हालांकि कियानी का पाकिस्तान की रक्षा मामलों की संसदीय समिति के सामने दिए गए बयान का समाचार मीडिया के हवाले से आया है, इसलिए इसकी सार्वजनिक पुष्टि तत्काल कठिन है, लेकिन सारे संकेत इस बयान के सही होने के ही है। समाचारों के अनुसार संसद के दोनों सदनों की स्थायी समिति के सदस्यों द्वारा पाकिस्तान पर वियतनाम युद्ध के दौरान लाओस एवं कम्बोडिया के समान हमला करने की आशंका पर उन्होेंने कहा कि अगर वह उत्तर वजीरिस्तान में एकपक्षीय सैनिक कार्रवाई का इरादा रखता है तो इसके पहले दस बार सोच ले। इसके आगे उन्होंने कहा कि पाकिस्तान इराक या अफगानिस्तान नहीं, एक नाभिकीय संपन्न देश है। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि हम हमले का जो प्रतिरोध करेंगे उसमें केवल परंपरागत हथियार ही शामिल नहीं होगा, जरूरत पड़ने पर नाभिकीय हथियारों का भी उपयोग किया जाएगा।
यह पूरी दुनिया को आतंकित करने वाला वक्तव्य है। यह अमेरिका को नाभिकीय जवाब के लिए तैयार रहने की धमकी भी है। कोई भी सेनाध्यक्ष या राष्ट्राध्यक्ष दो ही अवस्था में ऐसा बयान दे सकता है- या तो उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया हो, या फिर देश के सामने ऐसी स्थिति पैदा हो गई है जिसमें वह बचाव के लिए ऐसी धमकी को अंतिम रणनीतिक विकल्प के तौर पर अपनाने को बाध्य हो गया हो। पाकिस्तान की स्थिति, अफगानिस्तान एवं आतंकवाद को लेकर अमेरिका के साथ कायम तनातनी पर सरसरी नजर डालने वाला कोई भी जनरल कयानी की दशा समझ सकता है। हालांकि पाकिस्तान इसे सार्वजनिक तौर पर स्वीकार नहीं कर सकता, क्योंकि उसे पता है कि ऐसी धमकी के बाद उसके खिलाफ उत्तर कोरिया जैसे देश की तरह अनेक प्रतिबंध सहित नाभिकीय विहीन करने का अभियान आरंभ हो जाएगा और चीन के लिए भी इस मामले में उसकी मदद कठिन हो जाएगा। नाभिकीय धमकी के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यदि अमेरिका प्रस्ताव लाता है तो भले चीन उसके पक्ष में मत न दे, लेकिन नाभिकीय अप्रसार संधि सहित ऐसी कई संधियों से बंधे होने के कारण उसके लिए वीटो करना संभव नहीं होगा। एकपक्षीय नाभिकीय युद्ध की धमकी मात्र से अंतरराष्ट्रीय कानून किसी देश को नष्ट करने की सीमा तक कार्रवाई की छूट दे देता है। जनरल कयानी को इसका अवश्य इसका आभास होगा। इसके बावजूद यदि उन्होंने ऐसा कहा तो इससे पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान की वर्तमान मनःस्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है।
उ. कोरिया के बाद वर्तमान विश्व में पाकिस्तान ही एकमात्र देश है जो ऐसी उदण्ड धमकी दे सकता है। अमेरिका ने हाल के महीनों में उत्तरी वजीरिस्तान मंे हक्कानी समूह के खिलाफ कार्रवाई के लिए अधिकतम दबाव बनाया है। वह उत्तरी वजीरिस्तान को तालिबान एवं अल कायदा के लिए सुरक्षित पनाहगाह मानता है। अफगानिस्तान मंे घुसकर अमेरिका एवं नाटो सैनिकों पर हमले में सबसे ज्यादा इसी गुट का हाथ साबित हो रहा है। मई में ऐबटाबाद में ओसामा बिन लादेन की अमेरिकी नौसेना सील के आॅपरेषन में मारे जाने के बाद अमेरिका का रुख इस मामले में ज्यादा कड़ा हुआ है। अमेरिका ने बार-बार साफ किया है कि हक्कनी गुट को आईएसआई का समर्थन है और वही इसे सुरक्षित पनाहगाह एवं अन्य सुविधायें, सूचनाएं उपलब्ध करा रहा है। आईएसआई पर आरोप का अर्थ सेना पर आरोप है। ओसामा के खिलाफ कार्रवाई के बाद से ही पाकिस्तान में हर क्षण अमेरिकी कार्रवाई की आशंका बनी हुई है और मीडिया में लगातार इससे संबंधित खबरें, टिप्पणियां और बहसें चल रहीं हैं। स्वयं अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा तक वजीरिस्तान में कार्रवाई का संकेत दे चुके हैं। इस महीने की शुरुआत में अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने कहा कि पाकिस्तान अपने पिछवाड़े में जंगली जावनर को छिपाकर केवल पड़ोसी के घर मंे धावा की उम्मीद नहीं कर सकता। पाकिस्तान अफगान सीमा पर इंटरनेशनल सिक्योरिटी असिस्टेंस फोर्स का जमावड़ा करके अमेरिका ने अपना इरादा भी जताया है तथा पाकिस्तान को स्वयं कार्रवाई करने या फिर अंतरराष्ट्रीय सेना की कार्रवाई झेलने में से कोई एक विकल्प चुनने की स्थिति पैदा कर दिया है। कयानी ने स्वीकार किया कि अमेरिका उस पर ऐसी सैनिक कार्रवाई के लिए दबाव बना रहा है। यह अमेरिका के दबाव का ही परिणाम था कि पाकिस्तान को अफगानिस्तान पर अपनी नीति लिखकर देनी पड़ी। पाकिस्तान की रणनीति इसमें अमेरिका को उलझाने की थी, पर अमेरिका ने इसका लिखित जवाब देने की जगह कहा कि आप कार्रवाई करिए। पाकिस्तान जवाब में दो बातें कहता है। एक, समस्या पाकिस्तान नहीं अफगानिस्तान में है। पाकिस्तान की सेना के अनुसार तालिबानों का सुरक्षित पनाहगार अफगानिस्तान के कुनार एवं नूरीस्तान में है। और दो, कार्रवाई का समय और तरीका वह अपनी सुविधा एवं समझ के अनुसार तय करेगा।
अमेरिका एवं अफगनिस्तान भी इन दोनों बातों से आज इत्तेफाक नहीं रखते हैं। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई भी कहते हैं कि उनके यहां की हिंसा की जड़ तो पाकिस्तान में है। सारी खुफिया सूचनाएं और अफगानिस्तान युद्ध में लगे सैनिकों का अनुभव और विश्लेशणोें का निष्कर्ष भी यही है। सच कहा जाए तो अमेरिका ने उसके सामने अब कार्रवाई करने या कार्रवाई झेलने के अलावा कोई विकल्प नहीं छोड़ा। इसमें पाकिस्तान का किंकर्तव्यविमूढ़ होना स्वाभाविक है। एक ओर आंतरिक आतंकवाद से गृहयुद्ध जैसी स्थिति, अस्थिर राजनीतिक हालात की संभावना, चरमराती वित्तीय व्यवस्था, कार्रवाई न करने के बाद सबसे ज्यादा सहायता देने वाले अमेरिका की ओर से मदद रुकने का स्पष्ट खतरा...इन सारी स्थितियों में पाकिस्तान सरकार जिसमें राजनीतिक प्रतिश्ठान और सेना दोनों शामिल है, की मनःस्थिति का अनुमान लगाना कठिन नहीं है। लेकिन पाकिस्तान को यह लगने लगा है कि अमेरिका का ओबामा प्रशासन अगले वर्ष अफगानिस्तान से सैनिक वापसी की घोषणा पर अमल करने के पूर्व कार्रवाई करके कुछ मान्य सफलताएं पाने की कोशिश करेगा। अमेरिका को दबाव मंे लाने के लिए कयानी ने स्वयं यह बयान दिया कि पाकिस्तान को अमेरिका की सैन्य सहायता नहीं चाहिए। जब अमेरिका ने पूछा कि क्या आप जो कह रहे हैं वही चाहते भी हैं तो इनका उत्तर था, बिल्कुल। यह भी असाधारण रवैया ही था। वास्तव में यह अमेरिका को एक प्रकार का अल्टिमेटम था कि हमारी सुरक्षा आपकी कृपा पर नहीं है कि आप जैसा चाहें हम करें।
इन सबके बीच अफगानिस्तान का हाथों से लगभग निकल जाना पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा आघात है। इस बदलती भू-सामरिक स्थिति को सहज तरीके से पचा जाना उसके लिए मुश्किल है। हालांकि जनरल कयानी एवं पाकिस्तान सरकार ने यह स्पष्टीकरण दिया है कि उनका इरादा किसी तरह अफगानिस्तान पर नियंत्रण करने का नहीं है। उसने लिखित तौर पर अमेरिका को कहा कि आतंकवाद के आधार पर अपनी सामरिक गहराई बनाए रखने की उसकी नीति नहीं है। किंतु अफगानिस्तान में प्रभावी स्थिति सामरिक रूप से उसे सशक्त बनाती थी। अफगानिस्तान मंे भारत का प्रभाव विस्तार और इसकी सशक्तता वह कभी पचा नहीं सकता। जब हामिद करजई ने भारत के साथ अपना पहला सामरिक समझौता किया तो पाकिस्तान का धैर्य जवाब दे गया। भारत की सेनाएं वहां रहें, वहां की खदानों, तेल-गैस के संबंधित स्रोतों तक भारत की दीर्घकालीन पहुंच बनी रहे, इसे वह बरदाश्त नहीं कर पा रहा। उसका मानना है कि यह सब अमेरिका के कारण हुआ है। अमेरिका की शह के बिना करजई इतना बड़ा ऐतिहासिक फैसला भारत के पक्ष में नहीं कर सकते थे।
तो कुल मिलाकर पाकिस्तान ऐसी किंकर्तव्यविमूढ़ता की दशा में आ चुका है, जहां उसके सामने अपने बचाव और आगे बढ़ने का विकल्प निःशेष हो रहा है। उसमें कयानी ने नाभिकीय प्रतिकार का भयावह बयान देकर पुनः यह साबित कर दिया है कि किसी उद्धत देश के हाथों इस विनाशकारी अस्त्र का होना पूरी दुनिया के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। देखना है अमेरिका एवं अन्य घोषित नाभिकीय संपन्न देश इससे किस तरह निबटते हैं। स्वयं भारत के लिए पाकिस्तान की यह भंगिमा अत्यंत चिंताजनक है। (संवाद)
कियानी ने अमेरिका को नाभिकीय ताकत का भय दिखाया
पाकिस्तान के पास अब विकल्प ही क्या रह गया है?
अवधेश कुमार - 2011-10-24 12:14
पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल परवेज अशफाक कियानी का जो मंतव्य सामने आया है उससे पूरी दुनिया में सनसनी फैलना स्वाभाविक है। सबसे पहले तो पाकिस्तान कभी अमेरिका को ऐसी सख्त चेतावनी देगा इसकी सहसा कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। किंतु यहां जनरल कियानी की भंगिमा केवल चेतावनी तक सीमित नहीं है। द्वितीय विश्वयुद्धोत्तर काल में उत्तर कोरिया के बाद दूसरी बार किसी देश ने नाभिकीय अस्त्र की धौंस दिखाई है।