आबंटन रद्द होने के बाद सरकार ने उन्हीें तरंगों को बेचने के लिए जो नीलामी की, उसमें उत्साहजनक परिणाम नहीं निकले यान खजाने को ज्यादा लाभ नहीं हुआ। इस नीलामी से केन्द्र सरकार ने उम्मीद लगाई थी कि उसे 40 हजार करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होगा, लेकिन यह 10 हजार करोड़ रुपये तक भी नहीं हुआ। इसी बात को लेकर केन्द्र सरकार और कांग्रेस सरकार खुशियां मना रही है। केन्द्र सरकार को इस बात का अफसोस होना चाहिए था कि उसके खजाने में कुछ खास आया नहीं, पर वह खुश हो रही है और पूछ रही है कि कहां गए 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपये जिसके नुकसान की बात विपक्षी पार्टियां और दूसरे लोग कर रहे थे। संचार मंत्री चटखारे ले लेकर यह सवाल कर रहे हैं और यूचना व प्रसारण मंत्री भी कुछ इसी अंदाज में बातें कर रहे हैं।

सवाल उठता है कि क्या इस तरह की टिप्पणी सरकार की ओर से उचित है? विफल नीलामी में सरकार यदि अपनी जीत देख रही है तो इसका कारण यह है कि उसे इसके बाद कैग पर हमला करना का मौका मिल रहा है और उनका उपहास उड़ाया जा रहा है। पिछले कई मामलों में कैग ने सरकार को हुए राजस्व के नुकसान की बात की है। सरकार कैग के आंकड़ों को मानने से इनकार कर देती है। अब उसे लग रहा है कि 2जी की विफल नीलामी ने उसे सही और कैग को गलत साबित कर दिया है।

लेकिन केन्द्र सरकार द्वारा व्यक्त की गई खुशी और कैग पर किया जा रहा हमला दोनों गलत है। खुश होने का तो कोई कारण ही नहीं हो सकता, उलटे इसके कारण केन्द्र सरकार को तो दुखी होना चाहिए। उसे इसलिए दुखी होना चाहिए, क्योंकि विफल नीलामी के कारण वह राजस्व से वंचित रह गई है और चालू साल में राजकोष का घाटा उसके अनुमान से कहीं बहुत ज्यादा होगा। राजकोषीय घाटे पर लगाम लगाना आज वित्त मंत्रालय की पहली प्राथमिकता है, क्योंकि यह खतरे के स्तर को पहले ही पा कर चुका है। देश की अर्थव्यवस्था आज पटरी से उतर चुकी है और उसे फिर से पटरी पर लाने के लिए वित्त मंत्रालय को भारी मशक्कत का सामना करना पड़ रहा है। इसके लिए सरकार द्वारा उन नीतियों को अपनाया जा रहा है, जिनसे सीधे सीधे महंगाई बढ़ रही है और आम लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। वैसी स्थिति मंे 2 जी स्पेक्ट्रम की नीलामी का विफल होना केन्द्र सरकार के लिए भी घातक है।

कैग को गलत ठहराया जाना भी गलत है, क्योंकि अव्वल तो कैग ने यह कभी नहीं कहा था कि सरकारी खजाने को 2 जी स्पेक्ट्रम की नीलामी के कारण परे 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ ही है। उसने अलग अलग स्थितियों में अलग अलग नुकसान की तस्वीर पेश की थी और एक तस्वीर 1 लाख 76 हजार करोड़ की थी। सच तो यह है कि उसने नुकसान का एक रेंज पेश किया था, जिसके तहत कम से कम 57 हजार करोड़ और अधिक से अधिक 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपये के नुकसान की बात थी।

जिस तरह से नीलामी हुई, उससे यह साफ है कि उद्योग और सरकार ने मिलकर इस नीलामी को विफल करने की कोशिश की। इसमें दिलचस्प बात यह है कि नीलामी को सफल बनाने का जिम्मा उन्हीें लोगों को था, जिनका सुप्रीम कोर्ट के आदेश और कैग के आकलन के बाद नुकसान हो रहा था। केन्द्र सरकार पर इसके कारण भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे थे और उद्योग को मिले लाइसेंस रद्द हो गये थे। इसके कारण दोनों ने एक नापाक गठबंधन बना डाला, जिसके तहत इस नीलामी को विफल किया जाना था। नहीं तो क्या कारण है कि दिल्ली, मुंबई, बंगलोर और हैदराबाद जैस कमाऊ क्षेत्र के स्पेक्ट्रम खरीद में भी किसी कंपनी ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। यान संचार कंपनियों ने कार्टेल बनाकर और केन्द्र सरकार से सांठगांठ कर नीलामी को विफल कर दिया और सरकार इस विफलता पर इठला रही है, जबकि उसे इससे चिंतित होना चाहिए था। (संवाद)