उनसे उम्मीद की जाती है कि वे अपनी सरकार की उपलब्धियों से जनता को अवगत कराएं, लेकिन जनता के साथ उनका संवाद ही लगभग खत्म हो चुका है, इसलिए वे जनता तक सरकारी उपलब्धियों की जानकारी पहुंचा ही नहीं सकते। जनता के साथ उनकी संवादहीनता किस हद तक पहुंच चुकी है, इसका पता अन्ना हजारे, रामदेव, अरविंद केजरीवाल और हाल ही में बलात्कार के खिलाफ हुए आंदोलनों के दौरान चला। सत्तारूढ़ पार्टी को इस पर विचार करना चाहिए कि आखिर लोग बार बार सड़कों पर क्यों आ रहे हैं? जब आंदोलन हो रहे थे, तो कांग्रेस के नेताओं को जनता के बीच आने की हिम्मत नहीं होती थी। आखिर जनता से जुड़े मसलों पर जनता का सामना करने में वे क्यों डरते हैं?

यदि कांग्रेस को दुबारा सत्ता में आना है तो सबसे पहले उनके नेताओं को जनता और पार्टी कार्यकत्र्ताओं के लिए आसानी से उपलब्ध होना पड़ेगा और जनता से जुड़े मुद्दों पर संवेदनशीलता दिखानी पड़ेगी। हालांकि जब भी किसी कांग्रेसी मंत्री को किसी प्रदेश का दौरा करना होता है, तो उन्हें पार्टी के मुख्यालय में भी जाने की परंपरा रही है। पर अब इस परंपरा का पालन नहीं किया जा रहा है। कांग्रेस के सांसद भी अब कह रहे हैं कि मंत्री उनसे मिलना तो दूर उनके लिखे पत्रों का जवाब देना भी मुनासिब नहीं समझते हैं।

जयपुर में कांग्रेस का चिंतन शिविर लग रहा है। इस शिविर में कांग्रेस को गहन आत्ममंथन करना होगा। उसे सबकुछ सोचना होगा। उसके बाद उसे भविष्य के लिए अपनी रणनीति तय करनी होगी और अपनी गड़बडि़यों में सुधार करना होगा। सोनिया गांधी जब से कांग्रेस की अध्यक्ष बनी है, उस समय से इस तरह के शिविर अनेक बार लगाए गए हैं और उनमें चिंतन मनन किया गया है। पंचमढ़ी में इसी तरह की एक शिविर लगी थी। यह 1998 का साल था। 2003 में शिमला में इस तरह का एक और चिंतन हुआ था।

क्या जयपुर की बैठक में कांग्रेस कुछ नई सोच के साथ सामने आएगी? क्या पार्टी और सरकार समस्याओं का सामना करने के लिए एक साथ कंधा से कंधा मिलाकर काम कर पाएंगे? यह पहला चिंतन बैठक होगी, जिसके केन्द्र में राहुल गांधी होंगे। इस बैठक में राहुल गांधी को प्रोजेक्ट किया जाएगा और पीढ़ी बदलाव की घोषणा होगी। गौरतलब है कि इस बैठक में आमंत्रित किए गए कांग्रेसियों मंे से आधे उम्र 45 साल से कम है। जाहिर है यह बैठक राहुल टीम की है। इस बैठक की सफलता या विफलता राहुल गांधी पर निर्भर करती है, जिनकी बड़ी भूमिका की चर्चा बहुत दिनों से कांग्रेस में हो रही है। कांग्रेस के चुनावी समन्वय समिति का प्रभारी राहुल गांधी को पहले ही बना दिया गया है।

देश की राजनीति में पहल करने की भूमिका कांग्रेस के हाथ से लगातार फिसलती जा रही है। जाहिर है इस बैठक में उस भूमिका को फिर से पाने की तलाश होगी। पार्टी ने गुजरात की सत्ता 1990 में ही खो दी थी। उत्तर प्रदेश में वह 1989 से सत्ता से बाहर है। बिहार में भी वह 1990 से सत्ता से बाहर है। त्रिपुरा की सत्ता उसके हाथ से 1993 में निकली और फिर वापस नहीं आई। पश्चिम बंगाल में तो वह 1977 से ही लगातार सत्ता से बाहर रही। कुछ महीनों के लिए ममता बनर्जी की कृपा से उसके कुछ विधायक वहां मंत्री बने। अब वे भी बाहर हो चुके हैं। तमिलनाडु में तो कांग्रेस पिछले 4 दशकों से सत्ता से बाहर है। वह कभी कभी किसी सत्तारूढ़ पार्टी के मित्र. की भूमिका वहां निभाती रहती है। इस साल 9 राज्यों में विधानसभाओं के चुनाव होने हैं। वे सभी कांग्रेस के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं।

इस चिंतन शिविर में कांग्रेस महिलाओं और युवकों पर खासतौर से ध्यान दे रही है। वह युवाओं को ज्यादा से ज्यादा मौका देना चाहती है और महिलाओं के सशक्तिकरण को भी तवज्जो दे रही है। दिल्ली की एक चलती बस में एक लड़की के साथ किए गए सामूहिक बलात्कार ने न्याय व्यवस्था में सुधार के मामले को रेखांकित किया है। इस शिविर के फोकस में न्याय सुधार भी शामिल होगा।

समस्याओं का हल और चुनौतियों का सामना कांग्रेस के अस्तित्व रक्षा के लिए आवश्यक हो गया है। यह शिविर वैसे समय में आयोजित हो रही है, जब देश के लोगों का गुस्सा लगातार कांग्रस के खिलाफ बढ़ रहा है। राहुल गांधी को यह मौका हरगिज नहीं खोना चाहिए। कांग्रेस को अब अपनी दिशा का निर्धारण करना ही होगा। (संवाद)