भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने भारत और विश्व के अनेक देशों से पशु प्लेग के उन्मूलन की सफलता की घोषणा के स्वागत उत्सव के अवसर पर एक समारोह आयोजित किया। समारोह में भारत से खुरपका और मुंहपका रो्ग (एफएमडी) के उन्मूलन के लिए सघन अभियान चलाने की घोषणा की गई।
पशुपालन, डेरी एवं मात्सिकी विभाग (कृषि मंत्रालय) के सचिव श्री रुद्र गंगाधरन ने कहा कि पशु प्लेग के उन्मूलन से यह सबक मिलता है कि सफलता के लिए समन्वित प्रयास का विशेष महत्व है। बीमारियों की रोकथाम के लिए सुदृढ़ निगरानी तंत्र की तरफ ध्यान देना होगा।
12वीं योजना में पशुओं की अन्य बीमारियों की रोकथाम के काम में संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल व समन्वय पर ध्यान केन्द्रित किया जायेगा। रोगों के निदान, निगरानी, टीकाकरण और उपचार के पहलुओं पर पूरे समन्वय के साथ ध्यान दिया जायेगा। 12वीं योजना में पशुधन के संवर्धन व संरक्षण की योजनाओं और कार्यक्रमों के निर्धारण के लिए कार्यदल गठित करने का प्रस्ताव है। पशु प्लेग के उन्मूलन की सफलता को स्मरणीय बनाने के लिए डाक टिकट जारी कराने की भी योजना है।
कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के सचिव तथा आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. एस. अय्यप्पन ने पशु प्लेग के सफाये में योगदान करने वाले ज्ञात-अज्ञात सहयोगियों का आभार प्रकट किया।
भारत में एफएओ के प्रतिनिधि गेविन पाल ने चेचक के उन्मूलन के बाद पशु प्लेग के उन्मूलन को एक ऐतिहासिक सफलता बताया। वास्तव में मानव जाति के इतिहास में पशु प्लेग (रिन्डर पेस्ट) के सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय नतीजे भयानक रहे हैं। इस महामारी के कारण पशुधन की अपार क्षति होती थी और उसके बाद प्राय: अकाल के हालात पैदा हो जाते थे। एफएओ ने इसी साल 28 जून को रोम में अपने सम्मेलन में विश्व के पशु प्लेग से मुक्त होने की घोषणा की थी।
एफएओ के सम्मेलन में 192 सदस्य देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। सम्मेलन में रिन्डरपेस्ट से मिली दुनिया को आजादी के प्रस्ताव को पारित किया गया।
पशु प्लेग का प्रकोप खुरों वाले पशुओं में होता था, जो आर्थिक महत्व के पशुओं की श्रेणी में आते हैं। इनमें गाय, भेंस, भेड़, बकरी, सुअर और ऊँट के अलावा हिरन आदि वन्य पशु भी शामिल हैं।
पशु प्लेग से पशुओं का बहुत नुकसान होता था, जिसकी वजह से दूध और मांस की कमी हो जाती थी। इसका असर पशुओं पर निर्भर खेती पर भी पड़ता था। भारत में हर साल करीब चार लाख पशु इस घातक महामारी के शिकार हो जाते थे।
पशु प्लेग की वैक्सीन बनाने का काम मुक्तेश्वर (नैनीताल) में हुआ। सन् 1880 में मुक्तेश्वर में इंपीरियल बैक्टीरियोलॉजिकल लेबोरेटरी की स्थापना के साथ रिन्डरपेस्ट पर अनुसंधान के काम होने लगे। स्वतंत्रता के बाद इसे भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) नाम दिया गया। आईवीआरआई ने पशु प्लेग समेत पशुओं की अनेक बीमारियों के निदान के लिए कई वैक्सीन विकसित की, जिनकी वजह से पशु प्लेग सफाये का रास्ता खुल गया।
एफएओ ने दिसम्बर 1983 में आईवीआरआई इज्जत नगर में दक्षिण एशिया में रिन्डर पेस्ट उन्मूलन अभियान की आवश्यकता पर विशेषज्ञ सलाहकार बैठक आयोजित की। जिसमें रिन्डरपेस्ट के उन्मूलन के लिए दक्षिण एशिया में रिन्डरपेस्ट उन्मूलन अभियान चलाने के लिए समयबद्ध कार्रवाई कार्यक्रम चलाने की सिफारिश की गई। इसके बाद भारत सरकार ने 1984 में इसी भावना के अनुरूप रिन्डरपेस्ट उप-समिति की छठी बैठक बुलायी। वर्ष 1956-84 के दौरान वैक्सीन की 110 करोड़ से अधिक खुराकें दी गई तथा 80 प्रतिशत के करीब कवरेज किया गया।
सन् 1954 से ही भारत में रिन्डर पेस्ट उन्मूलन कार्यक्रम शुरू किया गया। इससे रिन्डरपेस्ट से मुक्ति का जो रास्ता खुला उसने आखिर भारत को इससे पूरी तरह मुक्त कर दिया। भारत सरकार के पशुपालन और डेरी विभाग ने राज्यों और संघ शासित राज्यों के पशुपालन विभागों, आईसीएआर तथा अन्य अनुसंधान संस्थानों के सहयोग से रिन्डरपेस्ट उन्मूलन अभियान संबंधी परियोजना लागू की।
एफएओ का अनुमान है कि भारत ने रिन्डरपेस्ट उन्मूलन से 1965 से 1998 तक अतिरिक्त खाद्यान्न की प्राप्ति की हरित क्रांति में रिन्डरपेस्ट उन्मूलन के योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। फसल विज्ञान और डेरी विकास कार्यक्रमों में स्वतंत्र भारत में पशु चिकित्सा वैज्ञानिकों का यह महानतम योगदान है।
रिन्डरपेस्ट के उन्मूलन के बाद भारत में दुग्ध उत्पादन में आश्चर्यजनक वृद्धि होने के साथ-साथ मांस निर्यात में भी वृद्धि हुई है। एफएओ ने 5 वर्ष पूर्व 25 मई 2006 को ही भारत को रिन्डरपेस्ट मुक्त देश घोषित कर दिया था। इससे अब पशुओं को अन्य रोगों से मुक्त करने की दिशा में काम में तेजी आने लगी है। डीपीटी की तरह ही पशुओं की कई बीमारियेां के निदान के लिए अब एक वैक्सीन बनाने की दिशा में काम हो रहा है। देश के 221 जिलों में खुरपका-मुंहपका रोग के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है। इस रोग से पीड़ित पशु दूध भी कम देते हैं और उनकी प्रजनन क्षमता भी प्रभावित होती है। भारत ही एशिया में अकेला ऐसा देश है जो इस रोग की वैक्सीन बनाने में सक्षम है। इस रोग की वैक्सीन की टैक्नोलॉजी को और विकसित किया जा रहा है। आईवीआरआई एवं अन्य संस्थान इसका उत्पादन करेंगे लेकिन गुणवत्ता नियंत्रण आईसीएआर के अधीन रहेगा। आने वाले दिनों में भारत के खुरपका-मुंहपका रोग (एफएमडी) से पूरी तरह मुक्त होने का मार्ग और प्रशस्त होगा।
पशु प्लेग (रिन्डर पेस्ट) से भारत पूर्णत: मुक्त
खुरपका-मुंहपका रोग से मुक्ति का अभियान शुरू
देवेन्द्र उपाध्याय - 2011-10-20 12:33
भारत और विश्वभर में लगभग दो शताब्दियों तक पशुओं के लिए महामारी बने पशु प्लेग से अब पूरी तरह मुक्ति मिल चुकी है। हालांकि भारत में पशु प्लेग (रिन्डर पेस्ट) से सन् 1995 में ही छुटकारा मिल गया था, लेकिन संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने 28 जून, 2011 को रोम में अपने 37वें सम्मेलन में इसकी औपचारिक घोषणा की। पशु प्लेग के उन्मूलन की सफलता को यादगार बनाने के लिए खुरपका एवं मुंहपका रोग परियोजना निदेशालय, मुक्तेश्वर (नैनीताल) और भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई), बरेली में स्मृति स्तंभों का निर्माण किया जायेगा।