कुछ सप्ताह पहले तक राजनीति कांग्रेस के खिलाफ जाती दिखाई पड़ रही थी। विपक्ष काफी आक्रामक था। चैटाला के नेतृत्व में इंडियन नेशनल लोकदल, कुलदीप बिश्नोई के नेतृत्व में हरियाणा जनहित कांग्रेस और भाजपा प्रदेश में बड़ी बड़ी रैलियां आयोजित कर रही थीं। रैलियों के द्वारा वे जाटों और गैर जाटों पर अपनी पकड़ दिखाने में सफल भी हो रहे थे।

जाटों और गैर जाटों पर कांग्रेस के दबदबे को कम करने की कोशिशों को पिछली दो घटनाओं से झटका लगा है। एक घटना तो हरियाणा जनहित कांग्रेस के पांच विधायकों से संबंिधत स्पीकर का फैसला है। वे विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए थे। कुलदीप बिश्नोई ने दल बदल कानून के तहत उनकी सदस्यता समाप्त करने की मांग की थी। मामला स्पीकर के पास था। स्पीकर ने अंत में फैसला देते हुए उनकी सदस्यता को बरकरार रखा है और उन विधायको ंके उस दावे को स्वीकार कर लिया है कि उनकी सदस्य संख्या कुल हजपा विधायकों की तीन चैथाई से भी ज्यादा हैं और उन्होंने मिलकर हजपा विधायक दल को कांग्रेस में विलय करने का जो निर्णय किया है, उससे दल बदल कानून का उल्लंघन नहीं होता। स्पीकर का फैसला हजपा को एक झटका है।

दूसरी घटना ओमप्रकाश चैटाला और उनके बेटे अजय चैटाला के खिलाफ आया अदालती फैसला है, जिसमें उन्हें अन्य अभियुक्तों के साथ प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती में हुए घोटाले का दोषी पाया गया है। चैटाला के खिलाफ दो और मुकदमे हैं। एक मुकदमा तो बाप और दोनों बेटों के आय से अधिक संपत्ति जुटाने से ताल्लुक रखता है, तो दूसरे मुकदमें में चैटाला के खिलाफ सर्विस कमीशन में अयोग्य लोगों की नियुक्ति करने का है। इन मुकदमों ने चैटाला परिवार की राजनीति के ही समाप्त कर देने का खतरा पैदा कर दिया है।

चैटाला और उनका परिवार कह रहे हैं कि उन्होंने कोई गलत काम नहीं किया है और खिलाफ में आए फैसलों के खिलाफ वे ऊपर की अदालतों में अपील भी करेंगे। वे मुख्यमंत्री हुड्डा पर उन्हें फंसाने का आरोप लगा रहे हैं। मुख्यमंत्री ने एक समझदारी यह दिखाई थी कि राज्य की निगरानी विभाग के द्वारा उन पर मुकदमा चलाने की जगह मामले को सीबीआई को सौंप दिया था। सीबीआई मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र से बाहर है, इसलिए चैटाला यह नहीं कह सकते कि मुख्यमंत्री ने सीबीआई पर दबाव डालकर उन्हें फंसाया।

जाट वोटों के लिए चैटाला परिवार और कांग्रेस के बीच प्रतिस्पर्धा चलती रहती है। 2005 के विधानसभा चुनाव में जाटों का बहुत बड़ा तबका चैटाला के खिलाफ हो गया था। उन्होंने कांग्रेस को वोट दिए और चैटाला की पार्टी को 90 सदस्यीय विधानसभा में सिर्फ 9 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। लेकिन 2009 में हुुए विधानसभा आम चुनाव में चैटाला की पार्टी के विधायकों की सदस्य संख्या बढ़कर 31 हो गई थी। जाहिर है कि जाटों का एक बड़ा तबका कांग्रेस से फिर चैटाला की ओर हो गया है।

कुछ सप्ताह पहले कांग्रेस के जाट और गैर जाट दोनों आधारों पर विपक्ष का हमला हो रहा था। चैटाला कांग्रेस के जाट आधार को कमजोर कर रहे थे, तो कुलदीप बिश्नोई गैर जाट समुदायों में अपनी पहुंच बढ़ा रहे। इन दोनों के अलावा महंगाई और भ्रष्टाचार के मामलों के कारण देश भर में कांग्रेस के खिलाफ उपज रहे आक्रोश का नुकसान इसे हरियाणा में भी हो रहा था। पर चैटाला और हरियाणा जनहित कांग्रेस से संबधित दो घटनाओं के कारण अब कांग्रेस राहत की सांस ले सकती है।

भारतीय जनता पार्टी की स्थिति भी अच्छी नहीं कही जा सकती। एक समय था कि शहरी मतदाता इसके साथ होते थे, पर बार बार कांग्रेस विरोधी दलों के साथ चुनावों में समझौता करने के कारण भाजपा के शहरी समर्थकों के बीच उसकी पहले वाली पैठ बरकरार नहीं रही है। भाजपा अबतक चैटाला, बंशीलाल और भजनलाल के साथ बारी बारी से समझौते करती रही है। इस समय वह भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई साथ समझौते में है। बिश्नोई को कमजोर होने का असर भाजपा पर भी पड़ेगा। भाजपा के कुछ केन्द्रीय नेता ओमप्रकाश चैटाला को फिर से राजग में लाने की कोशिश कर रहे थे। खुद चैटाला की राजनीति पर ग्रहण लगने के बाद अब भाजपा उनसे क्या उम्मीद कर सकती है।

इन घटनाओं के बीच कांग्रेस हरियाणा में इस समय राहत की सांस ले सकती है, पर उसके खिलाफ महंगाई व भ्रष्टाचार के मसलों को लेकर उपजा राष्ट्रव्यापी गुस्सा हरियाणा में भी है। इसलिए अभी कुछ नहीं कहा जा सकता कि 2014 के लोकसभा और उसके बाद हरियाणा विधानसभा के चुनावों मंे राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा। (संवाद)