उन्होंने इस समझौते को वैचारिक भटकाव बताते हुए कहा कि इसे रद्द घोषित कर दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह समझौता जन मुक्ति सेना को अपमानित करते हुए किया गया, इसलिए वे पार्टियों से अपील करते हैं कि एक नया समझौता किया जाय और भूल को सुधारा जाय। माओवादियों के इस विवाद में असंतुष्टों के साथ पार्टी के महासवि रामबहादुर थापा भी हैं।

समझौते के विरोध के साथ साथ एक और बात महत्वपूर्ण है और उसका संबंध भारत से है। प्रचंड का विरोधी खेमा नेपाल के प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई के ताजा भारत यात्रा के दौरान भारत से किए गए समझौते का विरोध भी करता है। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय निवेश और संरक्षण समझौता हुआ था। सच तो यह है कि असंतुष्ट माओवादियों ने उस समझौते के खिलाफ प्रधानमंत्री भट्टराय का स्वागत काला झंडा दिखाकर किया था, जब वे भारत से नेपाल लौटे थे।

प्रधानमंत्री भट्टराई से जब भारत के साथ हो रहे समझौते के विरोध के बारे में पूछा गया, तो उनका कहना था कि इस तरह के द्विपक्षीय समझौते दुनिया में खूब होते हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया के 180 देशों के बीच इस तरह के 2500 द्विपक्षीय समझौते हुए हैं। नेपाल में इस समझौते का विरोध वे लोग कर रहे हैं, जो यह भी नहीं जानते कि इस समझौते में क्या है। उन्होंने कहा कि लोगों को जैसे जैसे इस समझौते के बारे में पता चलेगा, वे इसका समर्थन करने लगेंगे।

केन्द्रीय समिति के एक प्रमुख सदस्य खड्ग बहादुर थापा ने कहा कि चेयरमैन का नजरिया गलत है और हमने उन पर दबाव बनाया है कि वे गलती को सुधारें। अभी हमें यह देखना बाकी है कि वे हमारी आपत्तियों पर कैसा रुख अख्तियार करते हैं। पार्टी में विभाजन बहुत पहले से दिखाई पड़ रहा था। यही कारण है कि केन्द्रीय समिति की बैठक लगातार स्थगित कर दी जाती थी। लेकिन अतिवादियों के दबाव मंे आकर प्रचंड ने कम दिन की सूचना पर ही इस बैठक का आयोजन किया। मोहन वैद्य ने चेतावनी दी थी कि यदि बैटक जल्द नहीं बुलाई गई तो वे भंडाफोड़ अभियान शुरू कर देंगे और वह अभियान पार्टी काडर के राष्ट्रीय जमावड़े के बाद ही शुरू हो जाएगा। वह जमावड़ा स्थगित कर दिया गया और उसकी जगह केन्द्रीय समिति की बैठक बुलाई गई।

चेयरमैन प्रचंड दोनों गुटों के बीच शांति स्थापित करने के लिए किसी तरह समय गुजारने की नीति अपना रहे हैं। उन्होंने कहा है कि माओवादी पार्टी मंे विभाजन को रोकना उनके सामने आजकी सबसे बड़ी चुनौती है। बैद्य के समर्थक प्रचंड और भट्टराई को विदेशी एजेंट तक करार दे रहे हैं। वे उन्हंे अपने पदों से इस्तीफा देने को कह रहे हैं और कुछ तो उन दोनों को पार्टी से ही निकालने की मांग कर रहे हैं। महासचिव थापा ने तो कहा कि व दोनों भारी के रिसर्च एंड एनालिसिस विंग के इशारे पर नाच रहे हैं और राष्ट्र के हितों के खिलाफ जा रहे हैं। थापा ने बताया कि कुछ समय पहले चेयरमैन प्रचंड ने बताया था कि वे सिलीगुड़ी की यात्रा के दौरान रिसर्च और एनालिसिस विंग (राॅ) के अधिकारियों से मिले थे। (संवाद)