वैसे तो यह चुनाव चारों मुख्य पार्टियों के लिए काफी महत्वपूर्ण है, पर कांग्रेस के लिए यह खास मायने इसलिए रखता है क्योंकि राहुल गांधी की निजी प्रतिष्ठा यहां दांव पर लगी हुई है। लोकसभा चुनाव में कुछ बेहतर प्रदर्शन के बाद ही उत्तर प्रदेश का मिशन 2012 नाम का उनका अभियान शुरू हो गया था जिसका लक्ष्य उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनवाना था। 2012 के नजदीक आने के साथ अब शायद ही कोई कांग्रेसी यह सोच रहा हो कि पार्टी अपने बूते वहां सरकार बना सकेगी। अब मिशन 2012 का उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा वहां की सरकार के निर्माण में अपनी भूमिका निभाना और सम्मानजनक विधानसभा सीटें पाना ही हो सकता है। लोकसभा के पिछले चुनाव में कांग्रेस को 22 सीटें मिली थीं। बाद में फीरोजाबाद लोकसभा क्षेत्र के लिए हुए उपचुनाव में भी उसकी जीत हुई। यानी 80 में से 23 सीटें पाकर काग्रेस आज वहां की सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाली पार्टी बनी हुई है। समाजवादी पार्टी के पास 22 सीटें और बसपा के पास 21 सीटें हैं।
विधानसभा में सम्मानजनक सीटें कांग्रेस के लिए कितनी हो सकती है, इसके बारे में पहले से कुछ नहीं कहा जा सकता। बिहार का उदाहरण देखंे, तो वहां पार्टी विधानसभा चुनाव का परिणाम निकलने के पहले तक सम्मानजनक सीटों की संख्या घटाकर 20 तक ले आई थी, जबकि चुनाव प्रचार की शुरुआत में यह संख्या उसने 50 की रखी थी, पर नतीजे आने के बाद उसने देखा कि उसके पास सिर्फ 4 सीटें हैं।
कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश बिहार से कुछ अलग मायने रखता है। बिहार में कांग्रेस एक पिटी हुई पार्टी के रूप में पिछले 20 साल से स्थापित हो चुकी है। उत्तर प्रदेश में पिछले लोकसभा चुनाव में उसने अपनी स्थिति सुधार ली है। इसके अलावा राहुल गांधी और सोनिया गांधी उत्तर प्रदेश के हैं और कांग्रेस के बुरे दिनों में भी ये दोनों नेता खुद चुनाव जीतने में सक्षम हैं। उत्तर प्रदेश के संगठन की स्थिति भी बिहार से बेहतर है। बिहार में तो उसके दो ही लोकसभा सांसद हैं। दो लोकसभा क्षेत्रों में वहां 12 विधानसभाएं होती हैं। इसलिए यदि वहां 12 विधानसभा सीटों पर भी कांग्रेस की जीत होती, तो वह दावा कर सकती थी कि उसने अपनी प्रतिष्ठा बचा ली है और लोकसभा के नतीजों को एक बार फिर रिपीट कर दिया है।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास अभी 23 लोकसभा सीटें हैं। वहां के कई सांसद केन्द्र सरकार में मंत्री हैं। सोनिया गांधी और खुद राहुल सरकार में बिना किसी पद पर रहते हुए बहुत ही ताकतवर हस्ती हैं। वहां एक लोकसभा क्षेत्र में 5 विधानसभा क्षेत्र होते हैं। यानी यदि कांग्रेस को लोकसभा चुनावों के प्रदर्शन को दुहराना है, तो उसे 115 विधानसभा सीटें जीतनी चाहिए। यदि ऐसा होता है, तो शायद कांग्रेस वहां की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरे, लेकिन क्या ऐसा हो पाएगा?
वैसे राहुल के मिशन 2012 का उद्देश्य उत्तर प्रदेश की सत्ता पर कब्जा करना था। यह तो अब बहुत दूर की कौड़ी लगती है, क्योंकि 2009 और 2011 के बीच गंगा और यमुना दोनों नदियों में बहुत पानी बह चुका है। इस बीच कांग्रेस के सामने भ्रष्टाचार और महंगाई को लेकर एक से एक बड़ी चुनौतियां खड़ी हुई हैं और उन चुनौतियों पर खरा उतरने के पास भी कांग्रेस कहीं दिखाई नहीं पड़ रही है। भ्रष्टाचार और महंगाई के खिलाफ छिड़ा आंदोलन कांग्रेस विरोधी आंदोलन के रूप में तब्दील हो जाता है। इसके कारण राहुल गांधी के मिशन 2012 के अभियान को लगातार झटका लगता रहा है। इन दोनों मसलों पर बोलने के लिए राहुल के पास कुछ है ही नहीं। यदि वे कुछ बोल भी देते हैं, तो फिर उनका ही मजाक उड़ जाता है। राहुल ने अपनी छवि एक युवा नेता और युवाओं के नेता के रूप में बनाने की कोशिश की थी और उसमें वे बहुत हद तक सफल भी हो रहे थे, पर भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना का आंदोलन ऐसा चला कि अब भारत में यदि कोई युवाओं का नेता है, तो वह 74 साल के अन्ना हैं न कि 41 साल के राहुल गांधी।
भ्रष्टाचार और महंगाई के मसले पर केन्द्र सरकार और कांग्रेस के घिरे होने के बावजूद राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में आक्रामक राजनीति करना चाह रहे हैं। जब आप पर देश के दो बड़े मसलों के लिए चैतरफा हमला हो रहा हो और उन हमलों का जवाब दिए बिना आप खुद आक्रामक हो जाते हों, तो वह आक्रमण की नीति उलटा काम करने लगती है। उत्तर प्रदेश में राहुल द्वारा आक्रामक होने की रणनीति का सबसे बड़ा खतरा यही है। वे उत्तर प्रदेश की पिछले 22 साल की गैर कांग्रेसी सरकारों को अक्षम और भ्रष्ट बता रहे हैं। एक रणनीति के रूप में यह कोई गलत कदम नहीं है, लेकिन जब केन्द्र सरकार पर ही भ्रष्टाचार को लेकर गंभीर आरोप लग रहे हों और उसके बारे में कहा जा रहा हो कि वह भ्रष्ट लोगों को संरक्षण दे रही है और भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कानून बनाने पर सिर्फ थोथी बयानबाजी कर रही है, तो फिर राहुल गांधी द्वारा इसी मसले पर उत्तर प्रदेश की गैर कांग्रेसी सरकारों के खिलाफ दिखाई गई आक्रामकता को कौन गंभीरता से लेगा?
फूलपुर की अपनी सभा में राहुल गांधी अपना आक्रामक तेवर दिखाते दिखाते एक बड़ी गलती कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश के लोगों की दयनीय दशा का बयान करते हुए उन्होंने उन्हें भीखारी कहकर अपने विरोधियों को एक ऐसा हथियार दे दिया है, जिससे वे चुनाव अभियान के दौरान राहुल और कां्रग्रेस पर लगातार प्रहार करते रहेंगे। उत्तर प्रदेश के लोगों को महाराष्ट्र मे जाकर भीख मांगने वाला बताते हुए राहुल के उस भाषण से कांग्रेस का उत्त्र प्रदेश में भारी नुकसान हो चुका है और उसके कारण पार्टी को सम्मानजनक सीटों की अपनी संख्या को काफी घटाना होगा। खुद कांग्रेस में ऐसे निराशावादी तत्व हैं, जो कह रहे हैं कि पार्टी को वहां शायद 10 सीटें भी नहीं मिले। अभी उसके पास 20 सीटें हैं। अब यदि 20 से भी कम सीटें वहां कांग्रेस को मिले, तो फिर मिशन 2012 तो मजाक बनेगा ही कांग्रेस और राहुल दोनों की राजनैतिक प्रतिष्ठा उत्तर प्रदेश में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में मटियामेट हो जाएगी। (संवाद)
उत्तर प्रदेश में राहुल का मिशन 2012
पार्टी की प्रतिष्ठा बचाना भी आसान नहीं होगा
उपेन्द्र प्रसाद - 2011-11-19 10:57
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तिथियां भी अभी तक घोषित नहीं हुई है, लेकिन राज्य की चारों मुख्य पार्टियों ने अपना चुनाव अभियान शुरू कर रखा है। राहुल गांधी ने कांग्रेस का चुनाव अभियान पिछले सप्ताह फूलपुर से शुरू किया। एटा में रैली कर मुलायम सिंह यादव भी इस अभियान में कूद गए हैं। भारतीय जनता पार्टी पहले से ही रथयात्राएं निकाल रही थीं। उसकी दोनों राज्य की रथयात्राएं अयोध्या में समाप्त हुई और पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने उत्तर प्रदेश में रामराज लाने का राग अलाप भी दिया। मायावती चूंकि सत्ता में हैं, इसलिए चुनाव अभियान का उनका अपना अलग तरीका है। उन्होंने राज्य को 4 छोटे प्रदेशों में विभाजित करने का औपचारिक प्रस्ताव करके चुनावी शतरंज पर अपनी गोटी खेल दी है।