लोगों के बीच बैठी इस धारणा के कारण भारतीय जनता पार्टी को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। यही कारण है कि वह बार बार कह रही है कि वह किसी भी सूरत में न तो चुनाव से पहले और न चुनाव के बाद बसपा से किसी प्रकार का कोई तालमेल करेगी।

राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा ने राम मंदिर आंदोलन के दौरान लोगों का जो समर्थन हासिल किया था, उसे उसने मायावती को समर्थन करके खो दिया है। मायावती को उसने तीन बार मुख्यमंत्री बनने में सहायता की।

अब लोगों का विश्वास फिर से हासिल करने के लिए भाजपा ने लखनऊ में संपन्न राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में यह फैसला किया है कि वह चुनाव में किसी प्रकार का तालमेल किसी भी पार्टी से नहीं करेगी। यह भी महसूस किया गया कि राम मंदिर आंदोलन और अपने हिंदुत्व की विचारधारा को जिंदा रखते हुए वह सभी जातियों के लोगों के बीच अपना जनाधार फैलाएगी। हिंदुत्व की राजनीति के द्वारा ही इसने 1991 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश विधानसभा में पूर्ण बहुमत हासिल किया था और 1998 के लोकसभा चुनाव में राज्य से 58 लोकसभा सांसद चुने गए थे।

भाजपा ने अपना जनाधार बढ़ाने के लिए दो जन स्वाभिमान यात्राएं की। एक यात्रा का नेतृत्व कलराज मिश्र ने किया और दूसरी का राजनाथ सिह ने। दोनों यात्राओं के दौरान भाजपा के इन दोनों नेताओं ने राज्य के बहुत बड़े हिस्से में पार्टी के लिए प्रचार किया। यात्रा के दौरान उन्होंने मुख्य निशाना मायावती और उनकी सरकार को ही बनाया। उन्होंने लोगों को यह भी समझाने की कोशिश की कि अब भविष्य में कभी भी बसपा से उनका किसी प्रकार का गठबंधन या तालमेल नहीं होगा।

यात्रा के दौरान लोगों की अच्छी उपस्थिति रिकार्ड की गई। उसके कारण पार्टी नेताओं और कार्यकत्र्ताओं के हौसले बुलंद हुए हैं। इस सफलता के पीछे कार्यकत्र्ताओं की मेहनत को जिम्मेदार बताया जा रहा है, क्योंकि उन्होंने लोगों को जुटाने में काफी मेहनत की थी।

अन्ना हजारे के आंदोलन ने भी नए किस्म का माहौल खड़ा कर दिया है। इस माहौल में जो भी भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलता है, लोग उनके साथ खड़े दिखते हैं। मायावती के भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलकर भाजपा नेताओं ने लोगों का अपने साथ खड़ा करने की कोशिश की। भ्रष्टाचार के मसले पर गुस्सा कांग्रेस के खिलाफ भी बहुत ज्यादा है। भाजपा को लगता है कि इस गुस्से का लाभ चुनाव के दौरान उसे मिलेगा।

दोनों जन स्वाभिमान यात्राएं अयोध्या में 17 नवंबर को समाप्त हुईं। वहां की सभा को संबोधित करते हुए भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने भी यही कहा कि उनकी पार्टी किसी भी सूरत में बसपा के साथ कोई समझौता नहीं करेगी। उन्होंने भाजपा के अपने बूते ही सत्ता में आने का विश्वास जाहिर किया और साफ किया कि यदि उनकी पार्टी बहुमत नहीं हासिल करती है, तो वह विपक्ष में बैठेगी।

भाजपा भी मायावती सरकार के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने में लगी हुई है। उसने एक बुकलेट प्रकाशित की है, जिसमें राज्य सरकार के भ्रष्टाचार का विस्तार से उल्लेख है। उस बुकलेट को गांव गांव में बांटने की योजना बनाई गई है।

भाजपा ने मायावती के उत्तर प्रदेश को 4 भागों में बांटने के फैसले का विरोध किया है। उसने मायावती सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की भी घोषणा कर रखी है। मायावती ने बसपा के अनेक विधायकों को पार्टी से या तो निकाल दिया है या सस्पेंड कर दिया है। अनेक बसपा विधायक खुद भी पार्टी छोड़ गए हैं। जिन्हें टिकट नहीं मिल रहा है, वे विधायक भी अब मायावती के साथ नहीं। वैसी हालत में भाजपा को लगता है कि मायावती सरकार विधानसभा में बहुमत का समर्थन खो चुकी है।

भाजपा के बाद समाजवादी पार्टी ने भी बसपा सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की घोषणा कर दी है।

भाजपा ने एक अभियान शुरू किया है, जिसका नाम उसने भाजपा लाओ, प्रदेश बचाओं रखा है। इस अभियान की संयोजक उमा भारती को बना दिया है। इसके तहत वे राज्य की सभी 402 विधानसभा सीटों में सभा करेंगी। यह अभियान 1 से 15 दिसंबर तक चलेगा।

भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती टिकट बंटवारे की है। भाजपा पर आरएसएस का दबाव है कि वह काम न करने वाले विधायकों को दुबारा टिकट नहीं दे। पर ऐसा करना आसान नहीं है, क्योंकि जिसे टिकट नहीं मिलेगा, वह पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करेगा।

अयोध्या में भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने गांधीजी का रामराज लाने की घोषणा की और कहा कि यदि उनकी पार्टी सत्ता में आई तो अयोध्या में राममंदिर का निर्माण किया जाएगा। (संवाद)