तुलना करने पर हम भारत को ब्राजील के निकट पाते हैं। चीन और ब्राजील के विपरीत भारत में बहुदलीय लोकतंत्र है। मुख्य अंतर यह है कि भारत में आबादी का बोझ ब्राजील से कहीं ज्यादा है। भारत में छोटे और सीमांत किसानों की संख्या काफी ज्यादा है। ब्राजील में बड़े किसानों काफी संख्या में हैं। इसके अलावा छोटे किसान भी हैं।
वहां कृषि क्षेत्र की दोहरी व्यवस्था के प्रबंधन के लिए दो अलग-अलग मंत्रालय (वाणिज्यिक कृषि मंत्रालय व पारिवारिक कृषि मंत्रालय) हैं। अनेक लोग तर्क देते हैं कि छोटे खेतों में कृषि व्यवसाय लाभदायक नहीं है। इसी कारण भारत में किसान आत्महत्या के लिए विवश हो जाते हैं। लेकिन यह सच नहीं है। खाद्य सुरक्षा और निर्यात की जरूरतें छोटे और सीमांत किसानों के जरिये ही पूरी होती हैं। चीन और जापान में भी छोटे खेतों की पर्याप्त उत्पादकता है। आत्महत्या का मुख्य कारण भारतीय किसानों की लागत और आय का नकारात्मक अंतर है। सरकार को किसानों की आय बढ़ाने के उपाय करने चाहिए।
ब्राजील में मुख्य रूप से छोटे किसान ही घरेलू खाद्य सुरक्षा की जरूरत पूरी करते हैं जबकि बड़े किसान निर्यात के लिए खेती करते हैं। ब्राजील के राष्ट्रपति के विशेष सलाहकार माया ताकागी के अनुसार छोटे किसानों की पैदावार सरकार के समर्थन से बढ़ी है। छोटे किसानों के पास देश की सिर्फ 24 फीसदी खेतिहर जमीन है लेकिन इससे 38 फीसदी पैदावार होती है और 74 फीसदी रोजगार मिलते हैं। ब्राजील ने 2003 में जीरो हंगर प्रोग्राम नाम से खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम शुरू किया था। वर्ष 2009 के लिए ब्राजील में इस कार्यक्रम के लिए 10.8 अरब डॉलर का बजट में प्रावधान किया गया। वहां की सरकार छोटे किसानों से जीरो हंगर प्रोग्राम की जरूरत पूरी करने के लिए उचित मूल्य पर अनाज खरीदती है। यह प्रोग्राम भारत के खाद्य सुरक्षा मिशन जैसा ही है। भारत की तरह ही वहां भी छोटे किसानों से खरीदा गया खाद्यान्न गरीबों को टोकन सिस्टम के जरिये वितरित किया जाता है। वहां भी सरकार के प्राथमिक स्कूलों में 14 साल तक के बच्चों को भोजन सुलभ कराया जाता है। ब्राजील का यह कार्यक्रम भारत के मिड-डे मील कार्यक्रम जैसा है। खाद्य सुरक्षा की जरूरत पूरी करने के लिए ब्राजील में सस्ते रेस्टोरेंटों, कम्युनिटी किचन और फूड बैंकों को अनाज की सप्लाई की जाती है।
वर्ष 2008 के दौरान ब्राजील में 28.4 करोड़ डॉलर निवेश का लाभ 1.47 लाख छोटे पारिवारिक किसानों को मिला। वर्ष 2009 में 32.6 करोड़ डॉलर का इस क्षेत्र में निवेश किया गया। वर्ष 2009-10 में छोटे किसानों को 8 अरब डॉलर का लाभ देने की योजना बनाई गई है। इसमें तकनीकी मदद भी शामिल है। मछुआरों को 26.6 करोड़ डॉलर की मदद दी जाएगी। भारत में सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लिए अनाज के बिक्री मूल्य (इश्यू प्राइस) में बढ़ोतरी करने से हिचकिचा रही है। उसे आशंका है कि इससे गरीबों की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। लेकिन ब्राजील ने इस समस्या का समाधान निकाल लिया है। वह गरीबों की आय बढ़ाने के उपाय कर रही है। गरीबों को कैश ट्रांसफर प्रोग्राम के तहत मदद दी जा रही है। भारत में इसी तरह की स्कीम राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम कुछ समय पहले ही लांच की गई है। ब्राजील में एक कार्यक्रम के तहत खेतिहर कार्यो के लिए जमीन बढ़ाई जा रही है। भारत में भी इसी तरह की स्कीम चलाए जाने की जरूरत है। लेकिन हमारे यहां हालात काफी गंभीर हैं।
कई बार अध्ययनों से यह तथ्य उजागर हुआ है कि उचित मूल्य न मिलने के कारण खेती से होने वाली आय से किसान कतई संतुष्ट नहीं है। उन्हें रोजगार के दूसरे अवसर मिलें तो वे खेती को अलविदा कह सकते हैं। खेती से जुड़े परिवारों के युवाओं के बीच यह प्रवृत्ति कुछ ज्यादा ही तेज है। हालांकि खेती पर रोजगार के लिए निर्भरता कम करने के लिए दूसरे क्षेत्रों से मदद मिल सकती है लेकिन इससे खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हो पाएगी। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत में भी खेतिहर जमीन बढ़ानी चाहिए और अनाज उत्पादन की विकास दर सुनिश्चित की जानी चाहिए। भारत अपने यहां ब्राजील के अनुभवों से सीख सकता है कि छोटे और सीमांत किसानों की आमदनी में कैसे बढ़ोतरी की जाए। यह निश्चित है कि जब किसानों को उचित मूल्य सुनिश्चित होगा, तभी देश में पर्याप्त अनाज उत्पादन संभव हो पाएगा और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी। #