गोरखा जनमुक्ति मोर्चा इस प्रदेश के आंदोलन का नेतृत्व कर रहा है। आज वह एक प्रमुख गोरखा महेन्द्र पी लामा के साथ आरोपों प्रत्यारोपों में उलझा हुआ है। गौरतलब है कि इस मोर्चे को क्षेत्र की प्रशासनिक स्वायत्तता हासिल करने में सफलता मिली थी। पर आज वह खुद गोरखा लोगांे की आलोचना का शिकार हो रहा है।

गोरखा महेन्द्र पी लामा सिक्किम विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति हैं। प्रोफेसर लामा गोरखालैंड आंदोलन के प्रति अपना कटु रवैया दिखाने में किसी प्रकार का संकोच नहीं कर रहे हैं। वे गोरखालैंड प्रदेश के गठन के आंदोलन में लगे मोर्चों और संगठनों की ईमानदारी पर ही सवाल खड़ा कर रहे हैं।

गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के लिए उनके विचार बहुत परेशानी का सबब बन रहे हैं। मोर्चा के नेता डाॅक्टर हरका बहादुर छेत्री ने पिछले दिनों प्रोफेसर लामा पर शब्दों के बाण फेंके। उन्होंने तो प्रोफेसर लामा के एकेडिक स्टेटस पर ही सवाल खड़ा कर दिया और कहा कि यदि उन्हें लगता है कि आंदोलन चला रही पार्टियां गलत हैं, तो उन्हें खुद एक पार्टी बनाकर आंदोलन को आगे बढ़ाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वे लोग आंदोलन नहीं चला सकते, जो बंद कमरों में सिर्फ गोष्ठियां करना जानते हैं। इसके लिए सड़क पर आने की जरूरत पड़ती है, जो उनके वश का नहीं है।

प्रोफेसर लामा का दावा है कि उनके पास कुछ ऐसे दस्तावेज हैं, जो अलग राज्य के निर्माण में सहायक हो सकते हैं। डाक्टर छेत्री उन्हें चुनौती देते हुए कहते हैं कि उन्हें वे दस्तावेज सार्वजनिक कर देने चाहिए, ताकि नये राज्य के गठन की मांग में और भी मजबूती आए। वे लामा को कहते हैं कि यदि उनके दस्तावेजों को आंदोलनकारी गंभीरता से नहीं लें, तभी उन्हें आंदोलनकारियों के खिलाफ कुछ बोलना चाहिए। उसके पहले उन्हें आंदोलनकारियों के खिलाफ कुछ भी बोलने का नैतिक हक नहीं है।

प्रोफेसर लामा का मानना है कि केन्द्र, पश्चिम बंगाल और आंदोलनकारियों के बीच का एक त्रिपक्षीय संवाद किसी भी प्रकार की सहमति में सहायक हो सकता है, बशर्ते वह संवाद संविधान की 6ठी अनुसूची के तहत हो। इसे वे एक बेहतर राजनैतिक विकल्प मानते हैं। इस अनुसूची के तहत क्षेत्र को और भी स्वायत्तता मिल सकती है।

पर गोरखा जनमुक्ति मोर्चा को तो अलग प्रदेश चाहिए। इसलिए वे प्रोफेसर लामा की उक्त सलाह की आलोचना करते हैं और दावा करते हुए कहते हैं कि उन्होंने अपने आंदोलन से जो भी प्रशासनिक स्वायत्तता मांगी है, वह तो सामयिक है और वे अलग गोरखालैंड की मांग से पीछे नहीं हटे हैं।

यह सबको पता है कि आंदोलनकारियों की क्षमता पर सवाल उठाने वाले लोग और भी हैं, जिनके विचार प्रोफेसर लामा से मेल खाते हैं। दार्जिलिंग के अंदर ही अनेक गोरखा नेता हैं, जो बिमल गुरुंग जैसे नेताओं की आलोचना करने में किसी भी तरह का संकोच नहीं दिखाते हैं। (संवाद)