2014 के पहले 2013 में 10 विधानसभाओं के आमचुनाव भी होने हैं। इस योजना का कितना फायदा कांग्रेस को मिलेगा, इसका पता भी इन चुनावों में लग जाएगा। विधानसभा चुनाव जहां होने हैं, उनमें प्रमुख राज्य हैं- जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली और राजस्थान। पूर्वाेत्तर के 4 राज्यों- मेघालय, त्रिपुरा, नगालैंड और मिजोरम में भी चुनाव होने वाले हैं। फिलहाल तो सबकी नजर गुजरात में हो रहे विधानसभा के चुनावों पर लगी हुई है। हिमाचल प्रदेश में मतदान हो चुके हैं और वोटों की गणना बाकी है। उम्मीद है कि वहां कांग्रेस चुनाव जीत जाएगी।

राहुल गांधी के नेतृत्व में एक समन्वय समिति का गठन हाल ही में हुआ है। उसने पांच राज्यों को खास तौर से चिन्हित किया है, जहां कांग्रेस को ज्यादा सीटें हासिल हो सकती हैं। ये राज्य हैं- कर्नाटक, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, और उड़ीसा। इनमें 91 लोकसभा की सीटें हैं। इनमें उड़ीसा को छोड़कर शेष चार राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। उड़ीसा में बीजू जनता दल की सरकार है।

समन्वय समिति इन राज्यों में कांग्रेस को आने वाली समस्याओं का अध्ययन कर उन्हें समाप्त करने की कोशिश करेगी और उम्मीदवार तय करते समय उसकी जीत की संभावनाओं को ही तवज्जो देगी। बिहार के बारे में कांग्रेस ने अपनी नीति बना ली है। उसे पता है कि वह वहां बहुत कमजोर है और वह लालू यादव व रामविलास पासवान पर निर्भर होकर ही चुनाव लड़ेगी।

यूपीए सरकार ने सीधे कैश सब्सिडी देने की अपनी नीति का नाम दिया है- "आपका पैसा, आपके हाथ"। उसकी यह नीति चुनाव के पूरे परिदृश्य को ही बदल देने की क्षमता रखती है। इस नीति को चुनावों को ध्यान में रखते हुए ही लागू किया जा रहा है। पूरे एक साल तक इसे पूरे देश में लागू किया जाता रहेगा। जाहिर है, कांग्रेस इस नीति के फायदों को जनता को समझाने की कोशिश करेगी और भ्रष्टाचार के कारण सरकारी योजनाओं का जो लाभ उन्हें नहीं मिलता है, वे लाभ उनतक पहुंचाया जाएगा।

नीतियों के मसले पर केन्द्र सरकार अपने लकवाग्रस्त स्थिति से मुक्त होती दिखाई दे रही है। सरकार ने आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को अब तेजी से लागू करना शुरू कर दिया है। उस पर काम न करने वाली सरकार का धब्बा समाप्त होता जा रहा है। भ्रष्टाचार के मामले, जिन्होंने कांग्रेस को परेशान कर रखा था, अब धीरे धीरे पुराने पड़ते जा रहे हैं और वे अतीत का विषय बनते जा रहे हैं।

भारतीय जनता पार्टी ने केन्द्र सरकार को विदेशी किराना के मसले पर नियम 184 के तहत संसद में बहस करने के लिए बाध्य कर दिया है। बार बार संसद का ठप होने के कारण लोगों में गलत संदेश जा रहे थे। संसद पर करोड़ों रुपये रोज खर्च होते हैं। उनका न चलना सरकारी पैसे की बर्बादी माना जा रहा था। पिछला सत्र बिना किसी कामकाज के संपन्न हुआ था। यह सत्र अब शायद सुचारू रूप से चले, क्योंकि सरकार ने मुख्य विपक्षी दल की मुख्य मांग मान ली है।

संसद के सामने विधेयक पड़े हुए हैं, जिन्हें पारित होकर कानून बनना है। लोकपाल कानून और जमीन अधिग्रहण कानून को अभी वजूद में आना बाकी है। अनेक वित्तीय सुधार कानूनों का भी बनना बाकी है। ये सभी कानून बनने बहुत जरूरी हैं और इसके लिए संसद का सुचारू रूप से चलना जरूरी है।

विपक्ष द्वारा बहस के बाद मतदान की मांग अंततः केन्द्र सरकार के लिए ही फायदेमंद साबित होने जा रही है। इसके कारण यूपीए के घटक दलों में एकता बढ़ गई है। डीएमके अब तक इस मसले पर केन्द्र सरकार से अलग रुख दिखा रही थी, लेकिन उसने साफ कर दिया है कि इस मसले पर वह संसद में केन्द्र सरकार को पराजित नहीं होने देगी। जाहिर है, अब वह इसके समर्थन में आ गई है। मुलायम सिंह और मायावती भी इस मसले पर सरकार के खिलाफ मतदान करने से परहेज ही रखेंगे, क्योंकि भाजपा के साथ वे इस मसले पर मतदान करते दिखाई नहीं पड़ना चाहेंगे। (संवाद)