले में पी चिदंबरम ने बहुत रुपया खाया। यह बातचीत उस समय की है, जब ए राजा संचार मंत्री थे और 2 जी स्पेक्ट्रम का घोटाला कोर्इ बड़ा सार्वजनिक मामला नहीं बना था। वह सिर्फ नजदीकी लोगों की बातचीत थी, जिसमें एक मंत्री तो दूसरा सत्ता की एक दलाल शामिल थी। बातचीत का वह टेप सीबीआर्इ के पास है। वह टेप और उसकी बातचीत का ट्रांसिक्रप्ट संसद की लोकलेखा समिति के पास भी है।