श्री अच्युतानंदन को पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा कहा गया था कि वे सार्वजनिक रूप से अपनी गलतियों को स्वीकार करें। पार्टी के उसी आदेश का पालन करते हुए उन्होंने एक प्रेस कान्फ्रेंस का आयोजन किया था और उस कान्फ्रेंस में उन्होंने खुले रूप में अपनी कुछ गलतियों को स्वीकार किया।

लेकिन गलतियों को उन्होंने जिस तरह और जिस तेवर में स्वीकार किया उससे साफ लगता है कि उन्होंने असंतोष जाहिर करने के अपने अधिकार को त्यागने का निर्णय नहीं किया है।

यह स्पष्ट लग रहा था कि वे अपनी गलती परिसिथतिवश स्वीकार कर रहे हैं। गलती स्वीकार करते समय उनकी जो भाव भंगिमा थी, उससे साफ लग रहा था कि वैसा वे अपने मन को मार करके कर रहे हैं। सच तो यह है कि उन्होंने एक रणनीति के तहत वैसा करने को स्वीकार किया, ताकि उनके खिलाफ पार्टी की ओर से कोर्इ कड़ी कार्रवार्इ नहीं हो।

अपनी गलती स्वीकार करते हुए भी उन्होंने यह संकेत भेजने में सफलता पार्इ कि यदि परिसिथतियां फिर वैसी ही बनी, तो वे उस तरह की गलतियां फिर दुहराने से नहीं चूकेंगे।

दो सवालों के जवाब उन्होंने इस तरह से दिए मानों वह कहना चाह रहे हों कि जरूरत पड़ने पर वे अपना असंतोष भविष्य में भी व्यक्त करेंगे, भले ही वे पार्टी में पूरी तरह अलग थलग पड़ जाएं।

उन्होंने यह स्वीकार किया कि नेयतिन्कारा में जिस दिन विधानसभा उपचुनाव के लिए मतदान हो रहा था, उस दिन हत्यारों के शिकार हुए टीपी चन्द्रशेखरन के घर जाकर उन्होंने गलती की। यहां गौर करने की बात यह है कि उन्होंने यह नहीं कहा कि चन्द्रशेखरन के घर जाना गलत था, बलिक उस दिन उनके घर जाना गलत था। उसी सांस में उन्होंने यह भी कह डाला कि चंद्रशेखरन एक बहादुर शहीद हैं, जिन्होंने सीपीएम के लिए अनेक प्रकार से वर्षो तक बिना थके हुए काम किया। उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने उसी समय सीपीएम के प्रदेश सचिव पी विजयन द्वारा चंद्रेशेखरन के लिए आलोचना भरे शब्दों की निंदा भी कर दी।

चंद्रशेखरन की विधवा के के रेमा ने उनकी हत्या की सीबीआर्इ जांच की मांग की है। सीपीएम की प्रदेश र्इकार्इ का आधिकारिक मत है कि सीबीआर्इ जांच की मांग गलत है। सीपीएम चाहती थी कि चंद्रशेखरन भी उस मांग को गलत बताएं, पर उन्होंने वैसा करने से मना कर दिया।

कुडनाकुलम बांध के मुददे पर अच्युतानंदन ने यह स्वीकार किया कि वहां जाने का उनका प्रयास पार्टी लाइन के खिलाफ था, लेकिन उन्होंने इसके साथ यह भी कहा कि इस मसले पर उन्होंने अंतिम शब्द नहीं कहे हैं। बलिक उन्होंने यह कह डाला कि इस पर वे सदैव निगरानी रखेंगे।

उन्होंने पी विजयन की तुलना श्रीपाद अमृत डांगे से करने को भी गलत माना और कहा कि उन्हें इस तरह की तुलना से बचना चाहिए था।

जिस तरह से अच्युतानंदन ने सार्वजनिक रूप से गलती मानी, उसे देखते हुए यही कहा जा सकता है कि उससे सीपीएम का नेतृत्व संतुष्ट नहीं हुआ होगा। तकनीकी रूप से अच्युतानंदन ने वह कर दिखाया है, जैसा उन्हें पार्टी की तरफ से करने को कहा गया था, लेकिन वैसा करते समय उनका दिल उनके साथ नहीं था। यह उनके चेहरे पर साफ देखा जा सकता था।

इसमें किसी प्रकार के शक की कोर्इ गुंजायश नहीं है कि भविष्य में आगे भी सीपीएम के केन्द्रीय नेतृत्व के पास अच्युतानदंन से संबंधित समस्या को उठाया जाएगा। (संवाद)