ममता बनर्जी यह कहकर तीस्ता समझौते का विरोध कर रही हैं कि उसके कारण पश्चिम बंगाल का नुकसान होगा। वह जो कह रही हैं, उसे समझा जा सकता है, पर सवाल उठता है कि आखिर केन्द्र सरकार अब उनके दबाव में इस मसले पर क्यों आ रही है?

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बांग्लादेश को कह रखा है कि इस समझौते के लिए पश्चिम बंगाल सरकार के विचारों को हम दरकिनार नहीं कर सकते। उनका यह भी कहना है कि ममता बनर्जी को इस समझौते के पक्ष में लाने के सारे प्रयास जारी हैं।

कोलकाता स्थित विश्लेषक इस बात से बेहद चिंतित हैं कि ममता बनर्जी भारत और बांग्लादेश के द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करने वाले इस समझौते के लगातार खिलाफ बनी हुई हैं। यदि तीस्ता समझौते पर दोनों देशों के बीच 2014 तक सहमति नहीं बनी, तो दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध खराब हो सकते है। गौरतलब है कि 2014 में बांग्लादेश में भी चुनाव होने हैं और उस चुनाव में वर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद की हार होने की प्रबल संभावना है।

शेख हसीना और उनकी पार्टी को भारतपरस्त पार्टी माना जाता है। बांग्लादेश के उनके विरोधी उन्हें भारत के एजेंट तक कहते हैं। 2009 में उनकी सरकार सत्ता में आई और उसके बाद दोनों देशों के संबंधों में भारी सुधार हुआ।

संबंधों को और बेहतर बनाने की दिशा में तीस्ता नदी पर भी समझौते का प्रयास हुआ, पर ममता बनर्जी ने इसे संभव होने नहीं दिया। वह अभी भी इस समझौते का विरोध कर रही हैं। उनके इस विरोध से देश का पहले से ही नुकसान हो रहा है। भारत बांग्लादेश से होकर अपने देश की गाडि़यों के आवागमन की सुविधा चाहता है। यह सुविधा उसे मिल भी जाती, लेकिन तीस्ता पर समझौता नहीं होने के कारण बांग्लादेश ने भारत को इस सुविधा से संपन्न करने से मना कर दिया।

यदि भारत को यह सुविधा मिल जाय, तो देश की मुख्यभूमि से पूर्वाेत्तर राज्यों में वाहनों के आने जाने मे 70 फीसदी ईधन की बचत होगी और इसी अनुपात में समय की भी बचत होगी। जाहिर है, इसके कारण पूर्वात्तर राज्यों के विकास की गति तेज होगी। इसके कारण बांग्लादेश को भी फायदा होता और भारत के वाहनों पर लगे टैक्स से उसे अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होते। इसके कारण दोनों देशों के अपने व्यापार भी बहुत बढ़ जाते।

समझौता न होने के कारण शेख हसीना वाजेद की राजनैतिक स्थिति भी अपने देश में कमजोर हुई है। उनके विरोधी उनसे मांग कर रहे हैं कि भारत के प्रति उदार रवैये का वह त्याग कर दें। जनता के बीच में भी उनकी स्थिति कमजोर हो रही है। यदि उनकी अपने देश के चुनाव में हार होती है, तो उसका एक कारण तीस्ता समझौते का न होना भी होगा। जैसे जैसे चुनाव नजदीक आएगा, शेख हसीना पर भारत विरोधी कदम उठाने का दबाव बढ़ता जाएगा।

2014 में अमेरिका भी अफगानिस्तान में अपनी सैन्य उपस्थिति समाप्त कर सकता है। उसके कारण तालिबान वहां फिर से प्रबल हो सकते हैं और उनकी प्रबलता के कारण भारत की पश्चिमी सीमा अशांत हो सकती है। उसके कारण तुर्कमेनिस्तान से भारत तक बन रहा गैस पाइपलाइन खतरे में पड़ जाएगी। कश्मीर में भी तालिबान और पाकिस्तान प्रेरित हिंसक वारदातों में वृद्धि हो सकती है। और यदि 2014 में बांग्लादेश में शेख हसीना वाजेद की सरकार की हार हो जाती है, तो लगभग वैसी ही स्थिति भारत की पूर्वी सीमा पर भी बन सकती है। (संवाद)