पिछले साल दिसंबर महीने में सरकार ने शान विद्राहियों के साथ संघर्ष विराम पर सहमत हुई थी। उसके अगले साल उसने करेन विद्रोहियों के साथ भी वैसा ही समझौता किया। इस तरह के समझौतों ने म्यान्मार केन्द्रित भारत के विद्राहियों के खिलाफ कार्रवाई करने का अनुकूल माहौल तैयार कर दिया है। इसके अलावा म्यान्मार के माहौल ने भारत के पूर्वी एशियाई देशों के साथ व्यापार बढ़ाने की संभावना के द्वार भी खोल दिए हैं, क्योंकि उस क्षेत्र में व्यापार का रास्ता म्यान्मार से होकर ही जाता है।

नस्लीय विद्रोह म्यान्मार के उत्तरी और दक्षिणी इलाकों में हो रहा था। शान राज्य के उत्तर में चीन, पूर्व में लाओस और दक्षिण में थाईलैंड है और वह खुद देश के दक्षिण में स्थित है। म्यान्मार का यह सबसे बड़ा प्रशासनिक प्रभाग है। करेन राज्य देश के उत्तरी हिस्से में है। वहां करेन नेशनल यूनियन ने 1949 में विद्रोह का झंडा उठा लिया था और वे स्वायत्तता की माग करते हुए अपनी लड़ाई लड़ रहे थे। शान राज्य में 17 विद्रोही गुट सरकार के खिलाफ लड़ रहे थे।

करेन और शान विद्रोहियों के साथ समझौते के बाद म्यान्मार की सरकार अपने देश में भारत के नगा, मणिपुरी व असमी विद्रोहियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए बेहतर स्थिति में आ गई है। पिछले दिनों जब भारत और म्यान्मार के अधिकारी नई दिल्ली में अपने द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने के लिए बैठक कर रहे थे, तो भारत ने म्यानमार को कहा था कि वह भारत विरोधी गुटों के खिलाफ कार्रवाई करे। भारत के अधिकारियों ने उम्मीद जाहिर की थी तो अपने आंतरिक विद्रोहियों के साथ शांति स्थापित करने के बाद वहां की सरकार भारीतय विद्रोहियों की ओर अपना ध्यान देगी।

शान विद्रोहियों के साथ समझौता होना इसलिए भी बहुत मायने रखता है, क्योंकि इसके कारण भारत बांग्लादेश और म्यान्मार के बीच बनने वाला 3200 किलोमीटर लंबा पथ बनाने का काम आसान हो गया है। 2016 तक इस पथ के निर्माण का लक्ष्य रखा गया है। यह विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक के सहयोग से बनाया जा रहा है। भारत ने म्यान्मार को 50 करोड़ डाॅलर का कर्ज दिया है, जिसके एक हिस्से का इस्तेमाल इस सड़क के निर्माण में किया जाएगा। भारत के पूरब देखो की नीति को सार्थक बनाने के लिए इस सड़क का निर्माण बहुत जरूरी है। इस सड़क के कारण भारत वियतनाम, लाओस और कंबोडिया की अर्थव्यवस्था से जुड़ जाएगा।

इस समय अनेक प्रकार के चीनी माल म्यान्मार के रास्ते दुनिया भर में फैल जाते हैं। जिस भौगोलिक स्थिति का फायदा अभी चीन उठाता है, वही भौगोलिक स्थिति भारत को लाभ पहुंचाने लगेगा। शर्त सिर्फ यह है कि 1600 किलोमीटर लंबा यह पथ बनकर तैयार हो जाय। इससे भारत के 7 पूर्वोत्तर राज्यों को सबसे ज्यादा फायदा होगा। (संवाद)