राष्ट्रपति चुनाव का अभियान बहुत ही टक्कर का था। किसकी जीत होगी, इसके बारे में भविष्यवाणी करने में राजनैतिक विश्लेषक झिझक रहे थे। पर ओबामा ने बराबरी की टक्कर की बात को झुठलाते हुए एक शानदार जीत हासिल की। दुनिया के लगभग सभी देशों ने ओबामा की जीत का स्वागत किया है, पर हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि उनकी जीत को भारत किस नजरिए से देखता है। यह सच है कि चुनाव अभियान के दौरान न तो ओबामा और न ही रोमनी भारत पर कुछ बोल रहे थे। राष्ट्रपति उम्मीदवारों के बीच होने वाली बहस के दौरान चीन का नाम 34 बार लिया गया था अमेरिका में रह रहे भारत मूल के लोगों का मानना है कि डेमोक्रेट भारत के लिए अच्छे होते हैं। नेहरू और कैनेडी के दिनों से इस तरह की धारणा बनी हुई है, क्योंकि चीन के साथ युद्ध के दौरान अमेरिका के कैनेडी प्रशासन ने भारत का साथ दिया था।

ओबामा को सबसे पहले बधाई देने वालों देशों में भारत भी शामिल रहा है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ओबामा को अलग अलग बधाई संदेश भेजे। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा अब एक दूसरे को अच्छी तरह समझते हैं। यदि मिट रोमनी की जीत होती तो उनके साथ समझ बनाने में मनमोहन सिंह को नये सिरे से शुरुआत करनी होती।

ओबामा जब पहली बार राष्ट्रपति बने थे, तो उन्होंने आउटसोर्सिंग को लेकर जो नीति अपनाई थी, उसे भारत ने पसंद नहीं किया था। जाहिर है, इसके कारण दोनों देशों के रिश्ते में कुछ तल्खी आई थी, पर बाद में ओबामा ने भारत के साथ रिश्ते सुधारने मे दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दी। 2008 के शुरुआती महीनों में उन्होंने चीन के प्रति उदार रवैया अपनाना शुरू कर दिया था, लेकिन उन्होंने उसे जल्द ही समाप्त भी कर दिया। उन्होंने विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन को भारत भेजकर यह संदेश दिया कि भारत के साथ बेहतर संबंध को वह महत्व देते हैं।

उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपना पहला राजकीय अतिथि बनाकर सम्मानित किया। उन्होंने भारत को एक क्षेत्रीय महाशक्ति के रूप में देखना शुरू कर दिया, ताकि चीन के साथ शक्ति संतुलन इस क्षेत्र में बना रहे। अपने पहले ही कार्यकाल मे उन्होंने भारत की यात्रा भी की, जबकि बिल क्लिंटन अपने दूसरे कार्यकाल में भारत आए थे। उनके पहले कार्यकाल में भारत के अधिकारियों ने अमेरिका की और अमेरिकी अधिकारियों ने भारत की भरपूर यात्राएं की हैं, जाहिर है, आधिकारिक स्तर पर दोनों देशों के बीच पर्याप्त संवाद बने हुए हैं।

भारत और अमेरिका का व्यापारिक संबंध भी लगातार बेहतर हो रहा है। अमेरिका भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापार सहयोगी है। भारत का अमेरिका के साथ व्यापार 100 अरब डाॅलर से भी ज्यादा हो गया है। ओबामा ने अपने प्रशासन में भारतीय मूल के अमेरिकियों को भारी संख्या में नियुक्त कर रखा है।

भारत के लिए यह भी काफी मायने रखता है कि अमेरिका का पाकिस्तान के साथ कैसा रिश्ता रहता है। अमेरिका का सैनिक प्रतिष्ठान रिपब्लिकन को पसंद करता है, क्योंकि रिपब्लिकन आम तौर पर पाकिस्तान के लिए उदारता से पेश आते है। पाकिस्तान मे किए गए एक सर्वेक्षण मे ंपाया गया था कि ज्यादा पाकिस्तानी मिट रोमनी को जीतता हुआ देखना चाहते हैं। यह स्वाभाविक ही था, क्योंकि ओबामा प्रशासन से पाकिस्तान में सख्त नाराजगी है। अमेरिका वहां लगातार ड्रोन हमले कर रहा है और उन हमलों में नागरिक भी मारे जा रहे हैं। कई बार तो पाकिस्तानी सेना के लोग भी उसे हमले में मारे गए हैं। आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान के रवैये से ओबामा लगातार अपनी नाखुशी दिखाते रहे हैं और वे पाकिस्तान पर दबाव डालते रहे हैं कि वह आतंकवादियों के खिलाफ और सख्ती दिखाए।

अपने दूसरे कार्यकाल में ओबामा उसी नीति को आगे बढ़ाएंगे। वे अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना को अब बाहर करना चाहते हैंए लेकिन उसके पहले वे तालिबान की कमर पूरी तरह तोड़ना चाहेंगे और ऐसा करने के लिए वे पाकिस्तान से ज्यादा सहायता की उम्मीद करेंगे। इसके लिए पाकिस्तान पर उनकी ओर से और भी दबाव बनाया जाएगा। भारत केन्द्रित पाकिस्तान के आतंकवादी गुटों को लेकर भी ओबामा पाकिस्तान पर दबाव बना सकते हैं। इन सबके बावजूद वे पाकिस्तान का उस सीमा तक धकेलना नहीं चाहेंगे, जहां उससे अमेरिका का संबंध ही टूट जाय।

कुछ लोगों का मानना है कि अमेरिका भारत के और भी नजदीक आएगा, क्योंकि वह चीन के उत्थान को रोकना चाहता है। हिलेरी क्लिंटन ने पिछले साल की अपनी भारतीय यात्रा के दौरान कहा था कि भारत इस क्षेत्र में अपनी बड़ी भूमिका में आ जाय। जाहिर है भारत के लि ओबामा की जीत एक अच्छा संकेत है। (संवाद)