आज सांख्यिकी विभाग द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार प्राथमिक वस्तुओं - ईंधन, बिजली, तथा स्नेहक के मूल्यों में भी वृद्धि का रुझान रहा। 28 नवम्बर 2009 को समाप्त सप्ताह की समीक्षा के बाद ये आंकड़े थोक मूल्यों के रूझान के आधार पर तैयार किये गये थे।

लेकिन एक ही सप्ताह पहले जो 21 नवम्बर को समाप्त हुआ था उसमें मुद्रास्फीति की दर 17.47 प्रतिशत ही थी।

जो भी हो, अक्तूबर महीने के लिए समग्र थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर 1.34 प्रतिशत पर खड़ी रही थी। इसमें खाद्य और गैर-खाद्य दोनों प्रकार के पदार्थ शामिल थे।

रिजर्व बैंक 29 जनवरी को अपनी मौजूदा आसान मौद्रिक नीति की समीक्षा करेगी, हालांकि रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव ने कहा है कि थोक मूल्य सूचकांक इस समय उपभोक्ता कीमतों की तुलना में काफी मामूली है। अर्थात उनके अनुसार मुद्रास्फीति की दर मामूली ही है।

जो भी हो, जनता को इस तरह के अर्थशास्त्रियों के बयानों से कोई राहत नहीं मिल रही है, क्योंकि जनता कमरतोड़ महंगायी से बेहाल है। जनता दुखी है और अर्थशास्त्री प्रधान मंत्री समेत धनवान लोगों को जनता के दुख से कोई सरोकार नहीं दिखायी देता।

ध्यान रहे कि प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन सिंह एकाधिक बार कह चुके हैं कि वह आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों को कम करने में सक्षम नहीं हैं। लेकिन राजनीतिक कारणों से चिंतित कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हाल ही में कहा था कि आवश्यक वस्तुओं की मूल्य वृद्धि हमारे लिए सबसे अधिक चिंता का विषय बनी हुई है।

गुरुवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, आलू वार्षिक आधार पर दोगुना से भी अधिक कीमतों पर बिक रही है जबकि प्याज की कीमतें 23 फीसदी अधिक हैं।

चावल जैसे अन्य आवश्यक वस्तुओं के मूल्य 11.75 प्रतिशत, गेहूं 12.60 प्रतिशत और दालें 42 प्रतिशत ज्यादा कीमतों पर मिल रही हैं।

इसी समय, फल 13 प्रतिशत तक महंगे थे जबकि दूध 11.36 प्रति शत अधिक महंगा था।

श्रीमती गांधी ने कहा था कि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री से बात की थी और उन्होंने उसे आश्वासन दिया है कि सरकार इस मामले में "हर संभव कदम" उठायेगी।

"अगर मुद्रास्फीति का दबाव एक लंबे समय तक इसी तरह बना रहा तो मौद्रिक नीति पर एक सूक्ष्म दृष्टि रखना होगा," भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा है। #