वह भारतीय भाषाओं के संरक्षण के लिए अपनी युवावस्था से ही आंदोलनरत थे और जिसके कारण उनके पास विवाह कर घर बसाने की भी फुर्सत नहीं थी। बाराबंकी (उत्तर प्रदेश) निवासी श्री राजकरण भारतीय भाषाओं के संरक्षण के आंदोलन को लेकर गत अस्सी के दशक में ही दिल्ली आ गये थे और अपना अभियान शुरु कर दिया था। उनका मानना था कि पहले भाषा नष्ट होती है और उसके बाद सभ्यता, संस्कृति, आत्मसम्मान और फिर सबकुछ।

अनेक प्रकार से भारतीय भाषाओं के संरक्षण की मुहिम चलाने के बाद वह जब संघ लोक सेवा आयोग के समक्ष धरने पर बैठे तो उनके साथ चंद्रशेखर, वी पी सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, और ज्ञानी जैल सिंह जैसे नेता भी धरने पर आये और उनकी मांगों का समर्थन किया। लेकिन दुखद पहलू यह कि जब ये सत्ता में आये तब भारतीय भाषाओं के संरक्षण के लिए कुछ नहीं किया।

इसकी टीस उनके मन में रह गयी थी। उनको तब और बड़ा झटका लगा जब अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधान मंत्रित्व काल में सन् 2001 में धरना स्थल को ध्वस्त कर दिया गया। उसके बाद कुछ समय तक खुले आसमान के नीचे धरना चला और बाद में आंदोलनकारी बिखर गये।

अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन के महासचिव के रुप में वह फिर से आंदोलन शुरु करने की तैयारी में लग गये थे क्योकि संघ लोक सेवा आयोग ने पाठ्यक्रम और परीक्षा की विधि में पिछले वर्ष कुछ ऐसे कदम उठाये हैं जिसके कारण भारतीय भाषा-भाषियों को भारी नुकसान होगा। यह परीक्षा पद्धति अंग्रेजी की पक्षधर है और अंग्रेजी जानने वालों को ही विशेष महत्व देती है।

उनकी प्रमुख मांग थी कि परीक्षाओं में अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यता समाप्त कर उसे भी एक विकल्प के रुप में ही रखा जाये।