अब करुणानीधि ने घोषणा की है कि वे जून 2010 में राजनीति से रिटायर हो जाएंगे। 85 साल के करुणानीधि का 60 साल का सफल राजनैतिक इतिहास रहा है। तमिलनाडू के वे सबसे सफल राजनेता रहे हैं। उन्होंने अनेक चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना किया है। डीएमके के संस्थापक अन्नादुरै के साथ उन्होंने नजदीकी से काम किया। पहली बार 1957 में वे विधानसभा के सदस्य बने। 1967 में उनकी पार्टी ने अन्ना के नेतृत्व में कांग्रेस को सत्ता से अपदस्थ किया। वे अन्ना के उत्तराधिकारी और तमिलनाडू के मुख्यमंत्री बने। तब से वे अबतक 5 बार मुख्यमंत्री का पद संभाल चुके हैं।

उन्होंने जून 2010 में अपने रिटायरमंेट की घोषणा करते हुए कहा कि उसके पहले वे एक नये विधानसभा कम्पलेक्स का निर्माण, अन्नादुरै के नाम पर विश्वस्तरीय एक पुस्तकालय और विश्व तमिल कान्फ्रेंस के आयोजन की अपनी इच्छा की पूत्र्ति करेंगे। ये उनके जीवन का अभी तक का अधूरा एजेंडा है।

कुछ लोग मानते हैं कि उनकी यह घोषणा उनके द्वारा डाला जा रहा उक राजनैतिक दबाव है ताकि वे अपने बेटे स्ताालिन को अपनी जगह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा सकें। वहां के विरोधी पार्टी कि लोग कह रहे हैं कि यह करुणानीधि द्वारा किया जा रहा एक राजनैतिक ड्रामा हैए जिसका उद्देश्य 19 दिसंबर को हो रहे विधानसभा के दो उपचुनावों में अपनी पार्टी के उम्मीदवारों की जीत निश्चित करवाना है। कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि करुणानीधि ने अपने इस बयान से अपनी पार्टी और अपने परिवार के लोगों पर दबाव बनाना चाहा है ताकि वे आपस में मिलजुलकर रहें।

करुणानीधि का रिटायरमेंट कोई बड़ी समस्या नहीे है, लेकिन उनके उत्तराधिकार का सवाल निश्चय ही बहुत पेचीदा है। पार्टी उनके परिवार के किसी भी सदस्य को उनकी जगह पर लाने के लिउ तैयार है, पर असली समस्या करुणानीधि की संतानों के बीच चल रही आपसी लड़ाई है। सभी की नजर करुणानीधि के वारिस बनने पर है।

फिलहाल तो करुणानीघि ने सबको कुछ न कुछ बनाकर उनके बीप में संतुलन बना रखा है। बड़े बेटे अझाागीरी को केन्द्र में मंत्री बनवा दिया है। बेटी कानीमोझी राज्यसभा की सदस्य है। उनका एक नाती भी केन्द्र में मंत्री है। अपने छोटे बेटे स्तालिन को उन्होंने उपमुख्यमंत्री बना दिया है। स्तालिन उपमुख्यमंत्री बनकर मुख्यमंत्री की अनेक जिम्मेदारियों को संभालने भी लगे हैं। स्तालिन को उपमुख्यमंत्री बनाकर करुणानीघि ने संकेत दे दिया है कि वे स्तालिन को ही अपना राजनैतिक वारिस बनाना चाहते हैं।

लेकिन स्तालिन को अपना राजनैतिक वारिस बनाना करुणानीधि के लिए आसान नहीं होगा। उनके बड़े बेटे अझागीरी दिल्ली की राजनीति में फिट नहीं हो पा रहे हैं और वापस तमिलनाडू की राजनीति में ही सक्रिय होना चाहते हैं। दक्षिण तमिलनाडू के अपने जनाधार का वे हवाला दे रहे हैं। वे तमिलनाडू को स्तालिन के लिउ नहीं छोड़ना चाहेंगे। उत्तराधिकार के रास्ते की सबसे बड़ी समस्या यही है। (संवाद)