यात्रा के फीके रहले के अनेक कारण रहे। एक कारण तो यात्रा के उद्देश्यों को लेकर लोगों की अपनी अपनी अटकलबाजियां थी। लोग यह मानने को तैयार नहीं हो रहे थे कि यह यात्रा भ्रष्टाचार के खिलाफ निकाला जा रहा है। वे यह मान रहे थे कि इस यात्रा के पीछे लालकृष्ण आडवाणी की प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा काम रही थी।
यात्रा के फीका रहने का दूसरा कारण अनंतकुमार को यात्रा का प्रभारी बनाया जाना था। अनंतकुमार कर्नाटक के हैं और खुद कर्नाटक की भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं। उन आरोपों के कारण यदूरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा था और आज वे जेल में हैं। लोग पूछ रहे थे कि जब अनंतकुमार अपने राज्य कर्नाटक में अपनी पार्टी की सरकार के भ्रष्टाचार को रोक नहीं सकते, तो फिर देश भर में भ्रष्टाचार के खिलाफ कैसे कुछ सकते हैं।
यही नहीं, भ्रष्टाचार के मामले में खुद अनंतकुमार की छवि खराब रही है। अटल सरकार में रहते हुए उन पर भ्रष्टाचार के अनेक आरोप लगे थे। उनका नाम नीरा राडिया के साथ भी जुड़ा रहा है। नीरा राडिया को सत्ता के गलियारे में प्रवेश दिलाने और स्थापित करने में उनका ही हाथ रहा है, ऐसा सुश्री राडिया के जानने वाले लोगों का कहना है। ऐसे व्यक्ति को अपनी यात्रा का प्रभारी बनाकर भाजपा ने इस यात्रा का नुकसान कर दिया।
एक तीसरा कारण सतना की वह घटना रहा, जिसमें पत्रकारों को पांच पांच सौ रुपए के नोट दिए गए। ये नोट आडवाणी के प्रेस कान्फ्रंेस के बाद ही दिए गए थे। कुछ पत्रकारों ने इसकी वीडियो रिकार्डिग कर ली और इसे टीवी चैनलों पर दिखा दिया गया। भ्रष्टाचार के खिलाफ हो रही यात्रा के दौरान पत्रकारों ेको भ्रष्ट बनाने का यह मामला सामने आया और इसके कारण भाजपा और आडवाणी की यात्रा दोनों की काफी किरकिरी हुई।
यात्रा के फीका रहने का एक चैथा कारण येदुरप्पा की गिरफ्तारी थी। जिस दिन यह गिरफ्तारी हुई, उस दिन आडवाणी भोपाल में थे। उन्हें भोपाल में एक रैली को संबोधित करना था, जिसमें 1 लाख लोागों के भाग लेने का अनुमान था, पर कुछ हजार लोग ही वहां जुट सके थे। भाजपा के एक पूर्व मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी की खबर जब मीडिया में तैर रही हो, तो उसी समय एक अन्य भाजपा नेता का भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलना बेहद कठिन हो जाता है। आडवाणी के साथ भी वैसा ही हुआ। इसके कारण ही उन्होंन छिंदवाड़ा और होसंगाबाद के प्रेस कान्फ्रेंस रद्द कर दिए, हालांकि बताया गया कि उनका गला खराब है। पत्रकारों से प्रेस कान्फ्रेंस रद्द करने की असली वजह छिपी नहीं रह सकी।
मध्यप्रदेश में प्रवेश के ठीक पहले ही आडवाणी के प्रधानमंत्री की दावेदारी से संबंधित बयानबाजी शुरू हो गई थी। उमा भारती ने कहा कि आडवाणी ही 2014 चुनाव के बाद देश के प्रधानमंत्री बनेंगे, जबकि भाजपा के एक अन्य नेता यशवंत सिन्हा ने उमा भारती के बयान का एक तरह से खंडन करते हुए दावा किया कि प्रधानमंत्री के भाजपा में अनेक दावेदार हैं और उन दावेदारों वे में खुद यानी यशवंत सिन्हा भी एक हैं। इस तरह की बयानबाजी से तो फिजा खराब हो ही चुकी थी और रही सही कसर पत्रकारों को दी गई घूस नही पूरी कर दी।
जिस रोज आडवाणी की भोपाल में रैली थी, उसी दिन मध्यप्रदेश सरकार के एक अर्दधसरकारी संगठन ने दूध की कीमत बढ़ा दी। भ्रष्टाचार और महंगाई के खिलाफ निकाली जा रही रैली के बीच में ही राज्य सरकार द्वारा दूध महंगा किए जाने की खबर ने भी यात्रा को नुकसान पहुंचाने का काम किया।
यात्रा के दौरान लोगों की उपस्थिति फीकी रही। इसके प्रति कहीं कोई खास उत्साह नहीं देखा गया। उपरोक्त कारणों के अलावा एक अन्य बड़ा कारण भाजपा के अंदर चल रही गुटीय लड़ाई भी थी। इस लड़ाई के कारण भी आडवाणी की यात्रा फीकी रही। (संवाद)
मध्यप्रदेश में आडवाणी की यात्रा फीकी रही
गुटीय संधर्ष ने काम बिगाड़ा
एल एस हरदेनिया - 2011-10-20 12:28
लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा को मध्यप्रदेश में विफल नहीं कहा जाए, तो इसे सफल भी नहीं कहा जा सकता। यह बिना किसी झिझक के कहा जा सकता है कि मध्यप्रदेश में अपनी यात्रा से खुद लालकृष्ण आडवाणी भ्ज्ञी संतृष्ट नहीं रहे होंगे, जबकि यहां उनकी अपनी पार्टी की ही सरकार है।