प्रौद्योगिकी के हिसाब से यह मिसाइल पिछली मिसाइल से कई गुना बेहतर है। कई नयी प्रौद्योगिकियां प्रयोग में लायी गयीं, इसका वजन भी कम है, दो चरणों में ठोस ईंधन की व्यवस्था है और अलग से भारवहन चेंबर भी है। अत्यधिक तापमान को झेल पाने का सुरक्षा कवच भी लगा है। इसमें समेकित रॉकेट मोटर पहली बार लगाये गये हैं।

अत्याधुनिक उड्डयन तकनीक के प्रयोग के कारण इसकी विश्वसनीयता भी गजब की है। भारत में ही विकसित उच्च मारक क्षमता वाली तकनीक रिन्स और मिंग्स का भी इसमें इस्तेमाल हुआ जिसे पहली बार गाईडेंस मोड में नियंत्रित किया गया। डिजिटल कंट्रोल सिस्टम के माध्यम से इसे पूर्व निर्धारित मार्ग पर चलाया गया और निशाने पर भी सटीक रहा।

उड़ीसा तट पर लगी प्रणालियों, जिसमें राडार भी शामिल थे ने इस मिसाइल परीक्षण के सभी मानकों का लगातार जायजा लिया और निशाने के नजदीक तैनात भारतीय नौसेने के एक जहाज पर से इसे सटीक वार करते हुए देखा गया।

परीक्षण के समय रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार डा विजय कुमार सारस्वत भी परीक्षण स्थर पर थे।

यहां दिल्ली में इस परीक्षण की सफलता पर रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने डी आर डी ए की टीम को बधाई दी।
अग्नि के प्रोग्राम डायरेक्टर अविनाश चंदर ने बताया कि लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलों के नये युग की शुरुआत इस मिसाइल के परीक्षण के साथ हो गयी है। उन्होंने कहा कि इसकी सफलता से अग्नि -5 के विकास का रास्ता साफ हो गया है, जिसका परीक्षण जल्द ही किया जाना है।