बालकृष्ण पिल्लै केरल कांग्रेस (बी) के अध्यक्ष हैं, जो यूडीएफ की घटक पार्टी है। श्री पिल्लै को सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषी पाते हुए एक साल के सश्रम कारावास की सजा दी थी। केरल सरकार में बिजली मंत्री रहते हुए भ्रष्टाचार में लिप्त रहने का उनपर आरोप था। वे राज्य के पुजाप्परा जेल में बंद थे।

अब उन्हें सजा पूरा होने के पहले ही छोड़ दिया गया है। मुख्यमंत्री ओमन चांडी कह रहे हैं कि उन्होंने श्री पिल्लै को अकेले नहीं छोड़ा है, बल्कि केरल निर्माण दिवस के दिन कुल 138 कैदी छोड़े गए, जिनमें श्री पिल्लै एक थे। मुख्यमंत्री कहते हैं कि उन सभी कैदियों को इसलिए छोड़ा गया, क्योंकि जेल के अंदर उनका आचरण अच्छा पाया गया।

श्री पिल्लै को दो महीने पहले ही जेल से रिहा कर दिया गया। मुख्यमंत्री कहते हैं कि जेल के अंदर उनका आचरण बहुत अच्छा था और उनके खिलाफ जेल प्रशासन ने कभी विपरीत टिप्पणी नहीं की। लेकिन सच्चाई कुछ और ही है।

श्री पिल्लै ने अपनी हिरासत के दौरान जेल के नियमों को खुला उल्लंधन किया। जेल में मोबाइल रखना मना है, लेकिन हिरासत में रहते हुए उन्होंने मोबाइल का इस्तेमाल न केवल फोन रिसीव करने के लिए, बल्कि कॉल करने के लिए भी किया। मुख्यमंत्री चांडी ने इस बात को खुद विधानसभा में कही और इस बात का रिकार्ड विधानसभा की फाइलों में दर्ज भी है।

इतना ही नहीं, हिरासत में रहते हुए मोबाइल फोन के इस्तेमाल के लिए उन्हें सजा भी मिली। उनकी कारावास की अवधि इसके कारण 4 और दिनों के लिए बढ़ा दी गई थी। इसके अलावा अनेक बार पैरोल पर बाहर आकर उन्होंने राजनैतिक सभाओं में हिस्सा लिया और राजनैतिक बयानबाजी भी की। इस तरह से पेरोल के नियमों का उन्होंने उल्लंधन किया। इस उल्लंघन के लिए उनके खिलाफ विपरीत टिप्पणी भी की गई।

यही नहीं कारावास के दौरान वे लगातार जेल में रहे भी नहीं। राज्य के पूर्व गृहमंत्री के बालाकृष्णन के अनुसार श्री पिल्लै को दो महीने की यह छूट पाने के लिए कम से कम 8 महीने जेल में बिताना चाहिए था, पर उन्होंने कुल 69 दिन ही जेल में बिताए। अपने कारावास के शेष अवधि उन्होंने निजी अस्पतालों में गुजारी, जहां उन्हें पंच सितारा सुविधाएं दी गई थीं।

पंच सितारा सुविधाओं से युक्त निजी अस्पताल के जिस कमरे में पिल्लै ने अपने कथित करावास के 89 दिन बिताए उन्स कमरे को औपचारिक तौर पर जेल नहीं घोषित किया गया था, इस लिए उस अवधि को तकनीकी तौर पर भी कारावास की अवधि नहीं कही जा सकती। इसलिए प्रभावी रूप से तो वे उसी दिन कारावास से छूट चुके थे, जिस दिन उन्हें अस्पताल भेजा गया था।

इस बीच एक टीवी चैनल ने प्रमाण के साथ यह खबर प्रसारित की कि जिन बीमारियों का हवाला देकर कुछ डाक्टरों ने उनके अस्पताल में भत्र्ती करने की सिफारिश की थी, वे बीमारियां उनको हुई ही नहीं थी।

यूडीएफ सरकार श्री पिल्लै को इसलिए समय से पहले ही जेल से छोड़ने के लिए तैयार हो गई, क्योंकि वह उनके बेटे गणेश कुमार को नाराज नहीं करना चाहते थे। नरेश कुमार उनकी सरकार में मंत्री हैं और नाराज होने पर उनकी सरकार को गिरा भी सकते हैं। इसका कारण यह है कि राज्य सरकार के पास नाम मात्र का बहुमत विधानसभा में है। एक या दो विधायक भी चाहे तो राज्य सरकार अल्पमत में आ जाएगी और विधानसभा में गिर जाएगी। इसलिए अपनी सरकार बचाने के लिए मुख्यमंत्री सत्तापक्ष के एक एक विधायक के रहमोकरम पर आश्रित हैं।

इस बीच विपक्ष के नेता वी एस अच्युतानंदन ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमें श्री पिल्लै की रिहाई के आदेश को निरस्त करने के लिए कहा गया है। इसकी सुनवाई जल्द होने वाली है। याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट का आदेश मानने की अपनी सांवैधानिक बाघ्यता को मानने मंे विफल रही है और इस तरह उसने अदालत की अवमानना भी कर दी है। (संवाद)