दिल्ली को अन्ना के जनलोकपाल आंदोलन का केन्द्र रही है। उनकी भूख हड़ताल यहीं हुई थी। यहीं उनकी गिरफ्तारी भी हुई थी और यहां दूर दराज के भी लाखों लोग उस आंदोलन में शरीक होने के लिए आए थे। दिल्ली के लोगों का भी इस आंदोलन को भारी समर्थन मिला था। हिसार के उपचुनाव को जनलोकपाल आंदोलन के लिहाज से इसलिए महत्वपूर्ण माना जा रहा था, क्योंकि वह दिल्ली से दूर नहीं है। सच तो यह है कि दिल्ली तीन तरफ से हरियाणा से घिरी हुई है।
हिसार चुनाव के बाद लोगों की नजर उत्तर प्रदेश के विधानसभा आमचुनाव पर लगी हुई है और टीम अन्ना ने भी चेतावनी दे रखी है कि यदि कांग्रेस ने भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन के खिलाफ आक्रामक रवैया अपनाए रखा, तो वह उत्तर प्रदेश के चुनाव में भी लोगों से उसके खिलाफ वोट डालने के लिए कहेगी। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस कोई बड़ी ताकत नहीं है। लोकसभा चुनाव में उसे उम्मीद से ज्यादा सीटें भले मिल गई हों, लेकिन उसके बाद हुए उपचुनावों और स्थानीय निकायों के चुनावों में करारी हार मिलती रही है और वहां के दो बड़ी राजनैतिक ताकत बसपा और सपा ही है। इसके बावजूद उत्तर प्रदेश का चुनाव कांग्रेस के लिए काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वहां राहुल गांधी ने अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगा दी है। लोकसभा में कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन का श्रेय राहुल गांधी को ही दिया गया, क्योंकि कांग्रेस को अकेले चुनाव लड़वाने का फैसला उनका ही था। चुनाव के पहले वह दलित मुहल्लों में जाकर उनके साथ समय बिता रहे थे और बार बार उत्तर प्रदेश का दौरा किया करते थे। माना गया कि राहुल गांधी के उन प्रयासों के कारण ही कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में वहां 23 सीटें मिली हुई हैं। राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपनी पुरानी गरिमा वापस लाने की कोशिश में है। इसलिए यदि टीम अन्ना हिसार की तरह उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस के खिलाफ लोगों को वोट डालने की अपील करती है और उसके लिए खुद अभियान भी चलाती है, तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का बुरा हाल होना तय है। कांग्रेस ने अजित सिंह की पार्टी के साथ वहां तालमेल कर रखा है। कांग्रेस के खिलाफ उस अभियान का असर अजित सिंह की पार्टी पर भी पड़ सकता है।
सवाल उठता है कि दिल्ली मे क्या होगा? दिल्ली में कांग्रेस की स्थिति उत्तर प्रदेश जैसी नहीं है। यह कांग्रेस की गढ़ है। पिछले लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सभी सातों सीटों पर कांग्रेस की ही विजय हुई थी। विधानसभा चुनाव भी कांग्रेस 1998 से ही लगातार तीन बार जीत चुकी है और शीला दीक्षित उसी समय से यहां मुख्यमंत्री बनी हुई है। दिल्ली में कांग्रेस को समाजवादी पार्टी अथवा बहुजन समाज पार्टी जैसे जाति आधारित पार्टियों से मुकाबला भी नहीं करना पड़ता है। वहां इसका सीधा मुकाबला भाजपा से होता है और कांग्रेस नेताओं की तरह भाजपा के अनेक नेताओं के खिलाफ भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। उनमें से कुछ नेता तो जेल में हैं और अनेक ने तो अपने पद तक छोड़ दिए हैं। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी कांग्रेस भाजपा के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर अपना बचाव करने की रणनीति अपनाती रही है। इसके कारण ही भाजपा भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व नहीं कर पाई और यह काम अन्ना और उनकी टीम के लोगों को करना पड़ रहा है।
यानी दिल्ली के नगर निगम चुनाव में जो दो मुख्य पार्टियां आमने सामने होंगी, उन दोनों पार्टियों के नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले चल रहे हैं और जिनके खिलाफ मामले नहीं चल रहे हैं, उनमें से कई के खिलाफ आरोप लग रहे हैं। इसके कारण दोनों पार्टियों के पास एक दूसरे के खिलाफ हमला करने के लिए पर्याप्त मसाले मौजूद हैं। यदि टीम अन्ना मतदाताओं से कांग्रेस के खिलाफ मतदान करने के लिए कहती है, तो इसका सीधा मतलब होगा कि उसकी यह अपील भाजपा को फायदे पहुंचा रही होगी। हिसार मे तो कांग्रेस के खिलाफ दो मजबूत उम्मीदवार खड़े थे और टीम अन्ना के लोग कह सकते थे कि उन्हें नहीं पता कि उनके कांग्रेस विराधी अभियान का फायदा कौन उठाता है। वे यह कह सकते थे कि उनकी इसमे दिलचस्पी भी नहीं है कि कांग्रेस विरोधी उनकी अपील का फायदा कौन उठाता है। बस उनकी अपील कांग्रेस को हराने की है, जो भ्रष्टाचार के आंदोलन के खिलाफ खराब रवैया अपना रहा है और मजबूत लोकपाल न बन सके, इसके लिए कर संभव तिकड़मबाजी कर रहा है।
पर दिल्ली मे तो साफ साफ दिखाई पड़ेगा कि कांग्रेस के खिलाफ किया जा रहा अभियान भाजपा के पक्ष में है। अन्ना खुद कह चुके हैं कि शीतकालीन सत्र में यदि केन्द्र सरकार ने जनलोकपाल बिल संसद से नहीं पास कराया, तो वे देश भी मेेेेेेें कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करेंगे। केन्द्र सरकार और कांग्रेस के तेवरों से नहीं लग रहा है कि वह आंदोलनकारियों को संतुष्ट करने वाला कोई कानून बनाने जा रही है। लोकपाल को संवैधानिक निकाय बनाने की बात कर वह मामले को उलझाने की कोशिश कर रही है। टीम अन्ना के सदस्यों के खिलाफ भी उसका दुष्प्रचार अभियान जारी है। अन्ना के खिलाफ भी कांग्रेस के कुछ नेता अनाप शनाप बयानबाजी करने में लगे हुए हैं। सोनिया गांधी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ बन रहे कानून को लेकर कोई बयानबाजी नहीं की है। कांग्रेस पी चिदंबरम का 2 जी घोटाला मामले में जिस तरह से बचाव कर रही है, उससे भी पता चलता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे आंदोलन पर सोनिया गांधी का क्या रवैया है। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दी़िक्षत पर भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग रहे हैं। प्रधानमंत्री द्वारा बनाई गई शुंगलू कमिटी ने भी मुख्यमंत्री दीक्षित को भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार ठहराया है। कैग का भी यही मानना है। पर केन्द्र सरकार और सोनिया गांधी शीला दीक्षित को भी संरक्षण दे रही है।
केन्द्र सरकार और कांग्रेस के इस रवैये को देखते हुए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि लोकपाल का जो कानून सरकार बनाना चाहेगी वह शायद आंदोलनकारियों की आशा के अनुरूप न हों। तो फिर क्या अन्ना उसके बाद कांग्रेस के खिलाफ मत डालने की अपील देश के लोगों से करेंगे? और क्या इस अपील के साथ टीम अन्ना दिल्ली नगर निगम चुनाव मे भी अभियान चलाएगी? (संवाद)
दिल्ली नगर निगम के चुनाव
क्या अन्ना इसमें भी कांग्रेस के खिलाफ वोट मांगेगे?
उपेन्द्र प्रसाद - 2011-10-31 11:48
लोकसभा के हिसार उपचुनाव के बाद जनलोकपाल के मसले पर जनता के पास जाने का एक मौका दिल्ली में भी मिलेगा। हिसार में टीम अन्ना ने लोगों से कांग्रेस के खिलाफ वोट डालने को कहा था, क्योंकि कांग्रेस भ्रष्टाचार के आंदोलन के खिलाफ खड़े दिखाई दे रही थी। लोगों ने टीम अन्ना की सुनी और वहां कांग्रेस उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई।