आखिर राव ऐसा क्यों कर रहे हैं? क्या उन्हें लग रहा है कि वे राजनीति में अप्रासंगिक होते जा रहे हैं? मई 2009 के विधानसभा और लोकसभा चुनावों में लोगों ने उन्हें नकार दिया था। चुनाव के पहले वे सोच रहे थे कि वे केन्द्र की सरकार के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे, लेकिन वैसा कुछ हुआ नहीं।

2004 के चुनाव में उनकी पार्टी ने जबर्दस्त जीत हासिल की, लेकिन 2009 में उसकी दुर्गति हो गई। क्या इससे यह पता नहीं चलता है कि किसी भावनात्मक मुद्दे को एक बार से ज्यादा चुनाव में नहीं भुनाया जा सकता? गौरतलब है कि दोनों बार हुए चुनावों में राव ने अलग तेलंगना राज्य के निर्माण के नाम पर वोट मांगे थे।

तेलंगना राज्य की मांग हैदराबाद स्टेट जितनी पुरानी है। तेलंगना आंध्र प्रदेश के 10 जिलों में फैला हुआ हैं और राजधानी हैदराबाद भी इसका हिस्सा है। यह हैदराबाद स्टेट का हिस्सा हुआ करता था। 1948 में पुलिस कार्रवाई के बाद 1956 तक यह अलग इकाई रहा। 1956 के राज्यो के पुनर्गठन के समय आंध्र स्टेट के साथ इसका विलय कर दिया गया। दोनों के विलय से बने राज्य का नाम आंध्र प्रदेश रखा गया। उस समय इलाके के लोग तेलंगाना को अलग राज्य के रूप में ही देखना चाहते थे।

तेलंगना राज्य की मांग बार बार उठती रहती है, क्योंकि लोगों को लगता है कि उनके पिठड़ापन का कारण अलग राज्य का नहीं होना है। उन्हें लगता है कि अलग राज्य के गठन से उनके क्षेत्र का विकास तेज हो जाएगा। राजनीतिज्ञ लोगों की इस भावना का लाभ उठाते हैं और समय समय पर अलग तेलंगना राज्य की मांग जोर पकड़ने लगती है।

1960 के दशक में एम सी चेन्ना रेड्डी के नेतृत्व में अलग तेलंगना राज्य की मांग जोर पकड़ रही थी। बाद में चेन्ना रेड्डी कांग्रेस में चले गए और दो बार आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने। बाद में के चन्द्रशेखर राव के नेतृत्व में अलग राज्य का आंदोलन एक बार फिर जोर पकड़ने लगा। ये पहले तेलगू देशम में हुआ करते थे। उसे छोड़कर उन्होंने तेलंगाना राष्ट्र समिति नामक पार्टी का गठन किया।

2004 के चुनाव में राव की पार्टी ने अच्छी सफलता हासिल की। विधानसभा में उसने 24 और लोकसभा में 6 सीटों पा जीत हासिल की। राव मनमोहन सिंह की सरकार में शामिल भी हुए। उनके साथ ए नरेन्द्र भी मनमोहन मंत्रिपरिषद का हिस्सा बने। बाद में तेलंगाना राज्य के मसले पर ही दोनों ने सरकार से इस्तीफा भी दे दिया। कांग्रेस ने पहले तेलंगाना राज्य के प्रति अपनी सहानुभूति दिखाई थी। कुछ वादे भी किए थे। उसके बाद राव की पार्टी के साथ कांग्रेस का गठबंधन हुआ था, लेकिन बाद में कांग्रेस ने अलग तेलंगना राज्य के गठन में दिलचस्पी नहीं दिखाई।

2009 के चुनाव में राव ने तेलगू देशम के साथ गठबंधन किया। उस गठबंधन में वाम दल भी शामिल थे। गठबंधन की भारी पराजय हुई। राव की पार्टी को विधानसभा में मात्र 9 सीटें हासिल हुईं। लोकसभा में खुद राव और अभिनेत्री विजयाशांति पहुंची। बाद में विजया कांग्रेस में शामिल हो गईं। कुछ विधायको के भी कांग्रेस में शामिल होने की चर्चा हुआ करती थी।

इस पृष्ठ भूमि में राव की बेचैनी बढ़ती गई और उन्होंने एक बार फिर अलग तेलंगाना राज्य के लिए अपना आंदोलन तेज कर दिया है। (संवाद)