यह सच है कि इन दोनों पार्टियों ने कई बार केन्द्र की यूपीए सरकार को संकट से उबारने का काम किया है। इन दोनों पार्टियों की भूमिका सरकार का साथ देने के मामले में राज्य सभा में काफी महत्वपूर्ण रही है, क्योंकि वहां यूपीए के सांसदों की संख्या बहुत ही कम है।
इन दोनों पार्टियों द्वारा मिल रहे समर्थन के बावजूद कांग्रेस निश्चिंत नहीं रह सकती, क्योंकि उन दोनों को उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ने हैं और उन्हें अपना नफा और नुकसान चुनावों में देखना है। लगता है कि कांग्रेस को भी इस बात का अहसास है। इसलिए उसने राहुल गांधी के नेतृत्व में आगामी लोकसभा चुनाव के लिए एक चुनाव समिति की घोषणा भी कर डाली। उस समिति का गठन कर उसने बता दिया कि राहुल गांधी किन किन लोगों को साथ लेकर चुनाव की तैयारी करेंगे।
यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन कर रही समाजवादी पार्टी ने भी उत्तर प्रदेश के 55 लोकसभा क्षेत्रों से अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर डाली। दिलचस्प बात यह है कि जिस दिन राहुल गांधी को कांग्रेस चुनाव समिति का अध्यक्ष बनाया गया, उसके अगले दिन ही समाजवादी पार्टी ने 55 उम्मीदवारांे की अपनी पहली सूची जारी कर दी। सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव लगातार कभी भी चुनाव हो जाने की बातें कर रहे हैं।
कांग्रेस के लिए यह समय चुनाव के लिए उपयुक्त नहीं है। इसका कारण यह है कि आज उसके खिलाफ भ्रष्टाचार के अनेक आरोप लग रहे हैं, जिनका जवाब उसके पास नहीं है। खुद सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं और दोनों में से किसी ने भी इस पर संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दिया है। सोनिया के दामाद रॉबर्ट भद्र पर तो आरोपों की झड़ी ही लगी हुई है। भ्रष्टाचार के मामलों के अलाव बढ़ती महंगाई भी कांग्रेस के खिलाफ जा रही है। महंगाई केन्द्र सरकार के निर्णयों के कारण भी बढ़ी है, इसलिए महंगाई की जिम्मेदारी कांग्रेस किसी और के ऊपर डाल भी नहीं सकती। यही कारण है कि यदि इस समय चुनाव हुए तो कांग्रेस की नैया डूबने की संभावना ही ज्यादा प्रबल है। इसलिए उसके लिए अच्छा यही होगा कि वह फिलहाल चुनाव से बचे।
पर कांग्रेस का एक तबका कहता है कि जितना विलंब होगा, कांग्रेस की स्थिति उतनी लगातार खराब होती जाएगी। इस तरह की राय रखने वाले लोग जल्द चुनाव में जाने से नहीं डर रहे। बहरहाल, चुनाव हो या न हो, यह पूरी तरह कांग्रेस के हाथ में नहीं है, क्योंकि इसका निर्णय सहयोगी पार्टियां करेंगी, जिन्हें अपनी अपनी राजनीति देखनी है।
आज कांग्रेस ही नहीं, बल्कि अन्य पार्टियों की स्थिति भी अच्छी नहीं है। भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस की मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी है। उसकी हालत भी खराब है। उसके अंदर नेतृत्व की लड़ाई चल रही है और उसके वर्तमान अध्यक्ष नितिन गडकरी पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं, जिसके बाद पार्टी दो भागों में बंटी दिखाई पड़ रही है। वामपंथी दलों को भी यही हाल है। वे भी चुनाव के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं।
करुणानिधि की भूमिका भी राजनैतिक अस्थिरता के इस माहौल में बहुत महत्वपूर्ण है। उनके पास लोकसभा में 18 सांसद हैं और वे कहने को तो सरकार का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन ए राजा और दयानिधि मारन द्वारा इस्तीफा दिए जाने के बाद उनकी जगहों पर किसी और को मंत्री बनाने से इनकार कर दिया था। इसलिए वे भी देखो और इंतजार करो की नीति अपना रहे हैं और केन्द्र सरकार अपनी स्थिरता के लिए मायावती और मुलायम की तरह ही उन पर पूरा भरोसा नहीं कर सकती।
अस्थिरता के इस माहौल में ही एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार को अपने कार्यकत्ताओं को कहना पड़ा कि वे मध्यावधि चुनावों का सामना करना के लिए तैयार रहें। जाहिर है लगभग सभी पार्टियां चुनावों की बात कर रही हैं, लेकिन लगभग सभी पार्टियां समस्याओं का सामना कर रही हैं। कांग्रेस, भाजपा और लेफ्ट ही नहीं, बल्कि अनेक छोटी छोटी पार्टियां भी चुनाव के लिए तैयार नहीं दिखाई पड़ रही हैं। शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे की मौत हो गई है। उसके बाद शिवसेना की ताकत के बारे में आशंका पैदा हो गई है, क्योंकि उनके बाल ठाकरे के समर्थक कितना शिवसेना के साथ रहेंगे और कितना राज ठाकरे के महराष्ट्र नवनिर्माण सेना की ओर चले जाएंगे, इसके बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। उसके कारण महाराष्ट्र में भाजपा की रणनीति भी गड़बड़ा गई है। (संवाद)
समय से पहले चुनाव की संभावना प्रबल
कांग्रेस को लोकसभा चुनाव के लिए अभी से तैयार हो जाना चाहिए
कल्याणी शंकर - 2012-11-23 11:40
संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होते ही लोकसभा के अगले चुनाव के शीघ्र होने की संभावना भी तेज हो गई है। वैसे कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के पास अपने बाहरी समर्थकों के बूते स्पष्ट स्पष्ट बहुमत है। लोकसभा में उसके समर्थक सांसदों की संख्या अभी भी 300 से ऊपर है, लेकिन 22 सदस्यीय समाजवादी पार्टी और 21 लोकसभा सांसदों वाली बसपा के ऊपर कांग्रेस विश्वास नहीं कर सकती।