जाहिर है इस तरह का रवैया यह बताता है कि ये नेता और उनकी पार्टियां अपने आपको संविधान के दायरे से बाहर समझती हैं। वह न्यायपालिका को भी अपनी इस आस्था के आगे तुच्छ मानती हैं। इस तरह के विचार वाले लोग हमारे देश की बहुलतावादी संस्कृति को भी मानने से इनका करते हैं और अपने किस्म का एक घार्मिक तानाशाही राज्य को अमल में लाना चाहते हैं।
शिवसेना यह बात बाल ठाकरे की मौत के बाद इस तरह की बात कर रही है, लेकिन इस तरह की बातें पहले से भी होती रही हैं। खुद बाल ठाकरे ने हिटलर की खुली प्रशंसा की थी। भारतीय जनता पार्टी तो इस मामले में और भी पुरानी है। जब आजादी के बाद भारत का संविधान स्वीकार किया जा रहा था तो इसके पिछले अवतार जनसंघ के नेताओं का कहना था कि यह संविधान भारत सरकार विधेयक 1935 का ही विस्तार है और इसलिए यह उनको मंजूर नहीं है। उनका कहना था कि वह संविधान हिंदु मूल्यव्यवस्था को प्रतिबिम्बित नहीं करता।
यही कारण है कि जब 1998 में अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार बनी थी तो संविधान की समीक्षा के लिए एक आयोग का गठन कर दिया गया था। यह तो सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश है, जो संविधान को मूल रूप से बदले जाने की इजाजत नहीं देता और कहता है कि संविधान के मूल ढांचे में बदलाव किया ही नहीं जा सकता। अन्यथा, भाजपा वाले इस संविधान को ही बदल डालें। शिवसेना के प्रमुख की मौत के बाद जिस तरह की बातें हो रही हैं, उससे पता चलता है कि हिंदुत्व कैंप का इरादा क्या है।
शिवाजी पार्क में मंदिर और स्मारक बनाने का यह विवाद किस तरह से हल किया जाएगा, इसके बारे में अभी भी कुछ साफ नहीं है। जो साफ है वह यह है कि सरकार के लिए अंत्येष्टि स्थल का ढांचा हटाना आसान नहीं होगा। हो सकता है वह मंदिर और भी ज्यादा फैले और अपने जद में पूरे मैदान को ही ले और एक बड़ा इमारत वहां अस्तित्व में आ जाए। सबसे खराब बात तो यह है कि इसे राजनैतिक तत्वों का समर्थन हासिल हो रहा है और सामाजिक स्तर पर भी इसे बुरा नहीं माना जा रहा है। हम देख चुके हैं कि बाल ठाकरे की मौत के बाद और मौत के पहले पूरा बाॅलीवुड उनके सामने बिछा हुआ था। राजनैतिक वर्ग भी बाल ठाकरे के सामने अपने अंतर्विरोधों को भुलाकर एक स्वर मे अलाप कर रहा था। उनकी शवयात्रा में लाखों लोगों ने हिस्सा भी लिया था।
बाल ठाकरे का वह सम्मान सिर्फ मुंबई तक में ही सीमित नहीं था, बल्कि वहां से हजारे किलोमीटर दुूर कोलकाता में भी लोगो के बीच उन्हें श्रद्धांजलि देने का दौर जारी था। कोलकाता के टेलिग्राफ में प्रकाशित पाठको के पत्रों को देखकर कहा जा सकता है कि ठाकरे के प्रशंसक पश्चिम बंगाल में भी कम नहीं हैं।
माना जाता है कि कोलकाता और पश्चिम बंगाल के लोगों का मनस वामपंथी है, लेकिन वहां भी एक मराठा फासीवादी क निधन पर खूब आंसू बहाए जा रहे थे। संभव है, यह मध्य वर्ग का फेनोमेना है, जो देश भर में स्थित है।
आखिर देश में इस तरह का माहौल क्यों बन रहा है? आज सांप्रदायिक और जातीय पार्टियांे का बोलबाता बढ़ता जा रहा है और समझदारी के ऊपर आस्था के हावी होने की बात की जा रही है। इसका एक कारण तो यह है कि हमारे देश की राजनैतिक विचारधारा वाली राजनैतिक पार्टियां विफल हो रही हैं और उनकी जगह संकीर्णतावादी तत्व राजनीति पर हावी हो रहे हैं। (संवाद)
मुंबई के गॉडफादर की स्मृति में
जब अंध श्रद्धा राजनीति के ऊपर हावी हो
अमूल्य गांगुली - 2012-12-06 06:14
शिवसेना के एक नेता का यह कहना कि मुंबई के शिवाजी पार्क के जिस स्थान पर बाल ठाकरे की अंत्येष्टि हुई थी, वह स्मारक नहीं, बल्कि एक मंदिर बन चुका है और उनकी पार्टी किसी की यह बात मानने को तैयार नहीं होगी कि उसे वहां से हटा दिया जाय। पार्टी न तो सरकार के आदेश का अमल करेगी और न ही अदालती आदेश का। उस नेता का यह कथन राम जन्म भूमि मंदिर के लिए चल रहे आंदोलन की याद दिला देता है। उस समय भाजपा कहती थी कि राम जन्मभूमि हिंदुओं की आस्था का सवाल है और मंदिर उसी जगह बनेगा। उसका कहना था कि वह अदालती प्रक्रिया का मसला नहीं हो सकता है क्योकि हिंदू मानते हैं कि राम वहीं पैदा हुए थे।