संवादः गैस त्रासदी के 25 साल बीत चुके हैं। आपके मन में किस तरह के विचार इसके बारे में अब आते हैं?

बाबूलाल गौरः वह त्रासदी दुनिया की सबसे अड़ी औद्योगिक त्रासदी थी। हजारों लोग और जानवर इसमें मारे गए। जो इसकी चपेट में आने के बाद भी बच गए, उनके लिए सही दवाओं का इंतजाम अभी तक नहीं हो पाया है। सिर्फ उनके लक्षणों को देखकर उन्हें दवाएं दी जाती हैं। असली मर्ज की दवा उन्हें नहीं मिलती। यही कारण है कि वे अभी भी गैस के शिकार हैं।

एक व्यक्ति की हत्या करने वाले को फांसी दे दी जाती है। इसमें तो हजारों लोग मारे गए थे। आखिर इसमें किसी को सजा क्यों नहीं मिली?

हमारी न्याय व्यवस्था की खामियों के कारण ऐसा हुआ है। इस तरह की घटनाओं के दोषियों को दंड देने का पुख्ता प्रावधान हमारी न्यायव्यवस्था में है ही नहीं। दुघर्टना के लिए किसे जिम्मेदार समझें, इसका निर्धारण भी आसान नहीं। यूनियन कार्बाइड के अध्यक्ष को गिरफतार किया गया था। पर उन्हे छोड़ भी दिया गया। वे अमेरिका से फिर वापस ही नहीं आए। उनके खिलाफ गिरफतारी का वारंट है, लेकिन उन्हें गिरफतार नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे अमेरिका में हैं।

उस कंपनी का प्लांट आबादी वाले इलाके में लगाया गया था। यह गलत था। आखिर उस गलत निर्णय के लिए कौन जिम्मेदार था?

ऐसी बात नहीं है। जब प्लांट लगा था, उस समय उस इलाके में आबादी नहीं थी। लोग वहां बाद में आकर बसे थे। ऐसा स्वाभाविक रूप से होता है। जहां उद्योग लगते हैं, वहां लोग बस जाते हैं। भोपाल के उस इलाके में भी वैसा ही हुआ था।

भारत सरकार ने गैस पीड़ितों को राहत देने की जिम्मेदारी अपने ऊपर एक कानून बनाकर ले ली। क्या यह पीड़ितों के हक में था?

पहले यूनियन कार्बाइड के खिलाफ मुकदमा अमेरिका में ही दायर किया गया था, लेकिन अमेरिकी अदालत ने सुनवाई से इनकार कर दिया। कहा कि उसकी सुनवाई भारत में ही हो। इसके अलावा एक समस्या और आ रही थी। भारत के लोगों का अलग अलग अमेरिका में जाकर मुकदमा लड़ना संभव भी नहीं था। इसलिए केन्द्र सरकार ने उनके लिए राहत पाने का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया। इसी के लिए कानून बनाया गया था।

भोपाल के 36 वार्डों को गैस पीड़ित घोषित किया था। मैंने तब कहा था कि शेष 20 वार्डों को भी गैस पीड़ित घोषित किया जाय। पर वीपी सिंह की सरकार ने वादा तो किया, पर इसपर अमल नहीं हुआ।

क्या आपको लगता है कि यूनियन कार्बाइड ने वह सब किया, जो उसे करना चाहिए था?

कार्बाइड ने पूरी तरह से अपनी संवेदनहीनता दिखाई। उसे मुआवजे के साथ साथ ही पीड़ितों के इलाज की जिम्मेदारी भी अपने ऊपर लेनी चाहिए थी। कंपनी की जितनी भी निंदा की जाय, वह कम है।

अमेरिका की सरकार का रवैया कैसा था?

उसका रवैया भी निंदनीय रहा। उसने तो उस दुर्घटना पर अपनी शोक संवेदना तक जाहिर नहीं की। उसने म्तक लोगों के प्रति श्रद्धांजलि भी नहीं व्यक्त की। जब कोई एक अमेरिकी कहीं मर जाता है, तो अमेरिका की सरकार आसमान सिर पर उठा लेती है, लेकिन उसने गैस पीड़ितों को राहत दिलाने के लिए अपनी तरफ से कुछ नहीं किया। (संवाद)